दुनिया के बड़े देशों से तुलना की जाए तो भारत का आज भी बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता बहुत अधिक है। देश में कोयला संकट को लेकर आ रही खबरों के बीच कुछ राज्यों में तो घंटों बिजली की कटौती भी शुरू हो गई है। भारत में बिजली के उत्पादन का तकरीबन सत्तर फीसदी हिस्सा कोयले से चलने वाले पावर प्लांट से आता है। दुनिया के सबसे बड़े कोयला उत्पादक देशों में शामिल भारत आज कोयला संकट के कगार पर खड़ा है। हमें अब कोयले से अलग हरित ऊर्जा की ओर अपना ध्यान अधिक से अधिक केंद्रित करना होगा क्योंकि आने वाले समय में कोयले का स्रोत खत्म हो जाएंगे। सर्वविदित है कि सरकार हरित र्इंधन की दिशा में अनेक पहल और प्रयास कर भी रही है। हाल ही में सरकार ने कार्बन उत्सर्जन कम करने वाले र्इंधन के रूप में हाइड्रोजन को प्रमुखता देनी शुरू की है और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन शुरू किया जा चुका है। आज स्वच्छ ऊर्जा की जरूरत पूरी दुनिया की अनिवार्यता बन गई है। यह भारत के लिए एक और कारण से भी महत्वपूर्ण है। देश में फ्यूल की जितनी डिमांड है, उसका अधकिकतर भाग हम आयात करते हैं, जिसके लिए देश को हर साल 160 अरब डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। इससे विदेशी मुद्रा का बहिर्गमन होता है। हालांकि भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत और उत्सर्जन वैश्विक औसत के आधे से भी कम है। बता दें कि हम ग्रीनहाउस गैसों के दुनिया के तीसरे सबसे बड़े उत्सर्जक हैं। बहरहाल, भारत में एक नई हरित क्रांति शुरू हो चुकी है। पुरानी हरित क्रांति ने तो भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया था। लेकिन अब इस नई हरित क्रांति से भारत को ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में
मदद करेगी।
हरित हाइड्रोजन ऊर्जा के लिए प्रयास-देश में हरित स्रोतों से प्राप्त हाइड्रोजन, जिसे ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है, के उपयोग को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार का कहना है कि उर्वरक यूनिट, तेल शोधन संयंत्रों और स्टील प्लांट में इसके उपयोग को जल्द ही अनिवार्य कर दिया जाएगा। बता दें कि हाइड्रोजन का उपयोग करके ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है। इंडियन आॅयल कॉरपोरेशन भी कुछ समय से ऊर्जागहन इलेक्ट्रोलिसिस और उच्च दबाव सम्मिश्रण लागतों को दरकिनार करके, प्राकृतिक करने के लिए अपनी पेंटेट कॉम्पैक्ट सुधार प्रक्रिया का उपयोग कर रहा है। इस र्इंधन से सीएनजी पर चलने वाली बसों से कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
हाइड्रोजन र्इंधन अधिक कुशल और लागत प्रभावी है। बड़े पैमाने पर इनके आयात की भी आवश्यकता नहीं होगी। बता दें कि आज देश में एकत्रित कचरे और बायोमास के जरिए बायोमीथेन बनाने का प्रयास किया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि लगभग 95 फीसद बायोमीथेन को सीएनजी ही माना जाता है। यह परिवहन के साधनों के लिए भी उपयुक्त है। इसका दूसरा स्वरूप हाइड्रोजन मिश्रित सीएनजी होता है।
निकट भविष्य में, हाइड्रोजन र्इंधन सेल आॅटोमोबाइल के लिए एक अत्यंत आशाजनक विकल्प है। इलेक्ट्रिक वाहन र्इंधन कोशिकाओं पर अच्छी तरह से चल सकते है। लागत-प्रभावी हरित हाइड्रोजन, तेल और इस्पात जैसे ऊर्जा गहन उद्योगों में कार्बन उत्सर्जन को काफी कम कर सकता है। इससे देश कोयले पर अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे समाप्त कर सकता है और वर्तमान में उत्पन्न कोयला समस्या भविष्य के लिए संकट भी नहीं बनेगा।
हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन की राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि एक किलो हाइड्रोजन में एक किलो डीजल से करीब तीन गुना अधिक ऊर्जा होती है। परंतु हल्की होने के कारण सामान्य घनत्व पर एक किलो हाइड्रोजन को 11,000 लीटर जगह चाहिए, जबकि एक किलो डीजल को केवल एक लीटर। इसके भंडारण और वितरण के लिए विशेष टैंकों में संकुचित करके रखना होगा या 250 डिग्री सेल्सियस ऋणात्मक दर पर तरल बनाना होगा। यह प्रक्रिया सीएनजी और एलपीजी के प्रबंधन से ज्यादा जटिल होती है।
बिजली की कीमत के अनुसार हरित हाइड्रोजन प्रति किलोग्राम 3.5 डॉलर से 6.5 डॉलर मूल्य पर उत्पादित हो सकती है और आने वाले समय में नई तकनीक के जरिये पहले दो और फिर एक डॉलर प्रति किलो पर लाया जा सकेगा। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती भंडारण की होगी। हमें भंडारण की ऐसी सुविधा विकसित करनी होगी, जिससे हाइड्रोजन ऊर्जा का वाणिज्यिक इस्तेमाल संभव हो सके। भविष्य में हरित हाइड्रोजन के कई लाभ होंगे लेकिन इसके लिए सबसे पहले हमें इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना होगा। साथ ही जो उद्यमी इस नए क्षेत्र में स्टार्टअप लाना चाहते हों, उन्हें जरूरी फंड जुटाने में सक्षम बनाना होगा।
नतीजन, अब तेजी के साथ हाइड्रोजन के सभी संभव स्रोतों की तलाश की जानी चाहिए। इसमें बायोमास और जीवाश्म र्इंधन जैसे स्रोतों से इसकी खोज पहले ही की जा रही है। अन्य साधनों से भी इस र्इंधन को ढूंढा जाना चाहिए, जिससे बढ़ते प्रदूषण को कम किया जा सके। हाइड्रोजन ऊर्जा को लोकप्रिय बनाने के लिए हमें सर्वप्रथम हाइड्रोजन स्टेशन की एक बड़ी श्रृंखला खड़ी करनी होगी। सुरक्षा मानकों को पूरा करते हुए यदि हम इस दिशा में ठोस कदम उठा पाए तो पर्यावरण संरक्षण के साथ भारत के लिए आर्थिक तरक्की का नया द्वार हाइड्रोजन ऊर्जा के माध्यम से खुलेगा। साथ ही इससे ग्रीन हाउस गैसों में कटौती का वह लक्ष्य भी पूरा होगा। हाइड्रोजन, नवीकरणीय ऊर्जा माध्यमों से उत्पन्न अतिरिक्त बिजली के भंडारण के लिए भी बेहतर साबित हो सकती है।
कुल मिलाकर ऊर्जा नीति की तैयारी भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार की उथलपुथल के प्रभाव से बचाने में मदद करेगी। भारत सौर, पवन और जैव ऊर्जा, भंडारण प्रणाली, हरित हाइड्रोजन तथा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित करके 2030 तक 4,50 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के अपने लक्ष्य के आधार पर आगे बढ़ते हुए अपनी ऊर्जा लक्ष्य को अंतिम रूप देगा। यही वजह की सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत भी की है। बहरहाल, सभी के लिए किफायती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करने के वैश्विक लक्ष्य के लिए लगभग दस वर्ष बचे हैं, इसलिए मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धताओं और ऊर्जा पहुंच के विस्तार, नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित करने तथा ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के नवोन्मेषी उपायों की आवश्यकता है।