- 10 दिन से बैंक की कार्यप्रणाली से चर्चाओं का बाजार गरम, कामकाज पड़ा ठप
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: देश के सबसे पुराने बैंकों में शुमार इलाहाबाद बैंक जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी इलाहाबाद से कोलकाता ले गई थी वो अपने अधिकारियों की नकारात्मक सोच के कारण अपनी साख पल भर में खो चुका है। इस बैंक के ग्राहकों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि क्या बैंक बंद होने जा रहा है।
बैंक में पिछले 10 दिन से कामकाज भगवान भरोसे चल रहा है और खाताधारकों के मामूली काम भी नहीं हो रहे है। इंडियन बैंक में विलय होने के बाद इलाहाबाद बैंक को लेकर खाताधारक बेहद परेशानी का सामना कर रहे हैं।
इलाहाबाद बैंक के इंडियन बैंक में विलय के बाद तकनीकी रूप से सिस्टम को चलाने के लिये दो दिन के लिये बैंकिंग सेवाओं को बंद करने का ऐलान किया गया था। आठ दिन बीत चुके हैं और इलाहाबाद बैंक में कामकाज सुचारु रूप से नहीं शुरू हो पाया है। इलाहाबाद बैंक का नाम बदल गया।
होर्डिंग आदि बदल गए, लेकिन बदला नहीं तो बैंकिंग सिस्टम। 10 दिन से बैंक में आरटीजीएस, निफ्ट, कैश निकालना, गूगल पे, स्टेटमेंट आदि काम पूरी तरह से ठप पड़े हुए हैं। बैंक का स्टाफ खाताधारकों को सही ढंग से जबाव देने की स्थिति में नहीं है।
इलाहाबाद बैंक और उसकी शाखाओं में ऐसी अफरातफरी पहले कभी नहीं देखी गई थी। सबसे ज्यादा दिक्कत तो एटीएम के प्रयोग को लेकर हो रही है। ई-बैंकिंग पूरी तरह से ठप होने के कारण हर जगह यही अफवाह उड़ने लगी है कि पीएमएस बैंक और एस बैंक के बाद क्या अब इलाहाबाद बैंक के बंद होने का नंबर आ गया है।
इस तरह की अफवाहों से बाजार कांप गया है। इलाहाबाद बैंक की इस तरह की बदहाली के पीछे स्टाफ की मनोदशा भी अहम भूमिका अदा कर रही है। खाताधारक परेशान हाल बैंक में घूम रहे हैं और स्टाफ उनका काम करने को तैयार नहीं है।
इन दिनों बैंक में सर्वर की समस्या लगातार बढ़ने के कारण ट्रांजिक्शन का काम भी ठप पड़ा हुआ है। व्यापारियों के चेक बाउंस होने और कर्मचारियों के वेतन न मिलने से अफवाहों का बाजार गरम हुआ है। एक सप्ताह से फिजा में इस तरह की अफवाहों ने न केवल इलाहाबाद बैंक की छवि का धूमिल किया बल्कि खाताधारकों को मानसिक रूप से परेशान कर दिया है।
उद्योगपतियों से लेकर आम लोग तक इलाहाबाद बैंक के रवैये से आजिज आ चुके है। हैरानी की बात यह है कि साफ्टवेयर में बदलाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी बैंक अपनी रोजमर्रा के कामकाज को सही ढंग से चालू नहीं कर पाया है। किसी भी बैंक के लिये यह कितनी नकारात्मक बात है कि उसके बंद होने की अफवाह उड़ने लगे।
दरअसल, बैंक की इस बदहाली के पीछे अधिकारियों की नकारात्मक सोच काम कर रही है। इलाहाबाद बैंक का महाप्रबंधक भी यही तैनात है, लेकिन उनके पास इतना भी समय नहीं है कि वो महीने में एक बार ग्राहकों से मिलकर उनकी समस्याओं का निराकरण कर सकें। अगर कोई ग्राहक इनके पास समस्या को लेकर जाता है तो उसे टरका देते हैं और निराश ग्राहक अपनी किस्मत को कोसता हुआ चला जाता है।
दो साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। उस वक्त बैंक के अधिकारी मासिक बैठक के जरिये लोगों से समस्याएं पूछ कर उनका निराकरण करते थे। इससे बैंक और ग्राहकों के बीच पारिवारिक रिश्ता बरकरार रहता था। इन दो वर्षों में आए अधिकारियों ने ग्राहकों से दूरियां बनानी शुरु कर दी।
ग्राहकों को नजरअंदाज करने और लगातार दस दिनों से बैंक का कामकाज ठप रहने से बैंक के बंद होने की अफवाह जोर पकड़ने लगी और ग्राहक अपनी जमा पूंजी को लेकर दहशत में आ गए हैं। यही नहीं बाजार में दहशत बनी हुई है और जितने मुंह उतनी बातें की जा रही है, लेकिन बैंक के अधिकारियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
वहीं अन्य विलय हुए बैंकों ने अपना कामकाज सुधार लिया और ग्राहकों को अहसास भी नहीं होने दिया कि उनके बैंक बदल जाने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, लेकिन इलाहाबाद बैंक के अधिकारियों ने ग्राहकों के मन के अंदर चल रहे द्वंद को समाप्त करने के लिये संपर्क करने के लिये जरुरत ही नहीं समझी, यही कारण है कि अन्य विलय हुए बैंकों को लेकर बंद होने की अफवाह नहीं उड़ी जितनी प्रतिष्ठित इलाहाबाद बैंक को लेकर उड़ रही है।