Thursday, November 30, 2023
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मेहंदी की खेती कम लागत, ज्यादा मुनाफा

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मेहंदी को ‘हिना’ भी कहते हैं। हिना का मतलब खुशबू होता है। ये मूलत: ईरानी पौधा है । भारतीय परिवेश में मेहंदी की एक अहम जगह है। सभी तीज-त्यौहार, शादी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से पहले महिलायें मेंहदी से अपने हाथ-पैरों को सजाती है यही कारण है कि अब भारत में मेहंदी की खेती करने वाले किसानों का भी मुनाफा भी बढ़ता जा रहा है। इसकी खेती करके किसान काफी अच्छी आमदनी ले सकते है ।

उपयुक्त जलवायु व तापमान

मेहंदी एक झाड़ीदार पौधा होता है, जो दिखने में तो चाय की तरह होता है, इसकी शाखाएं कांटेदार, पत्तियां गहरे हरे रंग वाली और नुकीली होती हैं। इसके सफेद फूल गुच्छों में खिलते हैं और उनके कई बीज होते हैं। एक बार मेहंदी लगाने के बाद कई साल तक इसकी फसल मिलती है। कम पानी वाले इलाकों में मेंहदी के झाड़ीदार पौधे खूब पनपते हैं। भारत में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ में मेंहदी की खेती के लिये सही मिट्टी और जलवायु होती है, हालांकि अभी भारत के कुल मेंहदी उत्पादन का 90 प्रतिशत अकेले राजस्थान में ही उगाया जा रहा है। मेहंदी का पौधा शुष्क और उष्णकटिबंधीय हर तरह की जलवायु में अच्छी तरह विकास करता है। कम वर्षा वाले इलाकों से लेकर अधिक वर्षा वाले इलाकों में 30 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान के बीच इसका अच्छी क्वालिटी वाली पैदावार ले सकते हैं ।

उपयुक्त मिट्टी का चयन

मेहंदी की खेती करने के लिए बलुई मिट्टी उपयुक्त है। साथ ही इसकी खेती कंकरीली, पथरीली, हल्की, भारी, लवणीय, क्षारीय, परती, बंजर, अनुपजाऊ और बारानी जमीन लवणीय, क्षारीय हर तरह की भूमि पर भी हो जाती है । भूमि का पीएच मान 7.5 से 8.5 होना चाहिए. दरअसल, मेहंदी का पौधा शुष्क और उष्णकटिबंधीय हर तरह की जलवायु में अच्छी तरह विकास करता है ।

खेती करने का सबसे सही समय

मेहंदी की बुआई का सबसे सटीक समय फरवरी और मार्च के महीने में होता है। इसे सीधे बीजों द्वारा या इसके पौधे लगाकर खेती शुरू कर सकते हैं। खेत के अंदर मौजूद तमाम खरपतवार को उखाड़ कर फेंक दें। कल्टीवेटर से खेत में जुताई करने के बाद पाटा चला कर इसे समतल कर लें। इसके बाद मेहंदी की रोपाई करें।

खेत की तैयारी

जिस खेत में मेहंदी की खेती करनी है, उस खेत में मॉनसून की पहली बरसात के साथ 2-3 बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके पाटा लगाएं। गहरी जुताई से लाभ यह होगा कि मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाएंगे। जुताई से पहले खेत में 8-10 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाल दें। इससे पैदावार अच्छी होती है। किसी किसी खेत में दीमक की बड़ी समस्या रहती है इसलिए दीमक नियंत्रण के लिए मिथाइल पाराथियॉन का 10 प्रतिशत वाला चूर्ण भी मिट्टी में मिलाना चाहिए।

बीजोपचार

मेहंदी के पौधों की रोपाई से पहले जड़ों का बीजोपचार भी किया जाता है, ताकि कवक रोगों के कारण फसल को नुकसान ना पहुंचे । मेंहदी की जड़ों का बीजोपचार करने के लिये क्लोरोपाइरिफास या नीम-गोमूत्र के घोल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं ।

उपयुक्त बीज की मात्रा

मेहंदी की खेती करने के लिए प्रति एक हेक्टेयर के लिए 20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। नर्सरी में बुआई से पहले 10-15 दिनों तक लगातार मेहंदी के बीजों के पानी में भिगोकर रखा जाता है। इसके पानी को रोजाना बदलना चाहिए और फिर हल्की छाया में सुखाना चाहिए। इसके बाद पौधों को लाइन के बीच 50 सेमी और पौध के बीच 30 सेमी की दूरी रखकर रोपाई कर दी जाती है ।

नर्सरी वरोपाई करना

मेहंदी की व्यवसायिक खेती के किसान चाहें तो बीज या कलम से भी पौधा तैयार कर सकते हैं। मेहंदी की जल्दी पैदावार के लिए कमल विधि से पौधे तैयार करना फायदेमंद रहता है। वहीं अगर बीज से पौधा तैयार करना है तो सबसे पहले उन्नत किस्म के बीजों का अकुंरण और 3 प्रतिशत नमक के घोल में बीज उपचार जरूर करना चाहिए। प्रति हेक्टेयर जमीन के हिसाब से मेहंदी के 50 से 60 किलोग्राम बीजों से पौधशाला तैयार कर सकते हैं। जब पौधा 40 सेमी से अधिक बड़ा हो जाए तो जड़ों से 8 सेमी की लंबाई के बाद पौधे की कटिंग की जाती है।

सिंचाई के लिए बरतें विशेष सावधानी

विशेषज्ञों के अनुसार, सिर्फ मेहंदी की बुआई के वक़्त ही मिट्टी को अच्छी तरह से गीला होना चाहिए। इसके बाद मेहंदी की खेती में सिंचाई नहीं करनी चाहिए। इससे पत्तों के रंजक (रंगने वाले) तत्वों में कमी आ जाती है। लेकिन अधिक सूखा ग्रस्त इलाके वाली जमीनों में लागू नहीं होती। अगर भूमि बहुत सूखी है तो कम से कम एक सिंचाई जरूर कर दें।

फसल की कटाई एवं पैदावार

मेहंदी की शाखाओं के निचले हिस्से की पत्तियों को पीला पड़ने और झड़ने से पहले काट लेना चाहिए। मेहंदी की पहली कटाई मार्च-अप्रैल और दूसरी कटाई अक्टूबर-नवम्बर में जमीन से लगभग 2-3 इंच ऊपर से करनी चाहिए। मेहंदी की बारानी फसल से औसतन 1200 से 1600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सूखी पत्तियां प्राप्त होती हैं। हालांकि, शुरुआती तीन साल में पैदावार 500 से 700 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक भी रह सकती है। मेहंदी का बागान 20 से 30 साल तक खूब उपजाऊ और लाभप्रद रहता है।

कम लागत में अधिक मनाफा

मेहंदी की खेती करने में ज्यादा लागत नहीं आती है । कम लागत में ज्यादा मुनाफा मिलता है। इसकी मांग पूरे समय रहती है। उपज को बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेच सीधा मुनाफा कमा सकते हैं। इस फसल के खराब होने के चांसेस भी बहुत कम होते हैं। इससे किसानों को नुकसान भी नहीं होता है। औषधीय गुणों की वजह से मेहंदी की फसल जानवर भी नहीं खाते हैं।


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