जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: 8वीं मोहर्रम पर घरों और इमामबरगाहों में 18 अगस्त को मर्दों और बच्चों का सक्का बनाया गया और लोगों ने मौला अब्बास के नजर दी। इमामबरगाहों और घरों में मजलिस हुई। मौला अब्बास का अलम बरामद हुआ और उनका गम मनाया। कर्बला के शहीदों को याद किया गया और उनका गरिया और मातम किया।
हजरत इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों की शहादत एक सबक है कि आधुनिकता व पश्चिमी तहजीब की चकाचौंध में उसूलों को भुला न दें। हजरत इमाम हसन-हुसैन के जीवन से प्रेरणा लेकर सदाचारी जिंदगी जीने की कोशिश करें।
हजरत इमाम हुसैन की कर्बला मैदान की शहादत ये संदेश देती है कि अन्यायी कितना ही ताकतवर क्यों न हो, उसके सामने झुकना नहीं चाहिए। न्याय को जिंदा रखने के लिए चंद साथियों के साथ उसका मुकाबला किया जा सकता है, भले ही जान क्यों न गंवाना पड़े।
इमाम हुसैन की शहादत से न्याय को जिंदा रखने के लिए सब कुछ कुर्बान करने का सबक मिलता है। कर्बला के शहीदों को खिराज-ए-अकीदत पेश कर ये संकल्प लिया जाना चाहिए कि न्याय को जिंदा रखने के लिए कोई भी कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटेंगे।
कर्बला के मैदान में लड़ी गई जंग हक और बातिल के बीच थी। हजरत इमाम हुसैन ने 80 साल के बुजुर्गों से लेकर नन्हे-मुन्ने बच्चों की शहादत देकर हक पर कायम रहने की दुनिया को सीख दी। सच्चाई और अच्छाई से न्याय का रास्ता ही मुल्क, सूबे, समाज में शांति और सद्भाव को मजबूत बनाने में मदद करता है।
कर्बला के शहीदों की याद में मनाए जा रहे मोहर्रम में हजरत इमाम हुसैन की शहादत की शब की यादगार शब-ए-शहादत नौ मोहर्रम यानी 19 दिसंबर को मनाई जाएगी। इस दिन रात में ताजिए गस्त पर निकलेंगे। अगले दिन 20 दिसंबर को यौम-ए-शहादत मनाया जाएगा, जिसमें ताजिए दफनाए जाएंगे।