Tuesday, March 19, 2024
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बढ़ती तकनीक, बढ़ते रेल हादसे

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Samvad


rituparnबेशक बालासोर रेल दुर्घटना देश क्या दुनिया के भीषणतम हादसों में एक है। इतना ही नहीं और याद भी नहीं कि देश में कभी एक साथ तीन रेलें इस तरह टकराई हों? दुर्घटना से जो एक सच सामने आया है, वो बेहद दुखद और चौंकाने वाला है, जिसमें रिजर्व बोगियों के अलावा मौतें जनरल बोगियों में सवारों की भी हुईं। उससे भी बड़ी हमेशा की तरह सच्चाई ये कि यह दुर्घटना स्टेशन पहुंचने से थोड़ा पहले हुई। अप और डाउन दोनों ट्रैक किसी स्टेशन पर पहुंचने से पहले यात्री सुविधाओं की दृष्टि से कई लूप ट्रैक में विभाजित होकर रुकने वाली ट्रेनों को प्लेटफॉर्म तक और माल व नॉन स्टाप गाड़ियों को आगे का सीधा ट्रैक पकड़ाते हैं। यहां आगे जा रही या पीछे से आ रही ट्रेनों की स्थिति और निगरानीमें जरा सी चूक हादसों में बदल जाती है, यही हुआ। यकीनन ट्रेनों के परिचालन के लिए नित नई उन्नत और नवीनतम तकनीक विकसित होती जा रही है। बावजूद इसके हादसे उतने ही गहरे जख्म भी छोड़ जाते हैं।

दरअसल ये हादसा बहानागा रेलवे स्टेशन के पास शालीमार-चेन्नै कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841),और सर एम.विश्वेश्वरैया टर्मिनल-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (12864) तथा मालगाड़ी एक-दूसरे से टकराने से हुआ। कोरोमंडल एक्सप्रेस डिरेल होकर खड़ी मालगाड़ी से टकराई डिब्बे गिरे और लोग निकल जान बचाने इधर-उधर भगाने लगे।

ठीक ऊसी समय दूसरे ट्रैक पर आ रही यशवंतपुर हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (12864)आ गई और पहले गिरी दोनों ट्रेनों से टकरा गर्इं। इसके चलते हादसे का रूप भयंकर वीभत्स और दिल दहला देने वाला हो गया। जान बचाकर भागते कई लोग भी शिकार हो गए। सुबह जब ड्रोन से तस्वीरें मिलने शुरू हुर्इं तो रोंगटे खड़े कर देने वाले दर्दनाक मंजरों ने और डरा दिया।

जबकि बोगियों के अंदर की तस्वीरें बेहद दर्दनाक थीं। किसी का सर धड़ से अलग था किसी के हाथ-पैर और क्षत-विक्षत शरीर। मालगाड़ी के डिब्बे के ऊपर सवारी गाड़ियों के डिब्बे जिग-जैग पोजीशन में एक-दूसरे ऊपर 50-55 फीटतक जा चढ़े। कई डिब्बे सैकड़ों मीटर दूर तक जा गिरे।

दोनों ही ट्रेन अपनी पूरी क्षमता से भरी थीं यानी 1750 यात्रियों को लेकर कुल 3500 यात्रियों की क्षमता के साथ अलग-अलग लेकिन पूरी रफ्तार से दौड़ रहीं थीं। सैकड़ों जाने चली गर्इं और दुर्घटना का शिकार हो गए। पिछले 20 वर्षों में यह सबसे बड़ा हादसा है।

बीते बरस की ही बात है, जीरो रेल एक्सीडेंट मिशन में आॅटो ब्रेक सिस्टम पर तेजी से काम की खूब बातें हुर्इं। ट्रेन प्रोटेक्शन एण्ड वार्निंग यानी टीपीडब्ल्यूएस तकनीक का ढिंढोरा पीटा। वो प्रणाली बताई गई, जिसमें गलती से भी कोई ट्रेन रेड सिग्नल जंप कर जाए तो यह प्रणाली उसे रोक देगी। डिवाइस लोकोपायलट के उन क्रियाकलापों को मॉनीटर करेगाजिसमें ब्रेक, हार्न, थ्रोटल हैंडल शामिल हैं।

यदि कोई लोको पायलटप्रतिक्रिया नहीं देगा या झपकी लग जाएगी तो ये सिस्टमखुद तुरंत ऐक्टिवेट होकर ब्रेक लगाएगा। यदि ट्रेनों की रफ्तार तय स्पीड से ज्यादा हुई और रेड सिग्नल दिखा तो भी सिस्टम लोको पायलट का रिस्पांस न मिलने पर खुद सक्रिय होगा तथा धीरे-धीरे ब्रेक लगाकर इंजन बंद कर देगा।

इस हादसे पर इससे भी बड़ी विडंबना या मजाक ये कि महज एक दिन पहले 1 जून को ही रेल मंत्रालय ने ट्रेन सुरक्षा पर बड़ा चिंतन शिविर किया। नई तकनीकों पर जोरदार पक्ष रखा। रेल के सफर को सुरक्षित और आरामदेह बनाने पर फोकस किया और दावा कि कवच तकनीक से लैस ट्रेनों का आपस में एक्सीडेंट हो ही नहीं सकता।

यहां तक कि यदि ये दो ट्रेन आमने-सामने आ भी जाएं तो यह तकनीक उन्हें खुद ही पीछे की तरफ धकेलने लगेगी मतलब ट्रेन का आगे बढ़ना रुक जाएगा। लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि कवच की बात सामने आने के चंद घंटों के भीतर ही यह बड़ा हादसा हो गया। रेलवे बोर्ड से पूरे देश में 34,000 किलोमीटर रेल ट्रैक पर कवच सिस्टम लगाने की मंजूरी मिली है।

साल 2024 तक सबसे व्यस्त रेल ट्रैक पर इसे लगाना है। इस कवच की तकनीक को रिसर्च डिजाइन एंड स्टेंडर्ड आॅर्गनाइजेशन यानी आरडीएओ की मदद से पूरे देश के रेलवे ट्रैक पर शुरू होना है। हालांकि रेल मंत्री के राज्यसभा में दिए जवाब के मुताबिक यह तकनीक दक्षिण मध्य रेलवे के 1455 रूट पर लग चुकी है। इस पर वर्ष 2021-22 में 133 करोड़ रुपये खर्च हुए जबकि 2022-2023 में 272.30 करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान है।

रेलवे ट्रेन में टीपीडब्ल्यूएस सिस्टम भी लागू कर रहा है, जो ट्रेन सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली का वो सिस्टम है, जिससे एक्सीडेंट कम हो सकते हैं। इसमें हर रेलवे सिग्नल इंजन के कैब में लगी स्क्रीन पर दिखाई देगा। लोको पायलट घने कोहरे, बारिश या किसी अन्य कारण से खराब मौसम के बावजूद कोई सिग्नल मिस नहीं करेगा ट्रेन की सही गति भी मालूम होती रहेगी, ताकि खराब मौसम में गति नियंत्रित कर सके।

जब देश में इन दिनों वंदेभारत ट्रेन शुभारंभ की चमकदार तस्वीरें सामने होती हैं इसी बीच ऐसी दुर्घटनाओं का काला सच तमाचा तो मारता है। जाहिर है लोग सवाल तो पूछेंगे कि क्या देश में केवल लक्जरी ट्रेनों के संचालन को प्राथमिकता है और आम लोगों की रेलगाड़ियां और पटरी पर कोई ध्यान नहीं?

भले ही यह राजनीतिक बहस का विषय बने, लेकिन देश में आम सवारी गाड़ियों की हालत ठीक नहीं है। देश के आम यात्रिओं की सुविधाओं पर भी ध्यान जरूरी है। सबसे कमाऊ रेलवे जोन में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे का पूरा ध्यान केवल कोयला ढुलाई पर है। यात्री सेवा में यह जोन सबसे फिसड्डी साबित हुआ है।

शायद ही कोई गाड़ी यहां अपने सही पर चलती हो बिलासपुर-कटनी रेल मार्ग यात्री सुविधाओं के लिए अभिशप्त कहलाने लगा है। तीसरी लाइन का ज्यादातर हिस्सा चालू हो जाने के बाद सुविधाओं में इजाफे की खूब बातें हुर्इं, वे बेमानी निकलीं। जरूरी और लंबी दूरी की गाड़ियों की 3-4 घंटे की देरी से चलना आम तो 8 से 10 घंटे भी लेट चलना हैरानी भरा नहीं होता।

कोयले के खातिर मेन प्लेटफॉर्म तक कोल सायडिंग में तब्दील हो जाते हैं। बिलासपुर रेल जोन का अमलाई स्टेशन सबूत है, जिसका मुख्य प्लेटफार्म सायडिंग की बलि चढ़ गया। फिलहाल बालासोर से 22 किमी दूर घनी आबादी वाले इलाके के पास हुए इस हादसे ने ट्रेन और उससे ज्यादा यात्रियों की सुरक्षा को लेकर तमाम सवालों की झड़ी लगा ही दी है।

दुर्घटना की शिकार कोरोमंडल एक्सप्रेस में कोई टक्कर रोधी यानी एंटी-कोलिजन उपकरण नहीं होने की बातें भी सामने आ रही हैं, जिससे एक ही ट्रैक पर चलने वाली ट्रेनें एक निश्चित दूरी पर रुकती हैं। सवाल कई हैं और जांच भी कई होंगी। लेकिन यह सच है कि शाम कुछ लोग सोने की तैयारी में थे तो कुछ रात का खाना खा रहे थे। कइयों के हाथों में खाने का निवाला ही कि वो खुद मौत का निवाला बन गए। काश आम भारतीयों की पहले समय से चलने वाली ट्रेनों व उनके सुरक्षित सफर के लिए भी कुछ सोचा जाता?


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