- श्रम आयुक्त ने 20 बड़े निर्माण चिन्हित करके भौतिक सत्यापन के दिए निर्देश
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: जियोग्राफिक इन्फोर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) से मैपिंग कर पता लगाकर मेरठ महानगर में लगभग 18 हजार भवनों को चिन्हित किया गया है। इनमें से करीब 12 हजार के निर्माण में 10 लाख रुपये या अधिक की लागत आने के आधार पर नोटिस जारी किए गए हैं। इन सभी से कुल लागत की एक फीसदी रकम श्रम आयुक्त कार्यालय में जमा करने को कहा गया है।
विभाग की ओर से जारी इन नोटिस में मकान की कुल लागत और सेस की रकम का ब्योरा भी दिया गया है। वहीं श्रम आयुक्त शकुंतला गौतम की ओर से जारी किए गए निर्देश में मेरठ के 20 बड़े भवनों की वास्तविक स्थिति का भौतिक सत्यापन करते हुए इसकी रिपोर्ट मुख्यालय भेजने को कहा गया है। इस रकम का इस्तेमाल श्रमिकों के हित में चलाई जा रहीं योजनाओं में किया जाएगा।
श्रम विभाग के सूत्रों की जानकारी के अनुसार पिछले दिनों जियोग्राफिक इन्फोर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) से मैपिंग कराते हुए मेरठ महानगर में होन ेवाले निर्माणों के बारे में सर्वे कराया गया। जिसमें 10 लाख या अधिक की लागत से बनने वाले 18 हजार के करीब भवनों की सूची बनाकर विभाग को सौंप दी गई। इसकी जांच करते हुए उप श्रमायुक्त कार्यालय से 12 हजार भवन स्वामियों को नोटिस जारी कर दिए गए।
जिनमें उनके भवन के नक्शे और निर्माण में आने वाली लागत के बारे में अवगत कराते हुए निर्माण लागत का एक प्रतिशत श्रमिक उपकर कार्यालय में जमा करने को कहा गया है। सूत्रों के मुताबिक 1996 भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम के तहत 10 लाख या अधिक की लागत से बनने वाले भवनों से एक प्रतिशत श्रमिक उपकर वसूले जाने का प्रावधान रखा गया है।
मेरठ से करोड़ों रुपये वार्षिक उपकर वसूलते हुए श्रमिकों के लिए चलाई जाने वाली 15 से ज्यादा कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च किया जाता है। इनमें शिशु हितलाभ योजना, मातृत्व हितलाभ योजना, बालिका मदद योजना, कन्या विवाह सहायता योजना, सौर ऊर्जा सहायता योजना, मजदूरों को साइकिल वितरण, निर्माण कामगार अन्त्येष्टि सहायता योजना आदि शामिल हैं।
सहायक श्रम आयुक्त घनश्याम ने इस बारे में बताया कि भवन की लागत कवर्ड एरिया के आधार पर तय की जाती है। इसके अलावा पीडब्ल्यूडी, एलडीए और राजकीय निर्माण निगम जैसी सरकारी एजेंसियां हर साल प्रति स्क्वायर फुट के हिसाब से लागत तय करती हैं। इन एजेंसियों के न्यूनतम रेट के आधार पर भी मकान की लागत तय की जाती है। उन्होंने बताया कि मेरठ में जीआईएस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर करीब 18 हजार भवनों को चिन्हित करके रिपोर्ट तैयार की गई है।
इनमें से करीब 12 हजार को श्रमिक उपकर जमा कराने के संबंध में नोटिस जारी किए जा चुके हैं। शेष छह हजार भवनों की लागत को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं मानी गई है। इसी कारण इन्हें नोटिस जारी करने से पहले विभाग की ओर से लागत मूल्यांकन का कार्य फाइनल किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि इनमें से अधिकतर को शीघ्र ही नोटिस भेज दिए जाएंगे। वहीं इस मामले में कुछ शिकायतें भी विभाग के मुख्यालय तक पहुंची है। जिनके आधार पर श्रम आयुक्त शकुंतला गौतम ने उप श्रमायुक्त के लिए एक आदेश जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि वे सूची की गहनता से छानबीन करते हुए अपने जिले के 20 सबसे बड़े निर्माण की सूची बनाएं। इन सभी निर्माण की भौतिक जांच के लिए टीम भेजकर वास्तविक स्थिति के संबंध में रिपोर्ट लेकर मुख्यालय प्रेषित करें।
श्रमिक उपकर के संबंध में यह बना है नियम
श्रम विभाग के नियमों के अनुसार कोई भी व्यावसायिक निर्माण करने के लिए श्रमिक उपकर जमा कराना आवश्यक है। भवन निर्माण होने आई कुल लागत की एक फीसदी धनराशि लेबर सेस से होती है। निर्माण शुरू होने के पहले अनुमानित लागत के आधार पर यह जमा होता है। कार्य पूर्ण होने के बाद फिर से जांच होती है और लागत बढ़ने पर शेष बचे लेबर सेस की धनराशि जमा कराई जाती है। वहीं आवासीय निर्माण 10 लाख से अधिक की लागत का है, तो इसमें भी लेबर सेस जमा होता है।