Saturday, July 27, 2024
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सिवालखास में निकल सकता है नल से भरपूर पानी

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  • सुरक्षित से सामान्य सीट होने के बाद नहीं अभी तक नहीं खुला था रालोद का खाता
  • समीकरणों में रालोद-सपा गठबंधन भाजपा पर दिख रहा भारी

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: जिले की हॉट सीट बनी सिवालखास पर इस बार नल से भरपूर पानी निकलने का अनुमान है। जातीय समीकरणों में इस विधानसभा क्षेत्र में रालोद-सपा गठबंधन भाजपा पर भारी दिखाई पड़ रहा है। यही वजह है जो चुनावी शुरुआत से ही सभी सात सीटों में इस सीट को गठबंधन की मजबूत मानी जा रही है। यहां बड़ी तादाद में मुस्लिम-जाट मतदाताओं के साथ-साथ ही यादव वोटरों की संख्या भी अन्य सीटों के मुकाबले अधिक है, जिनका रुझान गठबंधन की ओर मतदान में दिखाई दिया था। हालांकि अब मतगणना के नतीजे आने में मात्र दो दिन शेष रह गए हैं।

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लंबे समय तक सुरक्षित सीट रहने के बाद सिवलाखास विधानसभा वर्ष 2012 के चुनाव में सामान्य हुई थी। इस चुनाव में यहां सपा के गुलाम मोहम्मद ने रालोद के यशवीर सिंह को करीब साढ़े तीन हजार वोटों के मामूली अंतर से हराया था। इस सीट को जाट बाहुल्य माना जाता है। यहीं वजह है कि हर बार चुनाव में यहां रालोद को उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में रहा है। जाटों के अधिक मत इस सीट पर मुस्लिमों के हैं, जिसकी वजह से कड़ी जद्दोजहद के बाद भी रालोद-सपा गठबंधन से मुस्लिम चेहरे पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद पर दांव लगाया है।

हालांकि की टिकट को लेकर रालोद के जाट नेताओं में असंतोष दिखाई दिया था, मगर उसको पार्टी आलाकमान ने मतदान से पहले ही संतोष में बदलने के भरपूर प्रयास किए थे। मतदान के दिन इस सीट पर वोटिंग में जाट-मुस्लिम के गठजोड़ मतदाताओं ने दिखाया है, जिसके चलते इस सीट से इस बार नल से भरपूर पानी निकलने की उम्मीद है। हालांकि भाजपा प्रत्याशी मनिंदरपाल सिंह भी अपने जीत का यहां से दावा ठोक रहे हैं, मगर जातीय गठजोड़ रालोद-सपा गठबंधन के मुफीद नजर आ रहा है।

2012 में रनरअप, 2017 में तीसरे नंबर पर रही थी रालोद

सिवालखास सीट पर रालोद सपा की लहर में 2012 के विधानसभा चुनाव में दूसरे पायदान पर थी। वहीं, अगले चुनाव में भाजपा की लहर होने के चलते रालोद उम्मीदवर को 2017 में तीसरा स्थान मिला था। दोनों ही बार चुनाव में रालोद से यशवीर चौधरी प्रत्याशी थे। इस बार के चुनाव में सामान्य सीट के होने के बाद रालोद का खाता खुलने की पूरी संभावना है।

इस बार प्रत्याशी में बदलाव करते हुए मुस्लिम चेहरे गुलाम मोहम्मद को रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने इस सीट पर उतारा। फिलहाल जाट-मुस्लिम और यादव गठजोड़ इस सीट पर मजबूत होने के चलते रालोद की झोली में यह सीट जाती दिखाई पड़ रही है। हालांकि अंतिम परिणाम 10 मार्च को तय होगा।

हस्तिनापुर: भाजपा और सपा में क्लोज फाइट, योगेश का पलड़ा भारी

जिस पार्टी का प्रत्याशी हस्तिनापुर में जीत दर्ज करता है, उसी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनती है। यह किवदंती चली आ रही है। इसी वजह से पूरे प्रदेश की निगाहें भी हस्तिनापुर विधानसभा सीट पर लगी हुई है। ग्राउंड स्तर पर ‘जनवाणी’ ने जो सर्वे किया, उसमें यह तथ्य सामने आया कि भाजपा प्रत्याशी दिनेश खटीक और सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी योगेश वर्मा के बीच क्लोज फाइट तो है, मगर पूर्व विधायक योगेश वर्मा भाजपा प्रत्याशी पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। योगेश वर्मा का पलड़ा भारी नजर आ रहा हैं।

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गुर्जर मतदाताओं पर भी बहुत कुछ निर्भर करता हैं, लेकिन गुर्जरों का बड़ा वोट भाजपा को गया, लेकिन गुर्जर मतों में सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी योगेश वर्मा सेंध लगाने में कामयाब हो गए थे। यही वजह है कि योगेश वर्मा ने भाजपा की धड़कने बढ़ा रखी हैं। बंगाली मतों का भी झुकाव गठबंधन की तरफ रहा हैं, जो भाजपा को मुश्किल में डाल रहा हैं। क्योंकि हस्तिनापुर भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के लिए अहम बन गया था। दोनों ही दलों में हस्तिनापुर को लेकर जबरदस्त मुकाबला रहा।

हस्तिनापुर प्राचीन है और अपने अंदर इतिहास को समेटे हुए हैं। अब 2017 में भाजपा के दिनेश खटीक हस्तिनापुर से विजयी हुए थे। अब वह 2017 का प्रदर्शन दोहरा पाते हैं या फिर नहीं, यह भाजपा के लिए भी बड़ा मुश्किल दिखाई दे रहा है। क्योंकि भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के बीच बेहद क्लोज फाइट मानी जा रही है, फिर भी गठबंधन प्रत्याशी योगेश वर्मा भाजपा पर भारी पड़ते हुए भी दिखाई दे रहे हैं।

सरधना में गठबंधन प्रत्याशी अतुल प्रधान की दौड़ी साइकिल

सरधना विधानसभा क्षेत्र भाजपा का गढ़ रहा है। लंबे समय से भाजपा प्रत्याशी सरधना विधानसभा क्षेत्र से जीत दर्ज करते रहे हैं, लेकिन इस बार सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी अतुल प्रधान अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी संगीत सोम पर भारी पड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। ग्राउंड स्तर पर जो सर्वे जनवाणी ने कराया, उसमें गठबंधन प्रत्याशी अतुल प्रधान ही संगीत सोम पर भारी पड़ते हुए नजर आये।

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हालांकि जनवाणी का यह आंकलन हैं, परिणाम 10 मार्च को जाएंगे। परिणाम कुछ भी हो सकते हैं। क्योंकि ग्राउंड स्तर पर किये गए सर्वे को आधार मानते हुए ही अनुमान लगाया जा रहा हैं, जो बाद में कुछ भी हो सकता हैं। इसका जनवाणी दावा नहीं करता। सरधना विधानसभा हॉट सीट में से एक रही हैं। लगातार दो बार अतुल प्रधान पराजय का मुंह देख चुके हैं तथा संगीत सोम दो बार लगातार जीत दर्ज कर चुके हैं।

संगीत सोम का एक हिन्दुत्व का बड़ा चेहरा हैं, जो प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में उनका नाम हैं, लेकिन जिस तरह से इस बार गठबंधन का प्रदर्शन रहा, उसमें अतुल प्रधान ग्राउंड स्तर पर भाजपा प्रत्याशी संगीत सोम पर भारी पड़ते हुए नजर आये। क्योंकि मुस्लिम वोटों का बटवारा नहीं हुआ। 2017 के चुनाव में मुस्लिम मतों का बटवारा होने से अतुल प्रधान को हार का मुंह देखना पड़ा था।

इस बार अतुल प्रधान आत्मविश्वास से भरे हुए दिखाई दे रहे हैं। दलितों को लेकर भी भ्रम की स्थिति थी, जिसमें कहा जा रहा था कि दलितों ने भाजपा को वोट किया, लेकिन ग्राउंड स्तर पर हुए सर्वे में यह तथ्य भी सामने आया है कि दलितों का वोट सपा और भाजपा दोनों को ही गया। बसपा प्रत्याशी संजीव धामा को भी बसपा का कैडर वोट पड़ा। किसान आंदोलन के चलते भी भाजपा को भारी नुकसान हुआ हैं।

क्योंकि दौराला ब्लाक के जाट बाहुल गांवों में भाजपा को भारी झटका लगा हैं, जो 2017 के चुनाव में जाट वोटर भाजपा के साथ खड़े थे, वो गठबंधन के साथ दिखे। यही वजह है कि भाजपा को कई स्तर पर नुकसान हुआ हैं, जिसके चलते यहां पर सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी अतुल प्रधान अपने प्रतिद्वंद्वी संगीत सोम पर भारी पड़ते हुए दिखाई दिये।

किठौर विधानसभा सीट पर कांटे की टक्कर, हार-जीत पर संशय

विधानसभा चुनावों में सातों चरण का मतदान समाप्त हो गया, अब बारी नतीजों की है जो आगामी 10 मार्च को आएंगे। मेरठ में सात विधानसभा सीटों में से छह सीटों पर कांटे की टक्कर बताई जा रही है। जानकारों का अनुमान है कि इस बार के चुनावों में पहले से अनुमान लगाना कठिन है।

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वहीं, किठौर विधानसभा सीट पर पलड़ा किस तरफ झुकेगा कहना मुश्किल है। किठौर विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले गांव औरंगाबाद, भावनपुर, पचपेड़ा, छिलौरा आदि के वोटरों ने मौजूदा विधायक सतबीर त्यागी को लेकर आक्रोश जताया है। इनका मानना है कि विधायक ने अपने पांच साल के कार्यकाल में क्षेत्र की जनता के लिए कोई काम नहीं किया। साथ ही विकास के नाम पर भी केवल खानापूर्ति की गई।

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