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ना वो धरती है ना आसमान हो तुम।
फासले ही फासले दरम्यान हो तुम।।
तुम्हारे चेहरों पर ये हवाइयां कैसी उडी।
तीर तो चल चुके बस कमान हो तुम।।
मौसम है चापलूसी और चाटुकारिता का।
भोली जनता पर कितने मेहरबान हो तुम।।
यूं तो सत्ता की चाबी है जनता के हाथ मे
बांट कर उजाला बुझे दीपक समान हो तुम।।
दल बदलूओ में लगी अब तो जैसे होड़
ताक पर रखे स्वय? स्वाभिमान हो तुम।।
सियासत की कढी में उबाल ही उबाल।
सिसकते प्रश्न खामोश जुबान हो तुम।।
जनता जनार्दन के बिना मुश्किल है जीना
कीड़े-मकोड़े ही सही मेरा हिंदुस्तान हो तुम।।
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