- पूर्व अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी पर अल खिदमत फाउंडेशन ने उठाई अंगुली
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: केन्द्र और प्रदेश सरकार से छोटे-छोटे बच्चों को मिलने वाली छात्रवृत्ति पर पूर्व में जिस प्रकार से डाके डाले गए वो अब सबके सामने है। इन मामलों में से कुछ अभी भी परदे के पीछे हैं तो कई में जांच चल रही है। कई मामलों में आरोपी जेल की हवा भी खा चुके हैं, तो कई पर अब भी कार्रवाई की तलवार लटक रही है। 2010-11 में मेरठ में स्कूली मदरसा छात्रवृत्ति में उस समय भूचाल आ गया था जब अल खिदमत फाउंडेशन ने ‘चोर स्कूली मदरसों’ के संचालकों के खिलाफ एक लम्बी तहरीर शुरू की थी।
गौरतलब है कि हाल ही में जिस पूर्व डीएमओ (जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी) सुमन गौतम को कोर्ट ने फिलहाल राहत दी है, उन्ही के दौर में मामला सबसे ज्यादा गरमाया था। करोड़ों रुपये के छात्रवृत्ति घोटाले में फंसी सुमन गौतम को लेकर अल खिदमत फाउंडेशन अब भी एक्टिव है। फाउंडेशन के अध्यक्ष तनसीर अहमद ने इस मामले में दोषियों को सजा और बच्चों को उनका हक दिलाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी।
उन्होंने सबसे पहले इसकी शिकायत 30 मार्च 2012 को तत्कालीन जिलाधिकारी विकास गोठलवाल से की। इसके अलावा ईओडब्ल्यू से लेकर अन्य एजेंसियों तक को इस छात्रवृत्ति घोटाले से अवगत कराया गया। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने शासन से जांच की अनुमति लेकर कार्रवाई शुरू की। 2014 में जब मामला कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने भी प्रकरण की गंभीरता को समझा और भारत सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के सचिव को तलब कर लिया।
जवाब देने के लिए सहायक सॉलिसिटर जनरल तक कोर्ट पहुंचे। यहां तक की अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव तक को तलब किया गया। इसके बाद फिर 2018 में जब कोर्ट ने फिर इस मामले का संज्ञान लिया और पिछले चार साल की कार्रवाई के बारे में पूछा तब ईओडब्ल्यू शाखा ने जवाब दिया कि जांच चल रही है और कार्रवाई के लिए छह माह का समय मांगा।
ईओडब्ल्यू ने अक्टूबर 2018 में लगभग दो दर्जन स्कूली मदरसों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी। 2019 में फिर से 67 स्कूली मदरसों के खिलाफ एफआईआर हुई। इसके बाद दोषी पाए गए कई स्कूली मदरसा संचालकों को जेल की हवा खानी पड़ी तो कई पर अभी भी कार्रवाई की तलवार लटक रही है। उधर, अल खिदमत फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने पूर्व में मेरठ में तैनात रहीं जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी सुमन गौतम को कटघरे में खड़ा किया है।