Friday, November 14, 2025
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क्या यही है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सच?

गत 2 अक्टूबर यानी विजय दशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो गए। संघ की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा 1925 में विजय दशमी के दिन राष्ट्र निर्माण और सामाजिक जिम्मेदारी के ‘घोषित उद्देश्य’ से की गई थी। संगठन की स्थापना के समय यही बताया गया था कि संघ एक स्वयंसेवी संगठन है, जिसका उद्देश्य देशवासियों में संस्कृति के प्रति जागरूकता, अनुशासन, सेवा और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को बढ़ाना है। मोदी ने संघ के शताब्दी समारोह में कहा, ‘संघ ने पिछली एक सदी में अनगिनत जीवनों को दिशा दी और मजबूत बनाया। जिस तरह सभ्यताएं महान नदियों के किनारे विकसित होती हैं, उसी तरह संघ की धारा के साथ सैकड़ों जीवन खिले और आगे बढ़े हैं। आरएसएस का उद्देश्य हमेशा एक ही रहा राष्ट्र निर्माण।’

यह भी सच है कि स्थापना के समय से ही संघ विवादों में घिरा रहा है। इतना बड़ा संगठन होने के बावजूद संघ पर संस्था के रजिस्टर्ड संस्था न होने के साथ साथ इस पर सांप्रदायिकता फैलाने व धर्म और जाति के आधार पर नफरत फैलाने का भी आरोप लगता रहा है। देश का एक बड़ा वर्ग महात्मा गांधी की हत्या में संघ की सांप्रदायिक विचारधारा को भी जिम्मेदार मानता है। इस बात के भी ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं कि बापू की हत्या के बाद संघ कार्यालय में जश्न मनाया गया था और मिठाइयां बांटी गईं थीं। देश के विभाजन से लेकर आज तक देश में हुए अनेकानेक सांप्रदायिक दंगों में संघ के कार्यकर्ता आरोपित रहे हैं।

इतना ही नहीं बल्कि संघ के अनेक कार्यकर्ताओें पर चरित्रहीन होने, दुष्कर्म व बाल व्यभिचारी होने तक के आरोप लगते रहे हैं। और इसे भी अजीब संयोग समझा जाना चाहिए कि संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर जब संघ, सत्ता व भाजपा संघ के शताब्दी वर्ष के जश्न में डूबे हुए हैं, इसी दौरान संघ द्वारा संचालित शाखाओं में जहां बच्चे ‘संस्कार’ के नाम पर भेजे जाते हैं, केरल के एक युवक द्वारा संघ व इसके अनेक सदस्यों द्वारा उसके साथ बार-बार किए गए यौन शोषण के बाद आत्महत्या कर लेने जैसे कदम ने संघ के वास्तविक चाल चरित्र और चेहरे को उजागर कर दिया है।

केरल के कोट्टायम जिले के एलिकुलम निवासी 26 वर्षीय आईटी प्रोफेशनल युवक, अनंदु आजी ने 9 अक्टूबर 2025 को तिरुवनंतपुरम के थंपानूर स्थित एक होटल के कमरे में आत्महत्या कर ली। अनंदु आजी की आत्महत्या के बाद उनके द्वारा मलयालम भाषा में लिखा गया 7 से 15 पेज लंबा सुसाइड नोट सार्वजनिक हुआ। इस नोट में अनंदु ने बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। जिसमें आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के सदस्यों द्वारा बचपन से उसके साथ लगातार किए जा रहे यौन शोषण और दुष्कर्म का जिक्र है।

26 वर्षीय आईटी प्रोफेशनल युवक सुसाइड से पूर्व लिखे गए अपने अंतिम नोट में लिखता है, ‘मैं अनंदु आजी हूं, कोट्टयम के थम्पल काड से। मैं हमेशा से ही एक शांत और अंतमुर्खी व्यक्ति रहा हूं। लेकिन बचपन से ही मुझे जो दर्द सहना पड़ा, उसने मेरी जिंदगी को तबाह कर दिया। मैं अपनी जिंदगी खत्म कर रहा हूं क्योंकि एंग्यजायटी और लगातार पैनिक अटैक ने मुझे जीना मुश्किल बना दिया है। यह ट्रॉमा का नतीजा है जो मुझे 4 साल की उम्र से सता रहा है। मुझे 4 साल की उम्र से ही एक पड़ोसी व्यक्ति द्वारा लगातार यौन शोषण का शिकार बनाया गया। वह मेरे परिवार के करीब था और मुझे धमकाता था। यह शोषण सालों तक चला। मैं एक रेप विक्टिम हूं।

बचपन में ही मेरी मासूमियत छीन ली गई। मेरे पिता ने मुझे 3-4 साल की उम्र में ही आरएसएस में शामिल करा दिया। मैं शाखा और कैंपों में जाता रहा। वहां मुझे कई आरएसएस सदस्यों के द्वारा यौन शोषण का सामना करना पड़ा। मैं नामित करता हूं ‘एनएम’ को, जो आरएसएस और भाजपा का प्रमुख सदस्य है। उसने मुझे कई बार शोषित किया, खासकर कैंपों के दौरान। अन्य लड़के भी दोहन के शिकार हुए हैं आरएसएस कैंपों में यह एक सिस्टमैटिक पैटर्न है, जहां बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। आरएसएस के कई सदस्यों ने मुझे छुआ, शोषित किया। मैं उनके नाम नहीं जानता क्योंकि डर के मारे चेहरा भी याद नहीं। लेकिन एनएम का नाम मैं कभी नहीं भूलूंगा। वह मेरे लिए एक भयानक स्मृति है।’

अनंदु आजी आगे लिखते हैं, ‘इन घटनाओं ने मुझे डिप्रेशन और एंग्यजायटी का मरीज बना दिया। मैं थेरेपी ले रहा था, लेकिन ट्रामा इतना गहरा था कि मैं रोज पैनिक अटैक से जूझता। बचपन का दर्द मुझे कभी शांति नहीं देता। मैंने लड़ने की कोशिश की, लेकिन अब हार मान ली।’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के जश्न के दौरान एक आईटी प्रोफेशनल युवक द्वारा संगठन के लोगों पर अति गंभीर आरोप लगाते हुये आत्महत्या तक कर लेना निश्चित रूप से यह सवाल जरूर खड़ा करता है कि क्या यही है संघ के ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की सच्चाई?

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