Friday, December 13, 2024
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नाम लेप्रोसी वार्ड, लेकिन मरीजों की नो एंट्री

  • वार्ड भी डाक्टर भी और भरा पूरा स्टाफ भी फिर भी भर्ती नहीं मरीज
  • भारी भरकम रकम खर्च कर बनाया गया विद्युत शव दाह गृह की भी अकाल मौत

शेखर शर्मा |

मेरठ: एलएलआरएम मेडिकल का लेप्रोसी (कोढ़ पीड़ित रोगियों के लिए) वार्ड मेडिकल प्रशासन की लापरवाही के कोढ़ से ग्रसित है। मेडिकल परिसर में मोर्चरी के समीप बिलकुल अलग थलग स्थान पर बनाया गया था, लेकिन लापरवाही व अनदेखी के चलते लेप्रोसी के मरीजों को यहां इलाज के बजाय निराशा मिलती है। यहां अघोषित रूप से नो इलाज का बोर्ड टांग दिया गया है।

ऐसा नहीं कि संसाधना की कोई कमी है जिसके चलते इस वार्ड को लापरवाही का कोढ़ लग गया हो। दरअसल, लेप्रोसी वार्ड के नाम पर संसाधन ही नहीं बल्कि स्टॉफ और चिकित्सक के समेत तमाम व्यवस्थाएं की गई थीं, लेकिन इस वार्ड का रजिस्टर बताता है कि सालों से यहां के डाक्टरों न तो किसी मरीज को भर्ती किया है न ही किसी का इलाज ही किया है। यहां तक कि लेप्रोसी के नाम पर ओपीडी में एक पर्चा तक नहीं काट गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस रोग से पीड़ित लोगों के इलाज के नाम पर किस प्रकार की छुआछूत बरती जा रही है।

ईमानदार मकसद था कारण

मेडिकल में लेप्रोसी वार्ड बनाने के पीछे सरकार और लाला लाजपत राय मेडिकल के सरदार पटेल अस्पताल के तत्कालीन चिकित्सकों व प्रशासकों का मकसद बेहद ईमानदार था। कोढ़ जैसी बीमारी से पीड़ित लोगों को समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके। शुरूआत में इस वार्ड में अच्छी संख्या में पीड़ित मरीजों को भर्ती भी किया जाता था, लेकिन बाद में यह समाज से तिरस्कृत लोगों के लिए तैयार किया गया यह वार्ड मेडिकल प्रशासन की लापरवाही व अनदेखी के कोढ़ की बीमारी की चपेट में आ गया।

नेस्तनाबूत विद्युत शवदाह गृह

उपचार के दौरान कोढ़ से संक्रमित जिन मरीजों की मौत हो जाती थी उनके अंतिम संस्कार के लिए मेडिकल में ही विद्युत शवदाह गृह बनाया गया था। दरअसल संक्रमित मरीजों को समाज ही नहीं बल्कि परिजन भी त्याग देते थे। उनका तिरस्कार किया जाता था। उपचार के दौरान यदि किसी संक्रमित की मौत हो जाती थी तो परिजन शव तक लेने नहीं आते थे।

इसके मद्देनजर ही सरकार ने विद्युत शव दाह गृह का निर्माण कराया था। जब मरीज भर्ती किए जाते थे तो उपचार के दौरान मौत होने पर इसी विद्युत शव दाह गृह में उनका अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल की तर्ज पर ही किया जाता था, लेकिन भारी भरकम रकम खर्च कर तैयार कराया गया विद्युत शवदाह गृह भी अपनी पहचान खो चुका है।

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