- काली नदी किनारे बसे गांवों के हैंडपंप उगल रहे ‘जहर’
- प्रदूषित पानी पीने से एक दर्जन से ज्यादा की कैंसर से हो चुकी है मौत
- किडनी, आंतों में इंफेक्शन आदि बीमारियों से जूझ रहे कई लोग
- जहरीले पानी की अभी तक प्रशासन की ओर से नहीं हुई कोई पहल
- एक दर्जन से ज्यादा गांव प्रभावित, नहीं है स्वच्छ पानी की व्यवस्था
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: बात 70 के दशक की है। गंगा की सहायक नदी काली नदी तब कल-कल बहा करती थी। इसके किनारों पर आस्था के दीप जगमगाते थे। आज वहीं, काली नदी कैंसर जैसी बीमारी बांट रही है। कई लोगों की जान ले चुकी है। देश की सबसे प्रदूषित नदी का तमगा इसे मिल चुका है। सरकारें आईं और गईं, लेकिन सब इस नदी को मरते हुए देखते रहे। काली नदी के किनारे बसे गांवों के हैंडपंप जहर उगल रहे हैं।
जिसका पानी पीने करीब एक दर्जन से ज्यादा कैंसर रोग से पीड़ित लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, कई लोग किडनी इंफेक्शन समेत अन्य गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। बावजूद इसके प्रशासन ने आजतक गांव और कस्बे में लगे हैंडपंपों के पानी की जांच करवाने की जहमत तक नहीं उठाई।
सैनी और बहचौला गांव में काली नदी किनारे करीब दो दर्जन से ज्यादा गांव हैं। जहां के भूजल में काली नदी का दूषित पानी समा चुका है। ऐसे में गांवों में लगे हैंडपंपों द्वारा जमीन से निकलने वाला जहरीला पानी कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों का कारण बनता जा रहा है। एक दर्जन से ज्यादा ग्रामीणों की कैंसर से मौत भी हो चुकी है। काली नदी किनारे बसे गांवों में लगे हैंडपंप का पानी पीने के कारण लोगों की कैंसर से मौत हो चुकी है।
वहीं, बहचौला गांव में कैंसर की गंभीर बीमारी से कई लोग जूझ रहे हैं। उधर, देदवा गांव में काफी संख्या में लोग किडनी इंफेक्शन, पथरी, आंतों में इन्फेक्शन समेत गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार काली नदी के पानी में अत्यधिक मात्रा में सीसी, मैग्नीज और लोहा जैसे भारी तत्व मिले हैं। नदी के पानी में आक्सीजन की मात्रा बिलकुल भी नहीं है।
मेरठ में कैंसर की चपेट में लोग
काली नदी में दूषित पानी की वजह से इन गांवों में लोग बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं। काली नदी के किनारे बसे गांवों में भी बीमारी का यही हाल है। दौराला ब्लॉक के पनवाड़ी, अझौता, देदवा, इकलौता, खेड़ी, समौली, भराला, जलालपुर, उलखपुर आदि कई गांव, जो काली नदी के किनारे बसे हैं उनमें कैंसर सहित दूसरी बीमारियों ने लोगों को अपनी चपेट में लिया है।
हर घर है बीमार, हर दिल में है एक ही दर्द
मोती जैसा पानी देने वाली काली नदी अब काल बन गई है। नदी किनारे बसे गांवों में जिंदगी बेहाल हो गई है। नासूर बन गई समस्या पर सियासी दलों के साथ जनप्रतिनिधियों ने खामोशी साध रखी है। पानी में हानिकारक रसायनों की मात्रा बढ़ने से बीमारियां पनप रही हैं। पश्चिम के कई जिलों में पीने का पानी जहरीला होने के कारण सैकड़ों जानें जा चुकी हैं,
हजारों लोग बीमार हैं। काली नदी के प्रदूषण के कारण मुजफ्फरनगर से मेरठ तक कई गांवों में लोगों को पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। मीट प्लांटों के अलावा पेपर इंडस्ट्री, चर्म शोधन इकाइयां, शुगर इंडस्ट्री, स्पोर्ट्स गुड्स इंडस्ट्री जैसे उद्योगों में भी प्रदूषण के मानकों का पालन न होने के कारण पेयजल दूषित हो रहा है।
मेरठ में कैंसर से हो चुकी हैं कई मौतें
सबसे ज्यादा मौतें देदवा गांव में हुई हैं। यहां पर करीब 50 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। जबकि पनवाड़ी, अझौता, इकलौता, समौली व खेड़ी गांवों की बात करें तो यहां भी कैंसर और अन्य बीमारियों से काफी संख्या में मौत हो चुकी हैं। इसके अलावा गांव धंजू, कौल, कुझला, अतराड़ा, दौराला, अजोहटा, नंगली, नंगला शेखू, कस्तला, जयभीमनगर, दुल्हेड़ा, पल्हेड़ा, पिथोलकर, पूठी, खजूरी, नंगलामल, कलीना, किनौनी, रसूलपुर, डूंगर, पूठखास, पूठी, बहलोलपुर, सठला, खरखौदा, गेसुपुर, भदौली, माडरा, कुढ़ला, मऊखास, भटीपुरा, माछरा, रजपुरा, सैनी, बना, मसूरी, फिटकरी, कमालपुर, धीरखेड़ा, हाजीपुर, खरखौदा, कैली आदि गांव ऐसे हैं, जिनमें पेयजल की स्थिति औद्योगिक इकाइयों और काली नदी के कारण काफी खराब है।
सैनी गांव में बीमारियों की जड़ काली नदी
काली नदी मवाना रोड स्थित सैनी गांव के पास से निकलती है। इससे उसमें मौजूद गंदगी और जहरीले पदार्थ आसपास का माहौल प्रदूषित कर रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि गांव के हैंडपंपों का पानी अगर 10 मिनट तक भरकर रख दें तो वह पीला हो जाता है। ग्राम प्रधान और ग्रामीणों ने कई बार शासन को नदी की गंदगी से होने वाली परेशानियों से अवगत कराया है,
लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पिछले दिनों गांव में अलग-अलग कई बच्चों की आंखों में जलन के साथ, पेट की गंभीर बीमारियां सामने आई थीं। सैनी गांव के अलावा पास के गांव छिलौरा, उल्देपुर, मैथना, नंगली, बहचौला आदि भी इस नदी की गंदगी से प्रभावित हो रहे हैं। काली नदी में सिर्फ प्रदूषणयुक्त पानी बह रहा है, लेकिन सरकारी मशीनरी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है।
सफाई के प्रयास सिर्फ कागजों पर
काली नदी का पानी अगर साफ हो जाए तो किसानों की खेती को जीवनदान मिल सकता है। काली नदी में सफाई कराने के लिए कई बार प्लान बनाया गया। एक-दो स्थानों पर काली नदी किनारे साफ-सफाई भी कराई गई, लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात। आज भी काली नदी गंदी है। इस नदी का पानी काला ही दिखता है। वह और एक गंदे नाले के रूप में नजर आती है।
जनवाणी संग ग्रामीणों ने सांझा किया दर्द
- मजबूर है जहरीला पानी पीने को ग्रामीण
मजबूरी में पीना पड़ रहा जहरीला पानी पीने के पानी की गांव में कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है।
ऐसे में दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। -राजेंद्र चौहान, पूर्व प्रधान बहचौला
- कैंसर की गंभीर बीमारी मिल रही विरासत में
कस्बे में काली नदी के करीब 100 मीटर की दूरी पर बनी पानी की टंकी से ही कस्बे में पानी की सप्लाई होती है।
ऐसे में जमीन के अंदर से पानी आने के कारण लोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारी ग्रामीणों को विरासत में मिल रही है।
-अंकुर चौहान, संयोजक ग्राम विकास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
- आजतक नहीं हुई प्रदूषित पानी की जांच
बहचौला गांव में दूषित पानी पीने से कई लोगों की कैंसर से मौत हो चुकी है।
शासन-प्रशासन की ओर से आज तक पानी की जांच करने कोई नहीं आया। -मोंटी बिल्टोरिया, बहचौला ग्राम प्रधान
- नहीं होती कोई सुनवाई
पहले जो जीवनदायिनी थी, वह काली नदी अब कालदायिनी बन गई है।
कई बार दूषित पानी की शिकायत की जा चुकी है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। -देवेंद्र चौहान, डायरेक्टर सहकारी समिति, बहचौला
- पानी के साथ आते हैं कीड़े
काली नदी प्रदूषित होने के कारण जल स्त्रोतों तक प्रदूषण पहुंच रहा है। काली नदी किनारे के गांवों में जो हैंडपंप लगे हैं,
उनमें कई ऐसे हैं, जिनमें पानी के साथ कीड़े तक आते हैं। -सतनपाल, ठेकेदार आरपीजी इंडस्ट्रीज, बहचौला