Saturday, April 20, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादसमाज के असल मुद्दों का क्या?

समाज के असल मुद्दों का क्या?

- Advertisement -

 

Nazariya 11


Dr.rameshram Mishraहाल ही में होने जा रहे पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के निर्वाचन आयोग द्वारा तिथि की घोषणा ने उत्तर प्रदेश के सियासी तापमान को बहुत बढ़ा दिया है। इस समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में केवल दल-बदल का विषय चर्चा में है, इससे पहले जनता को 80 बनाम 20 की लड़ाई में फंसाया गया, उससे पहले अब्बाजान-चच्चाजान, लुंगी-टोपी, जिन्ना जैसे अनावश्यक विषयों में फंसाया गया, आम जनमानस का ध्यान भटकाया गया जिसमे असल मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। आचार संहिता लगने के बाद से नेताओं में पद लोलुपता की जो जिज्ञासा दिख रही है, वह हर व्यक्ति को परेशान कर रही है। भारतीय जनता पार्टी के टिकट घोषणा से पहले अनेक मंत्रियों एवं विधायकों का पार्टी के पद एवं सदस्यता से इस्तीफा देना उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले बहुत बड़े बदलाव को रेखांकित कर रहा है। इन नेताओं द्वारा पार्टी छोड़ने के पीछे एक विषय को आधार बनाया गया है, सबने सत्ता पक्ष में रही योगी सरकार पर दलितों, पिछड़ों, गरीबों, महिलाओं, किसानों के उत्पीड़न का आरोप लगाया है। सत्ता पक्ष द्वारा इन दावों का खंडन करते हुए इन पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की असफलता को मुख्य कारण बताया जा रहा है और कहा जा रहा है कि इन सारे नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में विकास कार्य नही किया इसलिए इनके टिकट कटने वाले थे, टिकट कटने के भय से इन लोगों ने पार्टी छोड़ दी। आज नेताओं के पार्टी छोड़ने और नयी पार्टियों से जुड़ने के विषय के साथ-साथ अनेक ऐसे प्रश्न हैं जो इन नेताओं और सत्ता पक्ष की मंसा पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।

सबसे अहम सवाल सत्ता पक्ष से यह है कि क्या सत्ता पक्ष द्वारा पिछले पांच सालों में इन पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की कार्यों को देखते हुए इनको पद से पहले ही क्यों नही हटाया गया? क्या इन नेताओं को पिछले पांच वर्षों में पार्टी द्वारा कोई चेतावनी दी गई थी? नेताओं की कार्यशैली को देखते हुए क्या 325 विधायकों वाली पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार द्वारा किसी को पार्टी से निकाला गया? दूसरे अहम प्रश्न इन पार्टी छोड़ने वाले नेताओं से है कि क्या इन पांच सालों में योगी जी को दलितों, पिछड़ों के हितों से जुड़ी एक भी समस्या के लिए पत्र लिखे? क्या इन नेताओं ने पिछड़ों, दलितों, शोषितों, गरीबों, बेरोजगारों की मांग को लेकर अपनी सरकार के खिलाफ कोई मोर्चा खोला? ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जो योगी सरकार और बागी विधायकों एवं मंत्रियों के एक छिपे हुए स्वरूप को उजागर करते हैं। इन नेताओं का मूल उद्देश्य पार्टी छोड़ने एवं दूसरी पार्टियों में अपने निजी हित को तलाशने एवं लोगों के ध्यान को भ्रमित करना है। इन नेताओं ने पिछले पांच सालों में अपने समाज की कोई चिंता नहीं की न ही सरकार का विरोध कर पाए। साथ ही सरकार ने भी जाति आधारित वोट बैंक के लालच में इन विधायकों एवं मंत्रियों के कार्यों की कभी कोई समीक्षा तक नहीं की, जिससे आम जनमानस की समस्याएं यथावत बनी रहीं।

इन नेताओं के अपने समाज से जुड़े विषयों का अवलोकन करें तो उनहत्तर हजार शिक्षक भर्ती में हो रही आरक्षण सम्बन्धी अनियमितता, किसान की खाद की समस्या, लखीमपुर में किसानों को कुचलने की घटना, लखीमपुर के चीरहरण की घटना, आजमगढ़ में दलित बस्ती को उजाड़ने की घटना, प्रदेश में बढ़ रहा कुपोषण, महिला उत्पीड़न में हो रही वृद्धि का मामला, पुलिस एवं न्यायिक हिरासत में बढ़ते मृत्यु की दर, आवारा पशुओं से फसल बर्बादी की समस्या, निजीकरण से उत्पन्न सामाजिक विसंगति जैसे अनेक विषय थे और आज भी हैं, जिन पर ये जनप्रतिनिधि न कभी अपने घर बाहर से निकले और न ही कभी इन मुद्दों पर मीडिया या सरकार से अपना पक्ष रखते दिखे। चुनाव पूर्व उनका पार्टी से निकलकर दूसरी पार्टियों में जाना इनकी सत्ता की आकांक्षा की परिणीति मात्र है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा 107 प्रत्याशियों की सूची जारी की गई, जिसमें से 21 विधायकों के टिकट काटे गए हैं 20 विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र बदले गए हैं। इसका तात्पर्य यह है कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा इन नेताओं के कार्य न करने के फलस्वरूप टिकटों को काटा गया है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा लगातार यह दावे किए जा रहे थे कि 100 के लगभग विधायकों के टिकट काटे जाएंंगे। आने वाले दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कितने विधायकों के टिकट काटे जाते हैं, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि इन जनप्रतिनिधियों के द्वारा प्रदेश के हितों की अनदेखी की गई है जो कि सत्ता पक्ष की कार्यशैली पर एक प्रश्नचिन्ह है।

अगर हम पिछले पांच सालों में नेताओं के पार्टी बदलने से जुड़े तथ्यों का अवलोकन करें तो इन जनप्रतिनिधियों की नियत को स्पष्ट हो जाती है। एडीआर के मुताबिक पिछले पांच सालों में लगभग 433 विधायकों एवं सांसदों ने चुनाव जीतने के बाद पार्टी बदल ली। इन दल बदलने वाले नेताओं और राजनीति में बढ़ते व्यापारीकरण के चलते मध्य प्रदेश, मणिपुर, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक की सरकार बीच में ही गिर गई। सत्ता में अपनी बढ़त बनाने की आकांक्षा में सबसे ज्यादा 182 दल बदलने वाले विधायकों को भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल किया। इसी प्रकार 16 राज्यसभा सदस्यों ने अपनी सदस्यता छोड़कर पुन: दूसरे दल से राज्यसभा पहुंचे जिसमे से भी 10 राज्यसभा सदस्य दूसरी पार्टी से निकलकर भारतीय जनता पार्टी में पहुंचे थे। उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव में अपने दलों को छोड़कर आए विधायकों, नेताओं में से 67 को भाजपा ने मैदान में उतारा जिसमे से 54 ने जीत हासिल की और अब यही विधायक आज भाजपा छोड़कर दूसरी पार्टी में जा रहे हैं। इन्ही दल-बदलू नेताओं के चलते राजनीति से लोगों का विश्वास टूटता चला जा रहा है।


janwani address 35

What’s your Reaction?
+1
1
+1
5
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments