Thursday, April 25, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादबांग्लादेश में अल्पसंख्यक

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक

- Advertisement -

SAMVAD


APOORV NANDबांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले जारी हैं। सरकार के सख्त रुख दिखलाने के बावजूद दंगाइयों पर गोली चलाने के बाद भी हमले फैल गए हैं। अवामी लीग की सरकार के मंत्रियों और प्रधानमंत्री ने बार-बार कहा है कि अपराधियों को खोज निकाला जाएगा और कड़ी सजा दी जाएगी। लेकिन हिंसा रुकी नहीं है। हिंसा के लिए बांग्लादेश की जमाते इस्लामी और उसके छात्र संगठन के अलावा खिलाफत आंदोलन के एक धड़े और बांग्लादेश के प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और दूसरे ह्यइस्लामीह्ण संगठनों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। सरकार का कहना है कि यह हिंसा पूरी तरह सुनियोजित साजिश के तहत की गई है और इरादा देश की शांति और उसके सामाजिक तानेबाने को छिन्न-भिन्न करने का है।

उधर, बीएनपी ने शासक दल पर ही आरोप लगाया है कि आगामी चुनाव में जनता का ध्यान उसकी तानाशाही की तरफ से भटकाने के लिए उसी ने यह हिंसा भड़काई है या होने दी है।
बांग्लादेश दूसरा देश है लेकिन वहां भी इस हिंसा को सांप्रदायिक हिंसा कहा जा रहा है।

वहां भी अखबार और मानवाधिकार कार्यकर्ता और छात्र और अध्यापक पूछ रहे हैं कि आखिर इस देश में अल्पसंख्यकों पर इस तरह का जुल्म कब तक चलता रहेगा। ‘ढाका ट्रिब्यून’ ने अपने संपादकीय में लिखा है कि ‘यह सब कुछ काफी लंबे वक्त से चल रहा है।

सांप्रदायिक हिंसा को काबू करने में हमने कितनी ही कामयाबी क्यों न हासिल की हो, यह बदशक्ल हिंसा बार-बार, साल दर साल सर उठा ही लेती है।’

इस तरह की हिंसा के लिए हर बार कोई एक वजह दी जाती है, जिससे आप हिंसा से ज्यादा वजह पर चर्चा करने लगें और हिंसा जायज नहीं तो उस वजह की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया जान पड़ने लगे।

इस तरह उसकी जिम्मेदारी हिंसा को संगठित करने वालों और उसमें शामिल लोगों के साथ, या उनसे ज्यादा उस वजह की वजह पर भी डाल दी जा सके।

सो, इस बार हिंसा का उकसावा बतलाया जा रहा है कोमिल्ला में एक पूजा के पंडाल में पाक किताब कुरआन का रख दिया जाना। इसकी खबर फैलते देर नहीं लगी और हिंसा भड़कने में उससे भी कम देर लगी।

फिर सोशल मीडिया पर काबा शरीफ को अपमानित करने वाली किसी युवक की कथित टिप्पणी के बहाने एक दूसरी जगह, रंगपुर में हिंसा हुई। एक के बाद एक शहरों और इलाकों में यह हिंसा की गई।

पूजा के पंडाल ध्वस्त किए गए, प्रतिमाओं को तोड़ा गया, घरों और दुकानों में आगजनी की गई, हिंदुओं पर हमला किया गया। पुलिस का कहना है कि उसने हर जगह हिंसक लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है, पुलिस के लोग भी जख़्मी हुए हैं। हिंदुओं पर हिंसा करने वालों में कुछ मारे भी गए हैं।

पुलिस ने हजारों दंगाइयों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है और अनेक को गिरफ्तार किया है। लेकिन अब तक हिंदुओं का काफी नुकसान हो चुका है। पूछा जा रहा है कि जब इसकी आशंका थी तो पहले ही इसे रोकने के लिए सरकार ने कदम क्यों नहीं उठाए।

बांग्लादेश में कोई पहली बार अल्पसंख्यकों में से किसी एक समुदाय पर हिंसा हुई हो, ऐसा नहीं। हिंदुओं, बौद्धों, ईसाइयों के खिलाफ अलग-अलग समय हिंसा होती रही है। बांग्लादेश के जन्म के समय जो ख्व़ाब देखा गया था, वह अब तक ख़्वाब ही रहा।

वह यह कि एक भाषा आधारित धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का जन्म हुआ है। यह प्रयोग शुरू से ही मुश्किल में है।

जन्म के 4 साल के भीतर ही इस विचार पर बड़ा आक्रमण किया गया जब बांग्लादेश के जनक माने जाने वाले शेख मुजीबुर्रहमान का तख्तापलट दिया गया और उनकी, उनके परिजनों और सहयोगियों के साथ हत्या कर दी गई।

बांग्लादेश में वे तत्व, जो इस प्रकार के राष्ट्र के विचार के खिलाफ थे धीरे-धीरे मजबूत होते चले गए। सच तो यह भी है कि इस देश के जन्म में भूमिका निभाने वाले भारत में बांग्लादेश के निर्माण को लेकर जो जश्न था, वह एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के बनने का जितना न था, उतना पाकिस्तान को तोड़ देने का था।

यह बेईमानी बाद में ढिठाई से बांग्लादेश और उसके निवासियों के खिलाफ घृणा प्रचार में बदल गई।

बांग्लादेश भी बांग्लाभाषी लेकिन मुसलमान देश ही बनता चला गया जिसमें बाकी अल्पसंख्यक बहुसंख्यक मुसलमानों की मेहरबानी पर रहें। 23 अक्टूबर से हिंदू बौद्ध ईसाई यूनिटी काउंसिल ने अनशन का ऐलान किया है।

अध्यापकों ने इस हिंसा की तीव्र निंदा की है। यह बांग्लादेश की स्थापना की स्वर्ण जयंती का वर्ष है। मात्र 50 वर्ष में एक बड़ी महत्वाकांक्षा को सांप्रदायिक क्षुद्रता ने पराजित कर दिया है, ऐसा भय होता है।

यह चुनौती बांग्लादेश के मुसलमानों के सामने है कि क्या वे इस पराजय को स्वीकार कर लेंगे या अपनी कमजोरियों को पहचान कर 1971 में शुरू की गई साहस यात्रा के रास्ते की बाधाओं को हटाते हुए आगे बढ़ेंगे।

बांग्लादेश का उपयोग भारत के लिए यह न होना चाहिए कि इस हिंसा के दृश्य दिखलाकर मुसलमानों के खिलाफ घृणा और हिंसा और भड़काई जाए। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी ने यह करना शुरू कर दिया है।

ऐतिहासिक और भौगोलिक कारणों से एक देश में जो कुछ होगा उसका असर दूसरे पर पड़ता रहा है इसीलिए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने भारत सरकार को कहा है कि वह अपने यहां सांप्रदायिक तत्त्वों पर लगाम लगाए।

लेकिन जिस सरकार का गृह मंत्री और शेष मंत्री बांग्लादेशियों के खिलाफ नफरत फैलाने की भाषा के अलावा कुछ न जानते हों, उससे यह उम्मीद कुछ ज्यादा है।

फिर भी, हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम बांग्लादेश के हिंदुओं की मदद इसी तरह कर सकते हैं कि अपने देश में अल्पसंख्यक, विशेषकर मुसलमान और ईसाई विरोधी हिंसा को काबू करें।

बांग्लादेश में हिंसा के इस नए चक्र से शायद हम एक दक्षिण एशियाई पहल के बारे में सोच सकें जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा और उनकी बराबरी के हक के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते का निर्माण करे।

जिस देश में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं, वह सभ्य ही कैसे कहला सकता है? खुद को काजी नजरुल इस्लाम का देश कहने वाला देश क्या उनके लायक भी रह गया है?


SAMVAD

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments