Monday, March 27, 2023
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जीवन का प्रकाश

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एक मछुआरा, एक सुबह, सूर्य उदय से पहले ही नदी किनारे मछली पकड़ने पहुंच गया। उसका पैर किसी चीज से टकरा गया। उसने झुक कर देखा तो पत्थरों से भरा हुआ थैला पड़ा था। उसने अपना जाल किनारे पर रख दिया। वह सूर्य उदय की प्रतीक्षा करने लगा। सूर्य उदय की प्रतीक्षा में एक-एक पत्थर निकाल कर, नदी के शांत जल में फेंकने लगा। हर पत्थर के गिरने के साथ ही छपाक की आवाज सुनाई देती।

उसे सुखद अनुभूति होती। इस तरह एक के एक बाद उसने थैले के कई पत्थरों को नदी के हवाले कर दिया। धीरे-धीरे सूर्य उदय हुआ। तब तक थैले के सभी पत्थर नदी में फेंक चुका था। सिर्फ एक अंतिम पत्थर उसके हाथ में बचा था। सूर्य के प्रकाश में देखते ही उसका दिल बैठ गया , धड़कनें थमने लगीं।

उसने जिन्हें पत्थर समझ कर नदी में फेंक दिया था, वे बहुमूल्य हीरे जवाहरात थे। बस एक अंतिम बहुमूल्य रत्न उसके हाथ में बचा था। उसने अज्ञानता के अंधेरे में सारी संपदा को पत्थर समझ कर नदी के हवाले कर दिया था पर फिर भी वह सौभाग्यशाली था कि उसके हाथ एक अंतिम हीरा तो लगा। अधिकांश लोग इतने भाग्यशाली नहीं होते कि उनके हाथ ऐसी कोई संपदा लग सके।

संपूर्ण जीवन व्यतीत हो जाता है, पर जीवन का अंधकार कभी खत्म नहीं होता, कभी सुबह की रोशनी नहीं मिलती और उसी अंधेरे में जीवन की बहुमूल्य संपदा को व्यर्थ में गवां देते हैं। इस जीवन रूपी बहुमूल्य संपदा के हीरे जवाहरात को हम पहचान ही नहीं पाते। जीवन के हर एक हीरे स्वरूप खुशियों को एक-एक करके गंवा देते हैं। गुरु द्वारा प्रदान, ज्ञान रूपी प्रकाश जिस किसी को मिल जाता है तो उसका शेष बचा जीवन भी संवर ही जाता है।

प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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