Tuesday, April 16, 2024
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भाषा को कठिन नहीं सरल बनाए

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  • शायर नवाज देवबंदी ने कहा-बच्चों के साहित्य के बना हिंदी और उर्दू का विकास संभव नहीं
  • जबानों की मासूमियत का मक्कार उठा रहे फायदा

ज्ञान प्रकाश |

मेरठ: उर्दू के महान शायरों में से एक डा. नवाज देवबंदी का मानना है कि भाषा की पेचीदगी और सख्ती को कम करना पड़ेगा अगर आम आदमी तक पहुंचना है।

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में शायर डा.नवाज देवबंदी ने बातचीत में कहा कि हिंदी और उर्दू के बीच पुल बनाकर जिंदगी समाज और मुल्क को खुशगवार बना सकते है। जबानों की मासूमियत से हम नक्कार लोग नाजायज फायदा उठाते है। जबानों के साथ हम लोगों को जो रवैया अपनाया जाना चाहिये उससे नया हिंदुस्तान बनाया जा सकता है।

बल्कि मैं यह महसूस करता हूं अगर हिंदुस्तानियत और भारतीयता को बचाना है तो हिंदी और उर्दू को एक मंच पर आना होगा। तभी नया सबेरा आएगा। हिंदी और उर्दू एक मंच पर आए तो कड़वाहट खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हैरानी की बात यह है कि जब हम हिन्दी और उर्दू वाले जब एक मंच पर आते है तब हिन्दी और उर्दू वाले एक दूसरे को देखकर शर्माते हैं।

फिर वो कुछ बोलते हैं जिसकी समाज को जरुरत है। इसलिये बेहतरीन बात यह है कि हमारी जिंदगी का मंच हो या साहित्य का मंच हो, लेकिन हम दोनों एक जगह बैठे। हिन्दी उर्दू भी और हिन्दी उर्दू वाले तभी शायद शानदार, बेहतरीन और पायदार हिन्दुस्तान और भारत बनेगा। जबानों के साथ यह उम्मीद करना कि यह जॉब ओरियंटेड हो यह उनके साथ ज्यादती है।

जबान एक कल्चर है, तहजीब और परंपरा है। इस तरह की समस्याएं अलग है। आज की नई पीढ़ी को जबानों को इस परिप्रेक्ष्य में रखकर करना चाहिये। अगर रोजगार मिलता है तो उसके फरोग और तरक्की मिलती है। अगर जबान से रोजगार मिलता है तो बढ़िया है।

अगर दो भाषाएं जानते हैं तो दो विचारधाराआें को एक साथ जीते है। इनका नाम ही भारत, इंडिया और हिंदुस्तान है। हमें इससे बेनियाद रहना चाहिये। हिंदी, संस्कृत, पंजाबी आदि भाषाओं से रोजगार मिलने लगे तो और अच्छी बात होगी, लेकिन बहुत अच्छी बात से अच्छी बात यह है कि हम अपनी नस्लों को हिंदी और उर्दू एक साथ सिखायें।

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बच्चों का साहित्य क्यों नहीं

डा. नवाज देवबंदी ने कहा कि हमारी बदनसीबी यह है कि हमारे लिखने वाले बड़े लोगों ने बच्चों के साहित्य को बहुत छोटा समझा है। बच्चों के लिये लिखने से फायदा यह होता है कि शब्दावली बदल जाती है। आठ साल के बच्चों के लिये शब्दों को हलका करना पड़ता है।

सामाजिक भाषा का सृजन भी होता है और पैदाइश भी होती है। भाषा को हलका करने लगता है। उन्होंने कहा कि बचपन में गजल लिखता था तो अखबार से वापसी लिफाफे से वापस आ जाता था। बहुत मायूस होता था तभी एक बुजुर्ग से कहा तो उन्होंने कहा कि बच्चों के लिये लिखा करो।

मुशायरों और कवि सम्मेलनों का असर नहीं

भाषा की पेचीदगी और सख्ती को कम करना पड़ेगा अगर आम आदमी तक पहुंचना है। हमारी जिम्मेदारी यही है कि बच्चों के लिये कविता करने लगे तो एक नई जिंदगी मिलेगी और बच्चों को कवि सम्मेलनों और मुशायरों का अर्थ समझ आएगा।

असलम जमशेदपुरी के कहानी संग्रह बहुरूपिया का विमोचन

उर्दू विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय और अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच के संयुुक्त तत्वावधान में आयोजित हिन्दी दिवस समारोह-2021 के अवसर पर प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी के कहानी संग्रह बहुरूपिया एंव हिन्दी-उर्दू का आपसी रिश्ता शीर्षक से संगोष्ठी एंव विमोचन का आयोजन किया गया। कहानी संग्रह बहुरुपिया का विमोचन मशहूर शायर डा. नवाज देवबंदी ने किया।

डा. नवाज देवबंदी ने कहा कि भाषाएं नफरतों का नहीं प्रेम का प्रतीक होती हैं, राजनेता उन्हें अपने-अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करते हैं। अगर दोनों भाषाओं को जोड़कर महात्मा गांधी की सोच के अनुरूप एक कर दिया जाए तो हमारे देश की बहुत सी समस्याएं स्वयं समाप्त हो जाएंगी।

इस अवसर पर लेखक का परिचय कराते हुए डा. आसिफ अली ने कहा कि प्रो. असलम जमशेदपुरी का अदबी सफर बहुत लम्बा है और काबिले रश्क भी, आप की अब तक 36 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं साथ ही प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी की शख्सियत व फन पर पांच पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं और पांच विश्वविद्यालयों में आपकी कहानियों और पुस्तकों पर शोध हो चुके हैं।

इस अवसर पर सैयद अतहरूद्दीन मैमोरियल सोसायटी ने उर्दू अकादमी के सदस्य नामित होने पर प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी का सम्मान किया। डा. बी एस यादव ने कहा कि हिन्दी उर्दू के दरम्यान गहरा रिश्ता है। ग्रामर और जुमलों की बनावट एक जैसी है और उसे समझने में किसी को कठिनाई नही होती है। मात्र लिपि बदल देने से पुस्तकें हिन्दी-उर्दू हो जाती है।

साहित्य कलामंच के अध्यक्ष डा. रामगोपाल भारतीय ने कहा कि हिन्दी-उर्दू में कोई फर्क नहीं है। हम भाषाओं के नहीं, साहित्य के गुलाम हैं। जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर वेद प्रकाश बटुक ने की। मुख्यातिथि प्रोफेसर वाई विमला प्रतिकुलपति और प्रसिद्व शायर डा. नवाज देवबन्दी उपस्थित रहे और विशिष्ट अतिथियों के रूप में डा. बी एस यादव प्राचार्य डी एन कॉलिज, मेरठ, डा. रामगोपाल भारतीय अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच, उपस्थित हुए। लेखक का परिचय डा. आसिफ अली ने प्रस्तुत किया।

दैनिक जनवाणी के मुख्य संवाददाता ज्ञानप्रकाश ने कहा कि भाषाओं का रिश्ता सांसों और दिल से जुड़ा होता है। हमारी भाषाओं से जो शब्द निकलते हैं वो हिन्दी और उर्दू दोनों के जानकार आसानी से समझ लेते हैं। इसलिए उन्हे उर्दू और हिन्दी के खानों में नहीं बांटा जाना चााहिए।

पत्रकार शाहिद चौधरी ने कहा कि हिन्दी और उर्दू के दरम्यान जो 70 प्रतिशत समानता और 30 प्रतिशत असमानता की जो बात की जाती है वह मात्र एक राजनीतिक हथकंडा है, क्योंकि साहित्यकार और आम जनता के बीच इसमें फर्क नहीं है।पुस्तक समीक्षा चांदनी अब्बासी ने पेश की। स्वागत डा. शादाब अलीम और आभार डा. इरशाद सियानवी ने प्रकट किया। संचालन का दायित्व डा. अलका वशिष्ठ ने निभाया।

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