- पूर्व नेशनल कोच और नॉर्थ जोन हॉकी प्रतियोगिता की आर्गेनाइजर ने जताई चिंता
- हॉकी मैदानों की कमी से जूझ रहे मेरठ के खिलाड़ी
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: जनपद में प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं, यदि कमी है तो सिर्फ उन्हें तराशने की। कमी है सिर्फ उभरते हुए खिलाड़ियों को मंच नहीं मिलने की। बस जरूरत है तो इन्हें जरूरी सुविधाएं मिलनें की। इस समय मेरठ खेलों का हब बनकर उभर रहा है, लेकिन कुछ खेलों के लिए सुविधाओं का आभाव है। इनमें हमारा राष्टÑीय खेल हॉकी भी शामिल है। पूर्व राष्टÑीय महिला हॉकी कोच व वर्तमान में सीबीएसई नॉर्थ जोन हॉकी प्रतियोगिता की आर्गेनाईजर कुमुद त्यागी ने इसको लेकर चिंता जताई है।
कैलाश प्रकाश स्टेडियम में 15 दिन पहले अंतराष्टÑीय स्तर का हॉकी मैदान बनकर खिलाड़ियों के लिए शुरू हो गया है। यहां पर पहली बड़ी हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन जारी है, लेकिन जिस तरह से जिले में हॉकी खिलाड़ियों की संख्या बढ़ रही है, उसके हिसाब से यहां हॉकी मैदानों की कमी है। कुमुद त्यागी ने बताया कि हॉकी का खेल ऐसा नहीं है, जो छोटे से मैदान पर खेला जा सके।
इसके लिए पूरे मैदान की जरूरत होती है, लेकिन आज ज्यादातर स्कूलों व कॉलेजों में हॉकी के मैदान की कमी है। इनमें पढ़ने वाले हॉकी खिलाड़ियों को मैदानों की कमी के चलते पूरी तरह से अभ्यास करनें का अवसर नहीं मिल रहा है। हाकी मैदान समेत कई मुद्दों को लेकर कुमुद त्यागी से बातचीत हुई, जिसमें उनका कहना है कि छोटी जगह पर खेलने से खिलाड़ियों का स्टेमिना प्रभावित होता है।
उन्हें अपने शरीर को खेल के हिसाब से तैयार करनें के लिए बड़े मैदान की जरूरत होती है। खिलाड़ियों को कम जगह मिलने से दौड़नें में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। साथ ही मैदान छोटा होने से खिलाड़ियों को अपनी पोजिशन पर खेलने का भी भरपूर मौका नहीं मिलता।
ग्यारह खिलाड़ियों को एकसाथ खेलना होता है तो उनमें आपस में कॉर्डिनेशन भी नहीं बन पाता है। इसके साथ ही छोटे मैदानों पर खेलने की आदत होने के बाद जब खिलाड़ी किसी बड़े टूर्नामेंट में जानें के लिए चुने जाते है तो उसके लिए उनकी तैयारी पूरी नहीं होती।
क्रिकेट की तरह हॉकी के मैदान भी बने
कुमुद त्यागी का कहना है जिस तरह क्रिकेट के लिए जगह-जगह एकेडमी खुली है उसी तरह हॉकी की भी एकेडमी होनी चाहिए। साथ ही हॉकी के खेल में क्रिकेट की तुलना में पैसा कम है तो इसके लिए भी सरकार को कदम उठानें चाहिए। हॉकी में ज्यादातर गरीब व मध्यम परिवारों के बच्चे ही खेलनें के लिए आगे आते है तो उनके लिए भी केन्द्र सरकार को सोचना चाहिए।