Wednesday, December 11, 2024
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खतरे में खैरनगर की ‘शाही विरासतें’

  • बचा लो विरासत: कोई नहीं पुरसान-ए-हाल, पुरातत्व विभाग की नजर-ए-इनायत का इंतजार

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: वैसे तो दिल्ली की कई इमारतें मुगल शासन की न जाने कितनी ही यादें समेटे हैं, लेकिन इन यादों से अपना शहर भी वाबस्ता है। यहां भी मुगलकालीन यादों के कुछ निशां अब भी बाकी हैं, लेकिन अब यह अन्तिम सांसे गिन रहे हैं। इन इमारतों के संरक्षण की ओर यदि पुरातत्व विभाग अपनी नजरें इनायत कर ले तो शहर की बची हुई मुगलकालीन इमारतों का वजूद कायम रह सकता है। आज हम अपने पाठकों को शहर के उस बाजार (खैर नगर बाजार) में ले चलेंगे जहां मुगल शासन की यादें अभी भी जिन्दा हैं। हालांकि मुगलकालीन यह बाजार आज व्यवसायिक मंडी में तब्दील हो चुका है।

खैर नगर 400 साल पहले

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आज का खैरनगर बाजार भले ही शहर की प्रमुख व्यवसायिक मंडी बन चुका हो, लेकिन 400 साल पहले यह ‘किला खैरनगर’ हुआ करता था। इस किले को शाहजहां और औरंगजेब के वजीर रहे मुहम्मद खां उर्फ नवाब खैरंदेश खां ने बसाया था। नवाब खैरंदेश खां के वंशजों की 13वीं पीढ़ी के नवाब अफजाल अहमद खां के परिजनों के अनुसार इस किले में प्रवेश के दो मुख्य द्वार थे। इनमें एक दरवाजा अहमद रोड स्थित जिला अस्पताल के सामने था

जबकि दूसरा दरवाजा छतरी वाले पीर से बुढ़ाना गेट की ओर जाने वाले मार्ग पर। अहमद रोड वाले दरवाजे का तो नामोनिशान मिट चुका है, लेकिन छतरी वाले पीर से बुढ़ाना गेट जाने वाले मार्ग पर दूसरे दरवाजे का वजूद थोड़ा बहुत बाकी है, लेकिन वो भी हिचकोले ले रहा हे। लगभग 100 फीट ऊंचे दरवाजे पर यदि अब भी पुरातत्व विभाग की नजर ए इनायत हो जाए तो शहरवासियों को एक एतिहासिक धरोहर के रूप में यह शानदार दरवाजा नसीब हो सकता है।

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दरअसल, खैरंदेश खां ने यह खैरनगर किला अपने रहने के लिए बनवाया था। इस विशाल किले में शीश महल से लेकर शाही मस्जिद तक की तामीर नवाब खैरंदेश खां ने कराई थी। शीश महल का वजूद तो सिर्फ ‘नाम’ का रह गया लेकिन शाही मस्जिद आज भी मौजूद है जो अब हौज वाली मस्जिद के नाम से पहचानी जाती है।

खैरनगर 400 साल बाद

‘किला खैरनगर’ आज शहर की प्रमुख व्यवसायिक मण्डी के रूप में तब्दील हो चुका है। पान और पतंग से लेकर यह दवाओं की प्रमुख मार्केट है। हर साल बसंत पंचमी पर यहां पतंगों का बड़ा बाजार सजता है। मेरठ के आसपास के जनपदों तक से पतंग खरीदने के लिए यहां लोग पहुंचते हैं।

मेरठ में ही सुपुर्द-ए-खाक हैं खैरंदेश खां

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नवाब खैरंदेश खां का निधन 120 साल की उम्र में 1710 में हुआ था। निधन के बाद उनका दफीना (अन्तिम संस्कार) मेरठ में ही किया गया। मेरठ में आज भी उनके मकबरे के कुछ निशां बाकी है। इस निशानी पर यदि अब भी ध्यान न दिया गया तो यह भी इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी। नवाब खैरंदेश खां मकबरा पटेल नगर स्थित हिन्दी भवन के पास है। अब इस मकबरे की टूटी फूटी गुम्बद ही बची है।

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