Thursday, April 18, 2024
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अहम होंगे कर्नाटक के नतीजे

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RAJESH MAHESHWARI 2कर्नाटक चुनाव के नतीजे 13 मई को आएंगे। उसी दिन उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के नतीजे भी घोषित होंगे। लेकिन सबकी नजर दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण राज्य कर्नाटक चुनाव के नतीजों पर लगी है। ये चुनाव जहां भाजपा की नाक का सवाल बने हुए हैं, तो वहीं कांग्रेस भी कर्नाटक चुनाव को लेकर काफी उत्साहित दिखाई देती है। यह माना जा रहा है कि कर्नाटक के चुनाव परिणामों का असर अगले साल होने वाले आम चुनाव व कुछ राज्यों में इस साल होने वाले महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की जीत से कांग्रेस समेत विपक्ष के तमाम मंसूबों पर पानी फेरने का काम करेगी। वहीं नतीजे अगर कांग्रेस के पक्ष में रहे तो विपक्ष दोगुने उत्साह के साथ मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने की कोशिशों में जोर-शोर से जुट जाएगा।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि दोनों राष्ट्रीय दलों भाजपा व कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए सब-कुछ दांव पर लगा दिया है। यही वजह कि दोनों दल आसमान से तारे तोड़ लाने के सब्जबाग जनता को दिखा रहे हैं। दरअसल, वर्ष 2019 में कांग्रेस व जनता दल (एस) सरकार के पतन के बाद राज्य में सत्ता में आई भाजपा के लिए अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए बहुत कुछ नहीं है।

यही वजह कि पार्टी समान नागरिक संहिता व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे मुद्दे लेकर सामने आई है। पार्टी कह रही है कि समान नागरिक संहिता लैंगिक न्याय और मुस्लिम महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करेगी। दरअसल, इस राज्य में तेरह फीसदी मुस्लिम आबादी में सेंध लगाने की कोशिश भाजपा कर रही है।

हालांकि, मुस्लिमों के लिए चार फीसदी ओबीसी कोटा खत्म करने के भाजपा सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। लेकिन पार्टी की कोशिश है कि कांग्रेस को एकमुश्त मुस्लिम वोट पड़ने से कैसे रोका जाए। जहां तक भाजपा व कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्रों का प्रश्न है तो दोनों ही लोकलुभावने वायदे पूरे करने में आगे हैं।

भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वायदा किया है कि बीपीएल परिवारों को साल में तीन गैस सिलेंडर युगादी, गणेश चतुर्थी और दीवाली पर मुफ्त दिये जाएंगे। साथ ही पोषण योजना के तहत प्रत्येक बीपीएल परिवार को हर दिन आधा लीटर नंदिनी दूध तथा हर महीने पांच किलो मोटा अनाज दिया जायेगा।

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी रेवड़ियां बांटने में पीछे नहीं रही है। उसने राज्य सरकार द्वारा संचालित बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा, परिवार की महिला मुखिया को दो हजार रुपये मासिक सहायता, दो सौ यूनिट तक बिजली मुफ्त तथा 18 से 25 वर्ष आयु वर्ग के स्नातक बेरोजगारों को तीन हजार तथा डिप्लोमा धारकों को डेढ़ हजार बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा चुनाव घोषणा पत्र में किया है। जनता दल (एस) ने भी अपने घोषणा पत्र में कृषक समुदाय तथा महिला स्वयं सहायता समूहों के लिये लोक लुभावनी घोषणा की है।

कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने चाहे अच्छा प्रदर्शन किया हो या नहीं, लगातार विधानसभा चुनाव जीतने के मामले में बीजेपी अब उतनी मजबूत नहीं रही। वैसा दौर 2015 से 2019 के बीच का था। सरकार ने यदि अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, तो उसे चुनौती का सामना करना पड़ा है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं।

1999 से अब तक के हर चुनाव में बीजेपी वहां दोहरे अंकों में सीटें जीतती रही है। उस समय अपनी लोक शक्ति पार्टी को एनडीए में शामिल करके हेगड़े ने अपना लिंगायत वोट बैंक बीजेपी को ट्रांसफर करवा दिया था। 1999 में 13 सीटों से बढ़ते बढ़ते 2019 में बीजेपी 25 सीटों तक जा पहुंची।

कर्नाटक चुनाव में बजरंगबली का मामला भी बड़ा मुद्दा बनकर कांग्रेस के लिए नई मुसीबत खड़ा कर रहा है। इस तरह से बेहद दिलचस्प हो चले कर्नाटक के चुनाव में ध्रुवीकरण और लोकलुभावन नीतियां बड़ी चुनौती पैदा कर रही हैं। दोनों पार्टियां अपने लक्षित वर्ग को भुनाने के लिये जमीन-आसमान एक कर रही हैं।

कांग्रेस के गढ़ रहे कर्नाटक में पार्टी अपनी खोयी विरासत फिर हासिल करने को बेताब है, वहीं भाजपा अपने इस दक्षिण के द्वार को किसी कीमत पर बंद नहीं होने देना चाहती। जिसके चलते चुनाव के अंतिम चरण में प्रवेश करने के बाद दोनों पार्टियां ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं।

बहरहाल, कमजोर तबकों के सशक्तीकरण के नाम पर मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का खेल बदस्तूर जारी है। राजनीतिक दलों की छवि इतनी निस्तेज हो चली है कि वे मुफ्त की रेवड़ियों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कवायद में जुटे हैं।

कर्नाटक में यदि कांग्रेस को जीत मिली तो, यह इस साल दूसरे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के लिए बूस्टर डोज साबित हो सकती है। दक्षिणी भारत के राज्यों ने अक्सर उत्तरी भारत के राज्यों की तुलना में अलग तरीके से मतदान किया है।

वैसे कर्नाटक के चुनाव महाराष्ट्र या तेलंगाना जैसे पड़ोसी राज्यों को प्रभावित नहीं करते. हालांकि जानकार इससे बिल्कुल राय रखते हैं। मान लें कि इस चुनाव में बीजेपी हार जाती है, तो इससे कांग्रेस और विपक्ष को एक नया जीवन मिलेगा। इन दलों को इससे और ऊर्जा मिलेगी।

कर्नाटक में बीजेपी को कभी भी अपने दम पर बहुमत नहीं मिला। यदि इस बार ऐसा हो गया, तो वो पूरे देश में ढिंढोरा पीटेगी कि उसके पास दक्षिण भारत में चुनावी स्वीकार्यता का सबूत है। वो ये साबित करने की कोशिश भी करेगी कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का कोई असर नहीं हुआ।

इससे समूचे विपक्ष का मनोबल गिरेगा, ठीक वैसे ही जैसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा नतीजों का उनके मनोबल पर पड़ा था। राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार, इस चुनाव में यदि कांग्रेस की हार होती है, तो ये उसके लिए बहुत बड़ा झटका साबित हो सकती है।

यदि इस चुनाव में बीजेपी हारती है, तो इसका मतलब ये होगा कि वो दक्षिण भारत में कोई प्रगति नहीं कर पाई है। लेकिन यदि बीजेपी जीतती है, तो इस जीत से दक्षिणी पड़ोसी राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कार्यकतार्ओं को पर्याप्त ऊर्जा मिलेगी।

पिछले कुछ दिनों से पहलवान धरने पर बैठे हुए हैं। अब उनके आंदोलन में किसान भी शामिल हो रहे हैं। आंदोलनरत पहलवानों को विपक्ष के कई राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त है। विपक्ष के तमाम नेता उनके पर देशवासियों ने देखे हैं।

कर्नाटक में अगर बीजेपी की हार के बाद यह आंदोलन किसान आंदोलन का ही रूप ले लेगा। और पहलवानों का ये अखाड़ा जो सियासी अखाड़े में तब्दील हो चुका है, मोदी सरकार और हरियाणा में खट्टर सरकार की मुश्किलें बढ़ाने का काम करेगा।


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