Monday, July 1, 2024
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मोबाइल, बच्चे और शिक्षा

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Pankaj Chaturvadi jpg 1पिछले दिनों दिल्ली में शिक्षा मंत्री धर्मेंद प्रधान ने यूनेस्को के सहयोग से तैयार एक कार्टून किताब के विमोचन के अवसर पर बच्चों से पूछ लिया कि वे कितना समय मोबाइल-कम्प्यूटर पर देते हैं। उन्होंने बच्चों से पूछा कि उनका स्क्रीम टाइम क्या है। इस सवाल पर वहां मौजूद बच्चे दाएं-बाएं देखने लगे। हालांकि कुछ बच्चों ने सकुचाते हुए तीन से चार घंटे बताया। इस पर प्रधान ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्यादा स्क्रीन टाइम नुकसानदायक है। इससे तीन दिन पहले ही आंध्र प्रदेश सरकार ने स्कूलों में फोन पर पाबन्दी लगा दी, सरकार ने यह कदम यूनेस्को की उस रिपोर्ट के बाद उठाया, जिसमें मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से बच्चों के मानसिक विकास पर विपरीत असर पड़ने की बात कही थी। कोविड से पहले दुनिया में फ्रस जैसे देश ने भी शिक्षा में सेल फोन पर पूरी तरह पाबंदी लगाई थी। कोलंबिया, अमेरिका, इटली, सिंगापूर, बंगलादेश जैसे देशों में कक्षा में मोबाइल पर रोक है। भारत में फिलहाल यह अटपटा लग रहा है, क्योंकि अभी डेढ़ साल पहले हमारा सारा स्कूली शिक्षा तंत्र ही सेल फोन से संचालित था। यही नहीं नई शिक्षा नीति-2020, जो देश में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव का दस्तावेज है, में मोबाइल और डिजिटल डिवाइस के सलीके से प्रयोग को प्रोत्साहित किया गया है।

वैसे भारत में सस्ता इंटरनेट और साथ में कम दाम का स्मार्ट फोन अपराध का बड़ा कारण बना हुआ है-खासकर किशोरों में यौन अपराध हों या मारापीटी या फिर शेखी बघारने को किए जा रहे दुस्साहस। दिल्ली से सटे नोएडा में स्कूल के बच्चों ने अपनी ही टीचर का गंदा वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल दिया। क्षणिक आवेश में किसी के प्रति आकर्षित हो गई स्कूली लड़कियों के अश्लील वीडियो क्लिप से इंटरनेट संसार पटा पड़ा हैं।

इसके विपरीत कई बच्चों के लिए अनजाना रास्ता तलाशना हो या किसी गूढ़ विषय का हल या फिर देश-दुनिया के जानकारी या फिर अपने विरुद्धा हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना; इन सभी में मोबाइल ने नई ताकत और राह दी है, खासकर युवा लड़कियों को मोबाइल ने बेहद सहारा दिया है। हालांकि यह भी सच है की भारत में मोबाइल धारक बच्चों का आंकडा बहुत कम है। खासकर सरकारी स्कूल में जाने वाले बच्चों में आधे से अधिक बच्चे अभी अपने माता-पिता का फोन मांग कर ही कम चलाते हैं, लेकिन यह बात सच है कि यदि बच्चे क्लास में फोन ले कर बैठते हैं वे बोर्ड और पुस्तकों के स्थान पर मोबाइल पर ज्यादा ध्यान देते हैं।

इससे उनके सीखने और याद रखने की गति तो प्रभावित हो ही रही है, बच्चों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर हो रहा है। अब वे खेल के मैदान में पसीना बहाने के बनिस्पत आभासी दुनिया में व्यस्त रहते है, इससे उनमें मोटापा, आलस आ रहा है, आंखें कमजोर होना, याददाश्त कमजोर होना भी इसके प्रभाव दिखे, पहले बच्चे जिस गिनती, पहाड़े, स्पेलिंग या तथ्य को अपनी स्मृति में रखते थे, अब वे सर्च इंजन की चाहत में उसे याद नहीं रखते, यहां तक की कई बच्चों को अपने घर का फोन नंबर तक याद नहीं था।

सबसे बड़ी बात सेल फोन के साथ बच्चा भीड़ के बीच भी अकेला रहता है और धीरे-धीरे सामुदायिकता या सहअस्तित्व की भावना से वह दूर हो जाता है। अधिक गुस्सा आना या हिंसक होना इसी प्रवृति के दुष्परिणाम हैं। यह कटु सत्य है कि स्कूल में फोन कई किस्म की बुराइयों को जन्म दे रहा है। आज फोन में खेल, संगीत, वीडियो, जैसे कई ऐसे एप उपलब्ध हैं, जिसमें बच्चे का मन लगना ही है और इससे उसकी शिक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही इम्तेहान में धोखाधड़ी और नकल का एक बड़ा औजार यह बन गया है।

यही नहीं, इसके कारण अपराध भी हो रहे हैं। निरंकुश अश्लीलता स्मार्ट फोन पर किशोर बच्चों के लिए सबसे बड़ा जहर है। चूंकि ये फोन महंगे भी होते हैं, इसलिए अक्सर बेहतर फोन खरीदने या ज्यादा इंटरनेट पेक खरीदने के लिए बच्चे चोरी जैसे काम भी करने लगते हैं। विद्यालयों में फोन ले कर जा रहे बच्चों में से बड़ी संख्या धमकियों को भी झेलती है, कई एक शोषण का शिकार भी होते हैं। मोबाइल, विद्यालय और शिक्षा का एक दूसरा पहलू भी है।

जिस देश में मोबाइल कनेक्शन की संख्या देश की कुल आबादी के लगभग करीब पहुंच रही हो, जहां किशोर ही नहीं 12 साल के बच्चे के लिए मोबाइल स्कूली-बस्ते की तरह अनिवार्य बनता जा रहा है, वहां बच्चों को डिजिटल साक्षरता, जिज्ञासा, सृजनशीलता, पहल और सामाजिक कौशलों की जरूरत है। हम पुस्तकों में पढ़ाते हैं कि गाय रंभाती है या शेर दहाड़ता है। कोई भी शिक्षक यह सब अब मोबाइल पर सहजता से बच्चों को दिखा कर अपने पाठ को कम शब्दों में सहजता से समझा सकता है।

मोबाइल पर सर्च इंजन का इस्तेमाल, वेबसाइट पर उपलब्ध सामग्री में यह चीन्हना कि कोन सी पुष्ट-तथ्य वाली नहीं है, अपने पाठ में पढ़ाए जा रहे स्थान, ध्वनि, रंग, आकृति को तलाशना व बूझना प्राथमिक शिक्षा में शमिल होना चाहिए। किसी दृश्य को चित्र या वीडियो के रूप में सुरक्षित रखना एक कला के साथ-साथ सतर्कता का भी पाठ है। मैंने अपने रास्ते में कठफोडवा देखा, यह जंगल महकमे के लिए सूचना हो सकती है कि हमारे यहां यह पक्षी भी आ गया है। साथ ही आवाजों को रिकार्ड करना, भी महत्वूपर्ण कार्य है। मोबाइल का सही तरीके से इस्तेमाल खुद को शिक्षक कहने वालों के लिए एक खतरा सरीखा है। हमारे यहां बच्चों को मोबाइल के सटीक इस्तेमाल का कोई पाठ किताबों में है ही नहीं।

भारत में शिक्षा का अधिकार व कई अन्य कानूनों के जरिये बच्चों के स्कूल में पंजीयन का आंकड़ा और साक्षरता दर में वृद्धि निश्चित ही उत्साहवर्धक है, लेकिन जब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात आती है तो यह आंकड़ा हमें शर्माने को मजबूर करता है कि हमारे यहां आज भी 10 लाख शिक्षकों की कमी है। इस खाई को पाटने में डिजिटल माध्यम की सफल भूमिका कोरोना काल में देखी जा चुकी है।

वैसे बगैर किसी दंड के अंदर प्रदेश का कानून कितना कारगर होगा यह तो वक़्त ही बताएगा लेकिन डिजिटल दुनिया पर आधुनिक हो रहे विद्यालयों में इस कदम से एक बहस जरुर शुरू हो गई है, खासतौर पर भारत जैसे देश में जहां अशिक्षा, असमानता, बेरोजगारी और गरीबी से कुंठित युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जहां कक्षा आठ के बाद स्कूल से ड्राप आउट बहुत ज्यादा है, लेकिन कई राज्यों में स्कूल के मास्टर को स्मार्ट फोन पर सेल्फी के साथ हाजिरी लगाना अनिवार्य है, ऐसे देश में विद्यालय में बच्चे ही नहीं शिक्षक के भी सेल फोन के इस्तेमाल की सीमाएं, पाबंदियां अवश्य लागू होना चाहिए। खेद है कि भारत का सुप्रीम कोर्ट गत छह साल से सरकार से अश्लील वेबसाईट पर पाबंदी के आदेश दे रहा है और सरकार उस पर अधूरे मन से कार्यवाही करती है और अगले ही दिन वे नंगी साईट फिर खुल जाती हैं। ऐसे में हमारे यहां मोबाइल पर कक्षा में पूर्ण पाबंदी और अनिवार्यता के बीच सामंजस्य जैसे मसले पर सभी पक्षकारों के बीच बहस अवश्य होनी चाहिए।


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