Saturday, April 19, 2025
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निठारी कांड के निर्णय से पैदा हुए सवाल

Nazariya 22


ashok madhupइलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के नोएडा के चर्चित निठारी कांड के 12 केस के आरोपी सुरेंद्र कोली और दो केस में फंसी की सजा पाए कोठी डीएस-5 के मालिक मनिंदर सिंह पंढेर को भी ने बरी कर दिया है। शायद यह एतिहासिक होगा कि एक साथ 12 मामलों में फांसी के आरोपी को बरी किया गया हो। निठारी गांव के कोठी डीएस-5 के मालिक मनिंदर सिंह पंढेर को दो केस में फंसी की सजा हो चुकी है। अब जब की ये निचली अदालत से फांसी की सजा पाए ये दोनों आरोपी हाईकोर्ट ने बरी कर दिए तो व्यवस्था को यह तो बताना ही होगा कि फिर इस कांड के आरोपी कौन हैं? युवतियों, बेटियों बच्चों पर जुल्म करने वाला, उनसे व्यभिचार कर उन्हें काटकर खाने वाला कोई तो होगा? किसी ने तो ये कांड किया होगा? उसे कानून की जद में लाकर सजा कौन दिलाएगा? ये निर्दोष थे तो फिर इनकी कोठी के पास नाले में किसने मारकर इनको डाला? मई 2007 को सीबीआई ने पंढेर को अपनी चार्जशीट में अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले में आरोपमुक्त कर दिया था। दो माह बाद अदालत की फटकार के बाद सीबीआई ने उसे मामले में सहअभियुक्त बनाया। 13 फरवरी 2009 को विशेष अदालत ने पंढेर और कोली को 15 वर्षीय किशोरी के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई। ये पहला फैसला था। इसके बाद 11 केस में दोनों को सजा हुई। पुलिस ने इस मामले में कहा था कि कम से कम 19 युवा महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया था, उनकी हत्या कर दी गई थी और उनके शवों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे। पुलिस ने उस समय कहा था कि ये हत्याएं पंढेर के घर के अंदर हुई थीं, जहां कोली नौकर के तौर पर काम करते थे। पुलिस ने आरोप लगाया कि जिन बच्चों के अवशेष बैग में छिपे हुए पाए गए थे, उन्हें कोली ने मिठाई और चॉकलेट देकर लालच देकर मार डाला था। पुलिस का कहना था कि जांच के दौरान कोली ने नरभक्षण और नेक्रोफिलिया (शवों के साथ संबंध बनाने) की बात कबूल की थी। बाद में उन्होंने अदालत में अपना कबूलनामा ये कहते हुए वापस ले लिया कि उनसे जबरन ये बयान दिलवाया गया था। सीबीआई ने सुरेंदर कोली और पंढेर के खिलाफ 19 मामले दर्ज किए थे। जहां कोली पर हत्या, अपहरण, दुष्कर्म, सबूतों को मिटाने जैसे आरोप थे तो वहीं पंढेर पर अनैतिक तस्करी का आरोप था। इस मामले की गूंज कई सालों तक देश गूंजती रही थी। लोगों ने पुलिस पर लापरवाही बरतने के आरोप लगाए थे। स्थानीय लोगों ने उस समय कहा था कि पुलिस इस मामले में इसलिए भी कार्रवाई नहीं कर सकी, क्योंकि लापता होने वालों में से अधिकतर गरीब परिवार के थे। गाजिÞयाबाद जेल में बंद कोली को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई किए जा रहे 12 मामलों में मौत की सजा सुनाई गई थी। वहीं पंढेर नोएडा की जेल में बंद हैं और उन्हें दो मामलों में मौत की सजा हुई थी। कोली की सजा को उम्रकैद में बदलने वाले हाईकोर्ट के आदेश को उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अभी ये मामला शीर्ष न्यायालय में लंबित है।

न्यायालय ने निर्णय में ये माना कि आरोपियों के विरूद्ध सबूत नहीं हैं। न्यायालय ने ये नही कहा कि कांड हुआ ही नहीं। कांड तो हुआ। 19 महिलाओं और बच्चियों के कंकाल कोठी डीएस-5 के सामने नाले से मिले। अब प्रश्न यह है कि ये नहीं तो किसी और ने ये कांड किया है। जिसने कांड किया उसे सजा दिलाने की किसकी जिम्मेदारी है? किंतु लगता है कि न्यायालय ने इस केस के आरोपी के बरी हो जाने के बाद केस व्यवस्था की कबाड़ की फाइल में चला जाएगा। 2006 से न्याय की आशा में बैठे पीडित परिवार को रो पीट कर चुप हो बैठना पड़ेगा। इस निर्णय के बाद पीड़ितों के माता पिता और परिवार वालों का दुख और गहरा हो गया। अपनों को खोने वालों ने कहा कि 17 साल बाद भी हम लोगों को न्याय नहीं मिला। निठारी कांड में अपने बच्चों को खोने वाले पैरंट्स का लगभग एक ही सवाल है कि अगर पंढेर और कोली निर्दोष हैं तो उनके बच्चों को किसने मारा है?

एक बात और, हाईकोर्ट ने कहा कि शवों की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर जांच नहीं हुई। ये रिपोर्ट मानव तस्करी की और इशारा कर रही थी। दोनों न्यायधीशों ने जांच पर नाखुशी जताते हुए कहा कि जांच बेहद खराब है। सुबूत जुटाने की मौलिक प्रक्रिया का पूरी तरह उल्लंघन किया गया। जांच एसेंसियों की नाकामी जनता के विश्वास के साथ धोखा है। हाईकोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियों ने अंग व्यापार के गंभीर पहलुओं की जांच किए बिना एक गरीब नौकर को खलनायक की तरह पेश किया। हाईकोर्ट ने माना कि ऐसी गंभीर चूक के कारण मिलीभगत सहित कई गंभीर निष्कर्ष संभव है। हाईकोर्ट ने यह भी माना कि आरोपी अपीलकर्ता को निचली अदालत में स्पष्ट रूप से निचली अदालत में सुनवाई का मौका नहीं मिला। न्यायालय ने निर्णय में ये भी कहा कि दोनों आरोपियों के खिलाफ कोई सुबूत नहीं है। सबूत के अभाव में दोनों आरोपियों को लगभग 17 साल जेल में रहना पड़ा। अकारण जेल में बिताए इनके इन सालों के लिए कौन जिम्मेदार है?
इस केस में शुरुआत से ही पुलिस पर आरोप लगते रहते हैं कि वह इस मामले में रूचि नहीं ले रही। उसी के बाद मामला सीबीआई को गया। अब सीबीआई की जांच पर भी सवाल उठा हैं तो सीबीआई को अपनी जांच और प्रक्रिया पर भी सोचना और बदलाव करना होगा। क्योंकि देश में उसका बहुत सम्मान है। प्रत्येक प्रकार के टिपिकल मामले में उसी से जांच कराने की बात आती है। अब उसकी भी जांच ऐसी ही निम्न स्तरीय होगी, तो फिर उसे सोचना तो होगा ही।


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