- एनजीटी कोर्ट में हुई सुनवाई, डीएम भी हुए वर्चुअली पेश
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: हजारों साल बाद महाभारतकालीन बूढ़ी गंगा को इंसाफ मिलने की आस जगी है। नेचुरल साइंसेज ट्रस्ट की मेहनत रंग लाती दिख रही है। सोमवार को इस मामले में एनजीटी कोर्ट में सुनवाई हुई जिसमें जिलाधिकारी दीपक मीणा भी वर्चुअली पेश हुए। उन्होंने आश्वासन दिया कि तीन माह के भीतर बूढ़ी गंगा के सभी पहलुओं पर काम कर इसके सुचारु प्रवाह का रास्ता खोला जाएगा।
दरअसल, बूढ़ी गंगा को उसका हक दिलवाने के लिए नेचुरल साइंसेज ट्रस्ट पिछले लम्बे अरसे से संघर्ष कर रहा है। वो इस मामले को राजभवन से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक उठा चुका है। एनजीटी में भी इस प्रकरण की सुनवाई चल रही है। सोमवार को एनजीटी कोर्ट में इस प्रकरण की फिर से सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान डीएम दीपक मीणा भी सभी डॉक्यूमेंट्स के साथ वर्चुअली पेश हुए। कोर्ट के समक्ष जिलाधिकारी ने तीन महीने का समय मांगा और विश्वास दिलाया कि अप्रैल तक इस मामले में सभी आवश्यक कदम उठाकर बूढ़ी गंगा के प्रवाह को सुचारू कर दिया जाएगा।
सरकारी विभागों की बूढ़ी गंगा से आखिर दुश्मनी क्या?
बूढ़ी गंगा और सरकारी विभागों के बीच आखिर दुश्मनी की वजह क्या है यह समझ से परे है। एक ओर जहां नेचुरल साइंसेज ट्रस्ट बूढ़ी गंगा के वजूद को बचाने में लगा है वहीं कुछ सरकारी विभाग बूढ़ी गंगा के वजूद से ही टकरा रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा रोड़ा सिंचाई विभाग है जिसने बूढ़ी गंगा के वजूद को ही नकार दिया है। बकौल प्रो. प्रियंक भारती सिंचाई विभाग ने बूढ़ी गंगा को नदी नहीं माना है।
सिंचाई विभाग के अनुसार इसका कोई नोटिफिकेशन ही उपलब्ध नहीं है। यहां प्रियंक भारती ने सवाल उठाया है कि क्या नदियों का भी कोई नोटिफिकेशन होता है। उधर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने बूढ़ी गंगा को सिर्फ एक नहर बताया है। महाभारतकालीन बूढ़ी गंगा इतिहास की साक्षी है, यह सभी जानते हैं। इसके हर पहलु से सभी वाकिफ हैं। बावजूद इसके कुछ सरकारी विभाग आखिर क्यों इसकी सच्चाई को स्वीकार करने से हिचक रहे हैं
यह अपने आप में बड़ा सवाल है। यहां यह भी काबिल ए गौर है कि बूढ़ी गंगा का नाम आजादी के बाद खतौनियों तक में गलत दर्ज है। इसे कहीं भूड़ तो कहीं बढ़ गंगा दर्शाया गया है, जबकि 18वीं सदी के सभी दस्तावेजों में यह बुढ़ी गंगा के नाम से ही दर्ज है।