- Advertisement -
बालिका गौंझा बड़ी चंचल थी। वह अक्सर दूसरे लोगों की नकल उतारकर अपनी सहेलियों को हंसाया करती थी। एक दिन गौंझा अपने भाई-बहनों के साथ बैठी थी। सब आपस में हंसी-मजाक कर रहे थे। गौंझा ने बात-बात पर डांटने वाली अपनी एक अध्यापिका की नकल उतार कर दिखाई तो सबका हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया। हंसी के फव्वारे छूट ही रहे थे।
सब बारी-बारी से किसी ने किसी की नकल उतार रहे थे और कहकहे लगा रहे थे कि अचानक बच्चों के कमरे की लाइट बुझ गई। बच्चों ने देखा कि सड़क पर और पूरे पड़ोस में रोशनी थी, केवल उन्हीं के कमरे में लाइट नहीं थी। वे परेशान हो गए और वहां से भागकर अपनी मां के कमरे में गए तो देखा कि वहां पर भी लाइट जल रही थी।
बच्चों ने पूछा, मां, हमारे कमरे की लाइट कैसे चली गई? सब जगह तो लाइट आ रही है। यह सुनकर मां बोली, तुम्हारे कमरे की लाइट मैंने बंद की है। इस पर बच्चे हैरानी से मां से बोले, मां, तुमने हमारे कमरे की लाइट क्यों बंद की? मां बोली, दूसरों की आलोचना और नकल उतारने के लिए बिजली का खर्चा मुझसे सहन नहीं होगा।
ऐसी बेकार की बातों के लिए बिजली जलाना उसका दुरुपयोग करना है। यह सुनकर बच्चों ने अपना मुंह नीचे झुका लिया। बच्चों को अपनी गलती का अहसास होते देखकर मां उनसे बोली, किसी के व्यक्तिगत जीवन के बारे मे बातें करना और आलोचना करना सभ्य लोगों का काम नहीं है।
बच्चों ने मां की यह बात गांठ बांध ली। बालिका गौंझा पर इसका इतना प्रभाव पड़ा कि उसने अपना संपूर्ण जीवन ही मानव सेवा के नाम कर दिया। बालिका गौंझा को ही आज पूरा विश्व मदर टेरेसा के नाम से जानता है।
- Advertisement -