Saturday, July 19, 2025
- Advertisement -

क्या जाति की बात हिंदू द्वेषी है ?


SUBHANSH GATWADE‘जाति का सवाल एक प्रचंड मसला है, सैद्धांतिक तौर पर और व्यावहारिक दोनों स्तरों पर। व्यावहारिक तौर पर देखें तो वह एक ऐसी संस्था है जो जबरदस्त प्रभाव पैदा करती है। वह एक स्थानीय समस्या है, लेकिन वह काफी हानि पहुंचा सकती है; जब तक भारत में जाति का अस्तित्व है, हिन्दू शायद ही कभी रोटी बेटी का व्यवहार करेंगे या बाहरी लोगों के साथ सामाजिक अंतर्क्रिया करेंगे ; और अगर हिन्दू प्रथ्वी के अन्य इलाकों में पहुंचेंगे तो भारतीय जाति विश्व की समस्या बन सकती है।’                                                                                                         -डॉ अंबेडकर

वर्ष 1916 का साल था, जब कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के मानव वंश विज्ञान विभाग के सेमिनार में बोलते हुए युवा अंबेडकर ने यह सटीक भविष्यवाणी की थी कि किस तरह ‘जाति विश्व की समस्या बन सकती है’ जब हिंदू भारत के बाहर यात्रा करेंगे और वहां बसेंगे।

एक सदी से अधिक का वक्फा गुजर गया और हम देख रहे हैं कि किस तरह जाति को लेकर उनकी यह भविष्यवाणी भी सही साबित होती दिख रही है। एक अग्रणी कॉरपोरेट का मसला शायद यही बता रहा है। ऐेसे मौके बहुत कम आते हैं जब कोई न्यूज एग्रीगेटर (संकलक)-जो दुनिया भर के हजारों प्रकाशकों एव पत्रिकाओ से खबरों, आलेखो को अपने पाठकों तक पहुंचाता रहता है, वह खुद सुर्खियां बने।

विश्व की सबसे बड़े न्यूज एग्रीगेटर में शुमार किए जाने वाले गूगल न्यूज के साथ पिछले दिनों यहीं वाकया हुआ, जब वह खुद दुनिया भर के अखबारों, वेबसाइटस पर में खबर बना, जब जाति के प्रश्न पर अपने ही कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने के लिए कंपनी द्वारा ही आयोजित व्याख्यान को आननफानन रदद कर दिया गया।

याद रहे डॉ. अंबेडकर का जिस माह में इंतकाल हुआ, उस अप्रैल माह को केंद्रित करते हुए पिछले कुछ सालों से पश्चिमी जगत में ‘दलित हिस्टी मंथ’ अर्थात ‘दलित इतिहास के महीने’ में कार्यक्रमों का आयोजन होता है, मकसद यही होता है कि शेष आबादी को जो दलित उत्पीड़न की विशिष्ट समस्या से, उसके संघर्षों से, उसकी जददोजहद से परिचित नहीं है, वह चीजों को समग्रता में जाने।

गूगल न्यूज द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में थे नमोजी सुंदराराजन जो अमेरिका में ही दलित अधिकारों की हिफाजत के लिए लंबे समय से सक्रिय रही हैं तथा-जो इक्वालिटी लैब्ज नामक नानप्राफिट अर्थात एक स्वयंसेवी संस्था की अग्रणी हैं-को बात रखनी थी। दलित अधिकारों की हिफाजत के लिए उनकी स्थिति के दस्तावेजीकरण से लेकर उन पर हो रहे अन्यायों को दूर करने के लिए वह मुहिमों में शामिल रहती आयी हैं।

सब कुछ तय था और अचानक खबर आई कि थेनमोजी का यह प्रस्तावित व्याख्यान कंपनी की तरफ से रद्द कर दिया है। मामला यहीं खतम नहीं हुआ। इस आकस्मिक फैसले में कंपनी की एक सीनियर मैनेजर-जिन्होंने थेनमोजी से संपर्क किया था और उन्हें निमंत्रण दिया था-उन्होंने कंपनी से इस्तीफा दिया। सबसे ताज्जुब की बात इसमें यह भी उजागर हुई है कि इस कॉरपोरेट समूह के प्रमुख भारतीय मूल के सुंदर पिचाई ने-जिनसे इतनी तो उम्मीद की जा सकती थी कि वह जाति की समस्या से वाकिफ होंगे-इस मामले में बिल्कुल मौन मना कर रखा और एक तरह से जाति की जीवंत समस्या के प्रति अपनी गहरी असंवेदनशीलता और पूर्वाग्रह का प्रदर्शन किया।

बाद में पता चला कि कंपनी द्वारा लिया गया यह निर्णय साफ तौर पर दबाव के तहत लिया गया, जिसके पीछे गूगल न्यूज के उन मुलाजिमों द्वारा चलाए गए एक जहरीले अभियान का हाथ था, जिन्होंने आमंत्रित वक्ता को ‘हिंदू द्रोही’ या हिंदू द्वेषी’ कहलाते हुए जबरदस्त मुहिम चलाई थी। कंपनी के लीडरों और गूगल इंट्रानेट तथा उसके हजारों कर्मचारियों की ईमेल सूची में इसे ‘प्रमाणित’ करने के लिए तमाम दस्तावेज साझा किए गए थे। जाहिर सी बात है इस मुहिम के पीछे भारतीय मूल के कंपनी के कर्मचारी आगे थे-जिनका बहुलांश कथित ऊंची जातियों से आता है।

तयशुदा बात है कि उन्हें इस बात से कतई गुरेज नहीं था कि अमेरिका में बसे 15 लाख से अधिक भारतीय-जो अपने आप को ‘मॉडल माइनॉरिटी’ कहलाने में गर्व महसूस करते हैं-जिनमें दलित अमेरिकियों की आबादी डेढ़ प्रतिशत से अधिक नहीं हैं, ऐसी घटनाओं में इजाफा हो रहा है, जहां दलित अमेरिकियों को अपने कथित ऊंची जाति के सहयोगियों के हाथों जातीय उत्पीड़न, गाली गलौज आदि का सामना करना पड़ता है, वहां इस मसले पर अब कुछ करने की आवश्यकता है।

ऐसे विभिन्न हिंदुत्ववादी संगठन तथा रुढ़िवादी हिंदू संगठन जो इसके पहले भी वहां इक्वॅलिटी लैब्ज और दलित अधिकारों की हिमायत के लिए सक्रिय तंजीमों के साथ कार्यस्थलों पर दलित अमेरिकियों को झेलने पड़ते भेदभाव तथा स्कूली पाठयक्रम की अंतर्वस्तु जैसे मसलों पर पहले भी उलझ चुके हैं, वह भी इस मुहिम में पिछले दरवाजे से सक्रिय रहे हैं। सिस्को सिस्टम में जातिगत भेदभाव का मसला अभी चर्चा में ही है। आप कह सकते हैं कि गूगल न्यूज द्वारा जाति के प्रश्न पर व्याख्यान को रद्द करना या अपने संगठन के अंदर मौजूद जातिगत पूर्वाग्रहों पर चर्चा से भी इंकार करना, इन बड़े कॉरपोरेटस के असली चरित्र को उजागर करता है।

चाहे गूगल न्यूज का मसला हो, कैलीफोर्निया राज्य के पाठों की पुनर्रचना करनी हो या सिस्को सिस्टम में दलित कर्मचारी के साथ जारी भेदभाव को जुबां देनी हो, आप बार बार यही पाएंगे कि इक्वालिटी लैब्जस, अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर आदि संगठनों तथा अन्य हिंदुत्ववादी समूहों के बीच-जिनमें से कई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीति से इत्तेफाक रखते हैं-एक दूरी बनी है। यह दूरी बदलाव की ताकतों एवं यथास्थिति की ताकतों के बीच की दूरी के तौर पर मौजूद रहेगी, जब तक चीजें गुणात्मक तौर पर नहीं बदलतीं।

दिलचस्प है कि यथास्थिति की हिमायती हिंदुत्ववादी ताकतें और अमेरिका की श्वेत वर्चस्ववादी ताकतों के बीच एक मसले पर जबरदस्त एका दिखता है। मालूम हो श्वेत वर्चस्ववादी ताकतें ‘क्रिटिकल रेस थियरी’ जैसे विषय को अमेरिकी पाठयक्रम में शामिल करने की विरोधी रही हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके चलते पुराने जख्म कुरेदे जाएंगे और बच्चों के मानस पर विपरीत असर पड़ेगा। अपने संगठित प्रयासों से वे अमेरिका के कई राज्यों में इस विषय के अध्यापन पर पाबंदी लगा चुकी हैं, वही हाल जाति के मसले को शामिल करने को लेकर हिंदुत्ववादी ताकतों का है।


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Dipika Kakar: लीवर सर्जरी के बाद अब दीपिका कक्कड़ ने करवाया ब्रेस्ट कैंसर टेस्ट, जानिए क्यों

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक​ स्वागत...

Sports News: 100वें Test में Mitchell Starcs का धमाका, टेस्ट Cricket में रचा नया इतिहास

नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और...

Dheeraj Kumar Death: ‘ओम नमः शिवाय’, ‘अदालत’ के निर्माता धीरज कुमार का निधन, इंडस्ट्री में शोक

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Nimisha Priya की फांसी पर यमन में लगी रोक, भारत और मुस्लिम नेताओं की पहल लाई राहत

जनवाणी ब्यूरो |नई दिल्ली: भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की...
spot_imgspot_img