- प्लानिंग बनी, लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं दिखी
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: बेगमपुल को जाम से मुक्ति के लिए ओवर ब्रिज का प्लान बना था। इसके लिए मेडा ने डीपीआर के लिए दो करोड़ रुपये भी दिये थे। तब मेट्रो का प्लान चल रहा था। इसलिए उस दौरान ये कहा गया था कि बेगपमुल पर ओवर ब्रिज मेट्रो के साथ बनेगा। मेट्रो की प्लानिंग गढ़ रोड की अभी धरातल पर नहीं हैं। रैपिड रेल की पटरी पर ही मेट्रो भी दौड़ेगी, जो मोदीपुरम से परतापुर तक चलेगी।
इसमें बेगमपुल से गढ़ रोड का कोई प्लान नहीं हैं। प्लान कागजों पर अवश्य बना, लेकिन फिर इससे रुट से हाथ खींच लिये गए। डीपीआर भी बनी। बेगपमुल पर पुल निर्माण के लिए कदम तत्कालीन कमिश्नर डा. प्रभात कुमार ने बढ़ाये। उनके तबादले के साथ ही ये प्लान भी धड़ाम हो गय। बेगमपुल को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए ये सब प्लानिंग की गई थी, लेकिन ये प्लानिंग सिर्फ कागजी साबित हुई।
बेगमपुल पर ओवर ब्रिज निर्माण का व्यापारियों ने भी विरोध कर दिया था। व्यापारियों का कहना था कि ब्रिज बनने से उनका कारोबार ठप हो जाएगा। क्योंकि ओवर ब्रिज एलिवेटिड बनना था। जो ऊपर से ही जाना था। बेगमपुल के आसपास में जो मार्केट हैं, उनके व्यापारियों ने इसका विरोध किया था। पैमाइश भी आरंभ तब की गई थी, तो व्यापारियों ने टीम का विरोध कर दिया था। महत्वपूर्ण बात ये है कि बेगमपुल पर ओवर ब्रिज बनाकर जनता को जाम से मुक्ति दिलाने की दिशा में कागजी घोड़े अवश्य दौड़ाये गए, लेकिन इसके बाद बात आगे नहीं बढ़ी।
अब सरकारी सिस्टम में यहां पर ओवर ब्रिज का कोई जिक्र नहीं कर रहा हैं। जनप्रतिनिधि भी चुप्पी साधे हुए हैं। शहर के भीतर में जाम का बुरा हाल हैं, लेकिन शहर के भीतर को लेकर आला अफसर कोई प्लानिंग नहीं बना रहे हैं। क्योंकि हर रोज जनता को जाम से जूझने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया जात हैं। ट्रैफिक नियंत्रण के लिए लालबत्ती तो शहर भर में लग गई, लेकिन इस तरह का कोई प्लान मेडा या फिर नगर निगम की तरफ से नहीं बना, जो लंबे समय तक जनता को राहत जाम से दे सके।
यही नहीं, बच्चा पार्क से जलीकोठी तक एलिवेटिड रोड के निर्माण का प्लान तैयार हुआ। इसकी डीपीआर भी बनी, लेकिन ये प्लान अभी कागजों में हैं, धरातल पर नहीं उतरा। ये मुद्दा कैंट विधायक अमित अग्रवाल ने उठाया था। उनकी ये अच्छी पहल हैं, जिससे जनता को बड़ी राहत देने की दिशा में उठाया गया कदम हैं, लेकिन सरकारी सिस्टम इतना लचर है कि फाइल किसी ने किसी स्तर पर लटकी रहती हैं।
हाइवे पर नहीं जलती लाइट
एनएच-58 पर टोल-वे ने स्ट्रीट लाइट लगाई हैं। ये लाइट सिर्फ कांवड़ यात्रा के दौरान जली, जिसके बाद से ही ये बंद पड़ी हैं। किसके आदेश पर इन्हें बंद किया गया? ये कोई बताने को तैयार नहीं हैं। सर्विस रोड पर भी स्ट्रीट लाइट लगाई जानी थी, लगी भी है, वो भी नहीं जलती। इस तरह से लाइट पूरे हाइवे पर लगाई गयी, लेकिन इनको रोशन नहीं किया जा रहा हैं। क्या रुकावट हैं, ये भी कोई नहीं बता रहा हैं।
जब इन्हें कांवड़ यात्रा में रोशन किया जा सकता हैं तो अब रुटीन में क्यों नहीं? ये बड़ा सवाल हैं। मेरठ एक तरह से उत्तराखंड और दिल्ली का गेट-वे हैं। हरिद्वार जाना है तो यहीं से गुजरना होगा। इसका इम्पेक्ट भी अवश्य पड़ेगा। लाइट बंद रहने से बेड इम्पेक्ट ही पड़ेगा, लेकिन इसकी चिंता पश्चिमी यूपी टोल-वे को नहीं हैं। परतापुर से लेकर मोदीपुरम तक ये लाइट लगी हैं। कहीं तो अभी बिजली का कनेक्शन भी नहीं हुआ हैं।
कुछ पोल तिरछे हो गए हैं। उनको भी ठीक नहीं किया जा रहा हैं। ऐसे में हाइवे पर दुर्घटना की संभावनाएं बनी हुई हैं। खड़ौली के पास एक पोल तिरछा हो गया हैं। लोगों का कहना है कि पिछले दिनों जो तूफान आया था, उसमें ये तिरछा हो गया हैं। स्ट्रीट लाइट लगाने के प्लान पर करोड़ों रुपये खर्च किये, फिर भी ये लाइट नहीं जल रही हैं। इसके लिए तो पश्चिमी यूपी टोल-वे की पूरी जिम्मेदारी हैं।