प्लास्टिक बैग्स के जगह, कागज व कपड़ों से निर्मित थैले विकल्प हो सकते हैं, पर इस दिशा में हम आगे बढ़ते तो हैं, लेकिन धीरे-धीरे फिर पीछे खिंच जाते हैं। जबकि, ये सच्चाई पता है कि प्लास्टिक का बेहिसाब इस्तेमाल हमें कहीं का नहीं छोडेगा? हिंदुस्तान में सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर पिछले दिनों खूब हंगामा कटा। लेकिन अब सब शांत हैं। बेशक, औद्योगिक क्रांति के मॉर्डन युग में प्लास्टिक वस्तुएं एक सस्ता और प्रचुर संसाधन हैं, पर इसके दुष्परिणाम एक नहीं, बल्कि कई हैं। ऐसा भी नहीं इन्हें हम जानते ना हों, अच्छे से जानते-समझते हैं, लेकिन फिर भी हम इग्नोर कर आगे बढ़ रहे हैं। निश्चित रूप से बढ़ता प्लास्टिक मानव जीवन, प्राकुतिक और अन्य जीवों के आयामों को तहसनहस कर रहा है। संसार में प्लास्टिक से निर्मित वस्तुओं का बड़ा बाजार फैल चुका है। लोग इससे मुनाफा कमा रहे हैं और हुकूमतों को भरपूर रेव्यन्यू भी देते हैं।
इसलिए दोनों वर्गों के गठजोड़ के चलते प्लास्टिक पर बैन की बातें बेमानी हो जाती हैं। प्रतिबंध लगाने के एक झूठे लॉजिक से सभी वाकिफ हैं। पॉलीथिन थैलियों व प्लास्टिक बैग्स पर लगाम लगाने को लेकर अभियान समय-समय पर चलाए जाते हैं। ऐसे मूवमेंट न सिर्फ हमारे यहां चलते हैं, बल्कि संसार के दूसरे देशों में भी खूब चलते हैं।
पर, दुर्भाग्य ये ज्यादा दिनों तक टिकते? ज्यादा नहीं, एकाध महीनों में ही दम तोड़ देते हैं। अक्सर देखने को मिलता है कि जैसे ही प्रतिबंध का असर कमजोर पड़ता है और प्रशासनिक धरपकड़ थोड़ी धीमी होती है, तो उसके बाद प्लास्टिक वस्तुओं का इस्तेमाल और तेजी से होना आरंभ हो जाता है।
दुकानदार खुलेआम प्लास्टिक वस्तुएं बेचने लगते हैं और खरीददार भी बिना भय के उपयोग करते हैं। प्लास्टिक का इस्तेमाल मानव जनजीवन और बेजुबान जानवरों के लिए खतरनाक ही नहीं, जानलेवा भी है। गाय, भैंस, बकरियां आदि बेजुबान जानवरों की अधिकांश मौते पॉलिथीन थैलियों के निगलने से होने लगी हैं। लोग अक्सर खानपीन की वस्तुएं थैलियों में भरके कूड़ेदानों में फेंकते हैं जिसे खाकर जानवर बेमौत का शिकार होते हैं।
प्लास्टिक-पॉलीथीन पर केंद्रीय स्वास्थ्य और डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट रोंगटे खड़ी करती हैं। वहीं, पशु चिकित्सीय आंकड़ों पर गौर फरमाए, तो आवारा पशुओं की आकस्मिक मौतें ज्यादातर इन्हीं कारणों से होती हैं। प्लास्टिक के इस्तेमाल से लोगों में विभिन्न किस्म के कैंसर भी होने लगे हैं।
बावजूद इसके प्लास्टिक से तौबा नहीं करते। यही कारण है कि ‘अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस’ ये प्रदर्शित करने के लिए काफी है कि हमें सुरक्षित विकल्पों की तलाश करनी चाहिए और प्लास्टिक के उपयोगों से बचना चाहिए। प्लास्टिक मुक्त आंदोलन को जन-आंदोलन में बदलने की दरकार है।
इसमें सरकारों के साथ-साथ समाज के दूसरे वर्गां को भी एक साथ जुड़ना चाहिए। क्योंकि इसी तरह के आंदोलनों से ही प्लास्टिक प्रदूषण के संकट का समाधान हो सकेगा। वरना, गाल बजाने से कुछ होने वाला नहीं?
कागजी आंदोलनों से समस्या का हल नहीं निकलेगा। जब अभियान चलते हैं तो पुलिस की चांदी हो जाती है। दुकानदारों को डराकर पुलिसकर्मी अवैध वसूली करते देखे जाते हैं। बढ़ते प्लास्टिक वस्तुएं न सिर्फ मनुष्यीय जीवन पर प्रभाव डाल रहा है, बल्कि पर्यावरण और वन्यजीवों को भी दूषित कर दिया है।
बहरहाल, प्लास्टिक के बढ़ते प्रकोप को लेकर हिंदुस्तान की स्थिति बहुत दयनीय है। व्यवस्थाएं एकदम बेलगाम हैं। इसका एक खास कारण है, दरअसल हम जब बाजारों में जाते हैं, तो घर से थैला ले जाना उचित नहीं समझते, वहां प्लास्टिक चीजों और पॉलीथीन थैलियों पर निर्भर होते हैं।
जबकि, इस दिशा में पड़ोसी देश बांग्लादेश भी हमसे कहीं अच्छा है। वहां, प्लास्टिक वस्तुओं के इस्तेमाल पर अधिकांश प्रतिबंध लगा हुआ हैं। बांग्लादेश सन 2002 में पतली प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध लगा चुका है। ऐसा करने वाला वह समूचे संसार का अव्वल मुल्क बन चुका है।
प्लास्टिक की थैलियाँ विनाशकारी बाढ़ के दौरान जल निकासी प्रणालियों को अवरुद्ध करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस समस्या से बंग्लादेश खासा परेशान था। बांग्लादेश के देखा-देख बाद में दक्षिण अफ्रीका, रवांडा, चीन, आॅस्ट्रेलिया व इटली ने तुरंत इसका अनुसरण किया, इन देशों ने भी अपने यहां प्रतिबंध लगाया हुआ है।
आज का खास दिन यानी 3 जुलाई ‘अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त’ महज एक दिवस नहीं, बल्कि उत्सव जैसा है, जो समूचे विश्व के लिए वैश्विक पहल जैसी है, जिसका उद्देश्य और मकसद प्लास्टिक बैग के उपयोग पर चोट मारता है और समाज को जागरूक भी करता है, सचेत भी करता है।
प्लास्टिक की थैलियां खरीदारी के दौरान सुविधाएं तो बन सकती हैं, लेकिन वो पर्यावरण को कितना बिगाड़ती हैं, इसका अंदाजा किसी को नहीं है। प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल से हमें खुद से बचना चाहिए। प्रतिबंध से पहले हुकूमतों को प्लास्टिक मैकिंग पर चोट मारनी होगी। कठोर कदम उठाने की जरूरत है। बिना देर किए प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाकर, कपड़े व कागज के बने थैलों के इस्तेमाल का प्रचलन बढ़ाया जाए।
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