महिमा जोशी
‘हमारे गांव में कंप्यूटर सेंटर न होने की वजह से हमें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अगर हमें कोई फार्म भरना है तो उसके लिए हमें गांव से 15-16 किलोमीटर दूर कंप्यूटर सेंटर जाना पड़ता है। ये ऐसा काम है जो कभी भी एक बार के जाने पर नहीं होता है। एक फॉर्म अप्लाई करने के लिए हम 2 से 3 या कभी कभी 4 बार भी जाना पड़ जाता है, जिससे हमारा पूरा दिन आने जाने में निकल जाता है। इसकी वजह से हमारे बहुत से अन्य काम भी प्रभावित होते हैं।’ यह कहना पिंगलों गांव की 17 वर्षीय गुंजन बिष्ट का, जो कक्षा 12 की छात्रा है। वह कहती है कि ‘हमारे गांव के लड़के तो आसानी से शहर चले जाते हैं, लेकिन लड़कियों को घर से इतनी दूर भेजने के लिए अभिभावक राजी नहीं होते हैं। हमें छात्रवृत्ति फॉर्म भरने होते हैं वह भी कई बार छूट जाते है। कहने को हम डिजिटल युग में जी रहे हैं लेकिन जब हमें एक साधारण फॉर्म भरने के लिए भी 15 किमी दूर जाना पड़े, तो डिजिटल युग का सपना अधूरा लगता है। साथ ही यह प्रक्रिया न केवल समय और पैसे की बर्बादी है, बल्कि हमारी शिक्षा और आत्मनिर्भरता को भी बाधित करता है।’
यह सिर्फ एक अकेले गुंजन की कहानी नहीं है। दरअसल जब पूरी दुनिया डिजिटल तकनीक की ओर तेजी से बढ़ रही है, उत्तराखंड के कई गांवों की किशोरियां अब भी अपने सपनों को उड़ान देने के लिए कंप्यूटर जैसी सुविधाओं से वंचित हैं। हालांकि डिजिटल साक्षरता हमारे दैनिक जीवन में बहुत अहम भूमिका अदा करता है। यह युवा पीढ़ी को न केवल सशक्त बनाता है बल्कि उन्हें किसी पर निर्भर होने से रोकता है। विशेषकर इससे किशोरियों में आत्मविश्वास बढ़ता है और साथ ही साथ वह खुद को आत्मनिर्भर महसूस करती हैं। आज के समय में डिजिटल से जुड़े सभी कार्य किशोरियां भी स्वयं कर सकती हैं। अगर उन्हें डिजिटल साक्षरता का ज्ञान हो तो वह एडमिशन फॉर्म भरने से लेकर आॅनलाइन पैसे की आवाजाही जैसे सभी कार्य स्वयं कर सकती हैं। वर्तमान में भारत में 80 प्रतिशत से अधिक सरकारी सेवाएं आॅनलाइन उपलब्ध हैं। उत्तराखंड में 50 प्रतिशत से अधिक सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन आॅनलाइन होते हैं, लेकिन पिंगलों गांव की 60 प्रतिशत किशोरियां कंप्यूटर साक्षरता के अभाव में अक्सर आॅनलाइन आवेदन से वंचित रह जाती हैं।
हरी भरी पहाड़ियों के बीच बसा उत्तराखंड के बागेश्वर जिले से 48 किमी और गरुड़ ब्लॉक से 16 किमी की दूरी पर बसे इस गांव की आबादी करीब 900 है। पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार यहां 75 प्रतिशत लोग पढ़े लिखे है, हालांकि पुरुषों की तुलना में यहां महिलाओं की साक्षरता दर कम है। वहीं कंप्यूटर तक महिलाओं और किशोरियों की पहुंच दूर होने के पीछे सामाजिक और आर्थिक दोनों कारण होते हैं। इस संबंध में गांव की एक किशोरी 18 वर्षीय रितिका कहती है कि मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है जिसकी वजह से वह मुझे बार बार बागेश्वर के कंप्यूटर सेंटर तक जाने के लिए पैसे देने में सक्षम नहीं हैं। इस कारण से मैं फॉर्म अप्लाई नहीं कर पाती हूं। अगर गांव में ही कंप्यूटर सेंटर होता तो मेरे आने जाने का खर्चा बच जाता और मैं भी फॉर्म भर सकती।
गांव में कंप्यूटर सेंटर की सुविधा नहीं होने से अभिभावक भी चिंतित नजर आते हैं। 41 वर्षीय सुषमा देवी कहती हैं कि हमारे पढ़े-लिखे बच्चे घर बैठे हैं। कहीं नौकरी का फार्म भी नहीं भर पाते हैं। आजकल सारे फॉर्म आॅनलाइन ही भरे जाते हैं। अगर वह फॉर्म भरना भी चाहें तो कंप्यूटर सेंटर दूर होने की वजह से उन्हें समय और इसकी कोई जानकारी नहीं मिल पाती है और आवेदन भरने की अंतिम तिथि भी कई बार निकल जाती है। अगर गांव में ही कंप्यूटर सेंटर की सुविधा उपलब्ध होती तो हमारे काम भी समय पर हो जाते और हमें दूर भी नहीं जाना पड़ता।
वास्तव में, डिजिटल साक्षरता का प्रसार केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि एक अधिकार है। पिंगलों और उसके जैसे अन्य गांवों में इसे प्राथमिकता देने से न केवल किशोरियों का भविष्य बेहतर होगा, बल्कि यह पूरे समाज को आत्मनिर्भरता और प्रगति की दिशा में अग्रसर करेगा। किशोरियों के भविष्य को संवारने के लिए डिजिटल साक्षरता को प्राथमिकता देना समय की मांग भी है। यह न केवल उनके करियर की संभावनाओं को बढ़ाएगा, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भी सशक्त करेगा। यदि समय रहते इस दिशा में कदम उठाए गए, तो यह पहल ग्रामीण समाज को साक्षर और सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध होगा। वहीं गुंजन और रितिका जैसी अन्य किशोरियों के लिए भी इस आधुनिक तकनीक तक पहुंच आसान हो जाएगी और वह भी अपने सपनों को पंख दे सकेंगी।