एक ऐतिहासिक काल में भारत का अभिन्न अंग रहा है बर्मा। वर्ष 1989 में यूनियन आॅफ बर्मा का नया नामकरण यूनियन आॅफ म्यांमार किया गया। तकरीबन 6 करोड़ आबादी वाला म्यांमार की 1400 किलोमीटर लंबी सरहद भारत के साथ जुड़ी हुई है। अत: म्यांमार में घटित घटनाओं का भारत पर सीधा प्रभाव पड़ता रहा है। पहली फरवरी का दिन म्यांमार में दस वर्ष पहले उदित हुए जनतंत्र पर कहर बनकर टूट पड़ा। एक फरवरी को म्यांमार सेना द्वारा जनतांत्रिक हुकूमत का तख्ता पटल करके राजसत्ता पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया गया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011 में राजनेताओं और सेना के मध्य अंजाम दिए गए समझौते के तहत एक नया संविधान म्यांमार में लागू किया गया। नए संविधान द्वारा सेना के लिए 25 प्रतिशत सीटें संसद में आरक्षित कर दी गई। नवंबर, 2020 के आम चुनाव में आंग सान सूकी के नेतृत्व में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी (एनएलडी) को तकरीबन अस्सी प्रतिशत वोट हासिल हुए। आंग सान सूकी की पार्टी एनएलडी ने संसद की 476 सीचों में से 396 सीटें पर फतहयाब होकर इतिहास रच दिया। म्यांमार सेना द्वारा समर्थित यूनियन सॉलिडेरटी एंड डैवलपमैंट पार्टी को अपनी शर्मनाक शिकस्त का अंजाम देखना पड़ा।
सेना और विपक्ष द्वारा आम चुनाव में धांधली अंजाम देने के इल्जामात एनएलडी पर आयद किए जाते रहे। सेना के कमांडर इन चीफ जनरल मिन आंग ह्लाइंग तथा सेना के अन्य जनरल वस्तुत: आंग सान सूकी की इतनी बड़ी चुनावी कामयाबी को बरदाश्त नहीं कर सके और जनतांत्रिक हुकूमत का तख्तापलट करके एक वर्ष के लिए म्यांमार पर आपातकाल और मार्शल लॉ थोप दिया गया। आंग सान सूकी, राष्ट्रपति विन मियेंट और एनएलडी के प्राय: सभी राजनेताओं को सैन्य हिरासत में ले लिया गया है।
बर्मा को वर्ष 1935 के बर्मा एक्ट के माध्यम से भारत से पृथक करके अलग देश का दर्जा प्रदान कर दिया। ब्रिटिश राज के विरुद्ध बर्मा के एक क्रांतिकारी सेनानायक जनरल आंग सान द्वारा स्वातंत्रय सेनानियों का नेतृत्व किया गया। दुर्भाग्यवश आजादी प्राप्त होने से ठीक पहले ही केवल 32 वर्ष की आयु में जनरल आंग सान को कत्ल कर दिया गया। बर्मा को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी 1947 में प्राप्त हुई थी। म्यांमार में वर्ष 1962 में सैन्य कमांडर जनरल नेविन द्वारा राजसत्ता पर एकाधिकार किया गया। तभी से म्यांमार में जनतंत्र के लिए कोई स्थान शेष ही नहीं रहा। म्यांमार में जनतंत्र की स्थापना के लिए एक दीर्घकालीन जन संघर्ष प्रारम्भ हुआ। जनतंत्र स्थापित करने के संघर्ष की बागडोर स्वातंत्रय सेनानी जनरल आंग सान की बेटी सूकी द्वारा वर्ष 1988 में संभाली गई, जबकि वह इग्लैंड से वापस म्यांमार में लौटकर आर्इं। म्यांमार के सैन्य जुंटा द्वारा सूकाई को तकरीबन तीस वर्षों तक सैन्य हिरासत में रखा गया। जनतांत्रिक संघर्ष में अप्रतिम जुझारु वीरता प्रदर्शित करने के लिए सूकाई को 1991 में नोबल अवार्ड से नवाजा गया।
तकरीबन पचास वर्षों के सैन्य जुंटा के तानाशाही शासन के तत्पश्चात 2011 में जनतांत्रितक व्यवस्था स्थापित करने का आगाज हुआ। म्यांमार में जनतंत्र स्थापना को दस वर्ष अभी पूरे भी नहीं हुए हैं कि फिर उसको सैनिक जुंटा के बूटों के तले रौंदा जाने लगा है। म्यांमार सहित सैन्य शासन के आधीन रहने वाले प्राय: सभी देशों की दुर्भाग्यपूर्ण नियति बन गई है, कि जनतंत्र वहां अधिक वक्त तक टिककर रह नहीं पाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है पाकिस्तान, जहां कि प्रत्यक्ष तौर पर और अप्रत्यक्ष रूप से पाक फौज की हुकूमत विगत 70 वर्ष से निरंतर कायम बनी हुई है। जनतंत्र के नकाब की पृष्ठभूमि में डीपस्टेट पाक फौज की हुकूमत सदैव कायम बनी रहती है। इजिप्ट अफ्रीका एक ऐसा ही मुल्क है जिस सैन्य शासन बाकायदा कायम बना रहा है। फौजी राजसत्ता का वास्तविक परिपोषण उसकी विराट आर्थिक सत्ता द्वारा किया जाता है, पाक फौजी हुक्मरानों के निजी स्वामित्व वस्तुत: विशाल भूखंडों और 90 फीसदी कारखानों और मिलों की पूंजी पर निरंतर कायम है। फौजी शासन में राजसत्ता पर आधिपत्य करने का अंतरसंबंध अर्थसत्ता के उपर स्थापित किए गए स्वामित्व से ही निरंतर कायम बना हुआ है। जो राजनीतिक हालात पाकिस्तान में कायम रहे हैं, तकरीबन वही हालात म्यांमार में भी निरंतर बने रहे हैं।
म्यांमार की तकरीबन अस्सी फीसदी राष्ट्रीय संपदा पर सैन्य शासकों का स्वामित्व और आधिपत्य बाकायदा स्थापित है। जनतांत्रिक सरकारें सदैव ही सैन्य शासकों की एकाधिकारवादी अर्थसत्ता को प्रबल चुनौतियां प्रस्तुत करती हैं। म्यांमार में ही यही घटित हुआ है जबकि राखइन प्रांत में रौहिंगिया संप्रदाय के मुस्लिमों को सेना द्वारा बेदखल किया गया तो सांग आन सूकी का सेना के साथ गहन अंतर्द्वंद्व प्रारम्भ हुआ। खुले तौर पर सेना के विरुद्ध आक्रोश प्रकट करने के स्थान सूकाई द्वारा राजसत्ता में आंतरिक अंतरद्वंद्व को संचालित किया गया। आम चुनाव में सूकाई की पार्टी को हासिल हुई जबरदस्त लोकप्रियता से सैन्य जनरल बेहद बौखला और घबरा उठे और अंतत: जनतंत्रातिक सरकार का तख्ता पलट दिया गया।
भारत एक जनतांत्रिक राष्ट्र है और पड़ोसी देश म्यांमार को लेकर उसका चिंतित होना स्वाभाविक है। म्यांमार के सैन्य तख्तापटल में चीन का किरदार संभावित हो सकता है, किंतु इसका कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है। भारत का बहुत अच्छा कूटनीतिक संबंध म्यांमार सेना के जनरलों से और राजनेताओं से कायम बना रहा है। भारत के पूर्वोत्तर के पृथकतावादी विद्रोही गुटों का सफाया करने में म्यांमार के सैन्य जनरलों ने भारतीय सशस्त्र बलों की सदैव भरपूर मदद अंजाम दी है। म्यांमार की सर्वोच्च लीडर आंग सान सूकी के साथ भारत के ताल्लुकात बहुत अच्छे रहे हैं। जनतांत्रिक देश होने कारण भारत द्वारा म्यांमार में जनतंत्र की स्थापना का जोरदार खैरमकदम किया गया था।
भारत यकीनन चाहेगा कि म्यांमार को चीन के प्रभाव क्षेत्र से मुक्त होना चाहिए, क्योंकि भारत को चारों तरफ से घेर लेने की कूटनीति स्ट्रिंग आॅफ पर्लस के तहत पर म्यांमार भी एक प्रमुख देश रहा है। म्यांमार के सैन्य कमांडरों ने 2015 तक चीन को म्यांमार के समस्त प्रोजेक्टों से बेदखल कर दिया था। अत: भारत को बौद्ध देश म्यांमार से अपने सांस्कृतिक संबंधों को प्रगाढ करने के साथ ही साथ आर्थिक संबंधों को शक्तिशाली बनाने पर ध्यान केंद्रीत करना चाहिए।