एक संन्यासी ने एक बार एक सेठ की दुकान पर नौकरी मांगने गया। सेठ ने कहा, देखो, यह दुकानदारी है, ऐसा न को कि बिगड़ जाओ। संन्यासी नहीं माना तो सेठ ने उसे नौकरी पर रख लिया। नौकरी पर लगने के बाद संन्यासी ने सेठ से कहा, तुम भी ध्यान रखना, मेरे साथ आप भी बिगड़ सकते हो। सेठ उसकी बात हंसी में उड़ता हुआ बोला, हमारी चिंता मत करो। हमने दुनिया देखी है। हम बहुत चतुर-चालाक हैं। संन्यासी ने दुकान पर बैठना शुरू कर दिया। आहिस्ता-आहिस्ता एक साल बीत गया। संन्यासी ने एक दिन सेठ से कहा, अब मेरा इरादा तीर्थयात्रा पर जाने का है। उचित समझें तो आप भी चलें! सेठ ने कहा, मुझे तैयारी क्या करनी होगी? संन्यासी बोला, कुछ खास तैयारी नहीं करनी होती, तैयारी का काम मुझे पर छोड़ दीजिए। जो तैयारी करनी है, मैं करवाता रहूंगा।
सालभर में संन्यासी सेठ की चालबाजियों से भलीभांति परिचित हो गया था। जब भी सेठ कुछ कम चीज तौलने लगता, तब संन्यासी कहता, राम! तीर्थयात्रा पर चलना है। वह कभी कुछ ज्यादा दाम किसी को बताने लगता तो संन्यासी कहता, ओम! तीर्थयात्रा पर चलना है। सालभर वह बेईमानी न कर पाया। जब वे तीर्थयात्रा पर चलने लगे, तो संन्यासी से सेठ ने कहा, लेकिन तीर्थ तो पूरा हो गया! मैं पवित्र हो गया। पर तूने भी खूब किया! तीर्थयात्रा के बहाने सालभर एक स्मृति का तीर-तीर्थयात्रा पर चलना है! का चला दिया। अब जाना बेकार है! कहने का अर्थ है-भीतर-बाहर एक से रहें।