रागी की खेती मोटे अनाज के रूप में की जाती है। रागी मुख्य रूप से अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में उगाई जाती है। जिसको मडुआ, अफ्रीकन रागी, फिंगर बाजरा और लाल बाजरा के नाम से भी जाना जाता है। इसके पौधे पूरे साल पैदावार देने में सक्षम होते हैं।
इसके दानों का इस्तेमाल खाने में कई तरह से किया जाता है। इसके दानों को पीसकर आटा बनाया जाता हैख् जिससे मोटी डबल रोटी, साधारण रोटी और डोसा बनाया जाता है। इसके दानों को उबालकर भी खाया जाता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल शराब बनाने में भी किया जाता हैं।
जलवायु और तापमान
रागी की खेती की लिए शुष्क और आर्द्र शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। भारत में इसकी खेती गर्मियों के मौसम में खरीफ की फसल के साथ की जाती है। इस की खेती के लिए गर्मी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है। खरीफ की फसल होने के कारण इसे सर्दियों के शुरू होने से पहले ही काट लिया जाता है। इस कारण सर्दी का प्रभाव इस पर देखने को नही मिलता। इसकी खेती के लिए सामान्य बारिश की जरूरत होती है। अधिक बारिश
इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती।
रागी के पौधे गर्मियों के मौसम में अधिकतम 35 डिग्री तापमान पर आसानी से विकास कर लेते हैं। लेकिन शुरूआत में बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 से 22 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। उसके बाद पौधों को विकास करने के लिए 30 डिग्री के आसपास के तापमान को उपयुक्त माना जाता है।
उन्नत किस्में
रागी की बाजार में काफी उन्नत किस्में मौजूद हैं। जिन्हें कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है। इनमें कुछ इस प्रकार हैं-जेएनआर 852, जीपीयू 45, चिलिका, जेएनआर 1008, पीइएस 400, वीएल 149 और आर एच 374, इनके अलावा और भी कई किस्में हैं, जिन्हें अलग-अलग जगहों पर अधिक और उत्तम पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है। जिनमें जेएनआर 981, भैरवी, शुव्रा, अक्षय, पी आर 202, एम आर 374, जे एन आर 852 और के एम 65 जैसी काफी किस्में मौजूद हैं।
खेत की तैयारी
रागी की रोपाई के लिए भुरभुरी मिट्टी को अच्छा माना जाता है। क्योंकि भुरभुरी मिट्टी में इसके बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है। रागी की खेती के लिए शुरूआत में खेत की तैयारी के दौरान खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें।
उसके बाद कुछ दिन खेत को खुला छोड़ दें। ताकि सूर्य की धूप से मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट नष्ट हो जाएं। खेत को खुला छोड़ने के बाद खेत में जैविक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद को डालकर उन्हें अच्छे से मिट्टी में मिला दें। खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें। खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेवा कर दें।
पलेवा करने के तीन से चार दिन बाद जब जमीन की ऊपरी सतह हल्की सुखी हुई दिखाई देने लगे तब फिर से खेत की जुताई कर दें। उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दें, ताकि बारिश के मौसम में जलभराव जैसी समस्या का सामना ना करना पड़े।
बीज की मात्रा और उपचार
रागी की रोपाई के लिए बीज की मात्रा बुवाई की विधि पर निर्भर करती हैं। ड्रिल विधि से रोपाई के दौरान प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलो बीज की जरूरत होती है। जबकि छिड़काव विधि से रोपाई के दौरान लगभग 15 किलो बीज की जरूरत पड़ती हैं। इसके बीज को खेत के लगाने से पहले उसे उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को उपचारित करने के लिए थिरम, बाविस्टीन या कैप्टन दावा का इस्तेमाल किसान भाई कर सकता है।
पौधों की सिंचाई
रागी के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती। क्योंकि इसकी खेती बारिश के मौसम में की जाती हैं। और इसके पौधे सूखे को काफी समय तक सहन कर सकते हैं। अगर बारिश के मौसम में बारिश समय पर ना हो तो पौधों की पहली सिंचाई रोपाई के लगभग एक से डेढ़ महीने बाद कर देनी चाहिए।
इसके अलावा जब पौधे पर फूल और दाने आने लगे तब उनको नमी की ज्यादा जरूरत होती है। इस दौरान इसके पौधों की 10 से 15 दिन के अंतराल में दो से तीन बार सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे बीजों का आकार अच्छे से बनता है। और उत्पादन भी अधिक प्राप्त होता है।
उर्वरक की मात्रा
रागी के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत नही होती। इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त लगभग 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें। इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में डेढ़ से दो बोरे एन।पी।के। की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़ककर मिट्टी में मिला देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
रागी की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों से किया जाता हैं। रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई के पहले आइसोप्रोट्यूरॉन या आक्सीफ्लोरफेन की उचित मात्रा का छिडकाव खेत में कर देना चाहिए। जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण पौधों की नीलाई गुड़ाई कर किया जाता है।
इसके लिए शुरूआत में पौधों की रोपाई के लगभग 20 से 22 दिन बाद उनकी पहली गुड़ाई कर दें। रागी की खेती में प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए दो बार गुड़ाई काफी होती है। इसलिए पहली गुड़ाई के लगभग 15 दिन बाद पौधों की एक बार और गुड़ाई कर दें।
फसल की कटाई और मढ़ाई
रागी के पौधे बीज रोपाई के लगभग 110 से 120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जिसके बाद इसके सिरों को पौधों से काटकर अलग कर लेना चाहिए। सिरों की कटाई करने के बाद उन्हें खेत में ही एकत्रित कर कुछ दिन सूखा लेना चाहिए। उसके बाद जब दाना अच्छे से सूख जाए तब मशीन की सहायता से दानो को अलग कर एकत्रित कर बोरो में भर लेना चाहिए।
पैदावार और लाभ
रागी की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 25 क्विंटल के आसपास पाई जाती है। जिसका बाजार भाव 2700 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है। इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से 60 हजार रुपए तक की कमाई आसानी से कर लेता है।