‘यौन प्रवृत्ति’ मानव की स्वाभाविक प्रक्रिया है जो शिशु के साथ-साथ बड़ों तक में निहित होती है। हमारी भारतीय संस्कृति में यौन-संबंधी बातें करना भी पाप समझा जाता है। इन्हीं कारणों से न तो बच्चा अपनी भावनाओं को स्पष्ट रूप से कह पाता है, और न ही उसकी भावनाओं को अभिभावक ही समझ पाते हैं। हमेशा से यही होता आया है कि जिस चीज को छिपाकर रखा जाता है, उसे जानने की कोशिश में व्यक्ति भटकता रहता है। आज भी वही हो रहा है। आज के अभिभावक ही जब ‘यौन ज्ञान’ के तथ्यों से अनभिज्ञ हैं तो उससे संबंधित सार्थक ज्ञान को वे अपने बच्चों को कैसे दे सकते हैं या यौन शिक्षा के सार्थक पहलू को वे उन्हें कैसे समझा सकते हैं?
ज्यों-ज्यों बच्चा बढ़ता जाता है,उसकी स्वाभाविक यौनप्रवृत्ति में भी विकास होने लगता है। फिल्मों के फूहड़ दृश्य, अश्लील पोस्टरों के दृश्य, हम वयस्क विपरीत लिंगी का साथ उसकी उत्तेजना में भी वृद्धि करती है। शिक्षा के अभाव में वह अश्लील साहित्यों को छिपकर पढ़ने लगता है तथा उन क्रियाओं को करने का प्रयत्न करने लगता है, जिसे समाज के नियम स्वीकार नहीं करते तथा जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। टी.वी. एवं मोबाइल के अंधाधुन्ध प्रयोग ने भी बच्चों को अपसांस्कृतिक वातावरण प्रदान किया है।
आज के समय में बच्चों के साथ होने वाला यौन शोषण अथवा यौन-हिंसा विकराल रूप धारण करता जा रहा है। एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि ये शोषण सामान्य तौर पर अपने ही रिश्तेदार या संबंधियों द्वारा अधिकांशत: किये जाते हैं। अपरिचित द्वारा यौन शोषण की घटनाएं उतनी नहीं होती हैं, जितनी अपनों द्वारा। संबंधों की आड़ तथा बच्चों या अभिभावकों की शर्मिन्दगी, मामले को आगे ले जाने की बजाय वहीं के वहीं दबा देने में मददगार बनाता है।
यौन-शोषण के सभी मामले बच्चों के इच्छा के विपरीत ही होते हों, यह भी सही नहीं है। कुछ ही मामले ऐसे होते हैं जो बच्चों की इच्छा के विपरीत होते हैं। अधिकांश मामलों में किसी न किसी रूप में बच्चे की सहमति अवश्य ही होती है। प्रलोभन, सेक्स-विधियों को जानने की इच्छा, भावनात्मक लगाव आदि अनेक ऐसे कारण होते हैं जो बच्चों को ऐसे कुकर्मियों का सहयोग करने को प्रेरित करते हैं।
भारतीय कानून में दंड संहिता की धारा 354, 375, 376 में तथा प्रिवेशन आॅफ इम्मारल टेफिक, पर्सनल एक्ट एवं इन्सिडेंट रिप्रेजेंशन आॅफ वूमन एक्ट के अन्तर्गत प्रावधान है कि यौन हिंसा की कोई भी घटनाएं जिनमें जननांगों का स्पर्श, वासना दशार्ने वाले भाव, छेडखानी आदि सभी प्रकरणों में सजा का प्रावधान है परन्तु देश के कानून में यौन हिंसक घटनाओं की उचित परिभाषा के अभाव में अपराधी साफतौर पर बच जाते हैं।
बच्चे यौन हिंसा के शिकार न हों, इसके लिए यह आवश्यक है कि बच्चों को उत्कृष्ट साहित्य, नैतिक शिक्षा, धार्मिक पुस्तकों को उपलब्ध कराया जाय तथा सेक्सगत आदर्श बातों की जानकारी दी जाय। अपभ्रष्ट संस्कृति को दशार्ने वाले चैनलों पर अंकुश रखा जाय तथा चाहे कितना भी घनिष्ठ रिश्ता क्यों न हो, कभी भी सीमा का उल्लंघन न होने दें।
आज के माता-पिता एवं अभिभावकों का यह परम कर्तव्य हो जाता है कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के साथ साथ उनकी यौन विषयक जिज्ञासाओं को भी आदर्श ढंग से शान्त किया जाये ताकि वे पथभ्रष्ट न हो सकें और एक आदर्श नागरिक बनकर कुल एवं देश का नाम रोशन कर सकें।
आनंद कुमार अनंत