हकीम लुकमान का पूरा जीवन जरूरतमंदों की सहायता के लिए समर्पित था। वह किसी की मदद करते हुए यह नहीं देखते थे कि उसका मजहब क्या है। वह चाहते थे कि उनका बेटा भी उनकी परंपरा को जारी रखे। जब उनका अंतिम समय नजदीक आया तो उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और कहा- बेटा, मैंने अपना सारा जीवन दुनिया को शिक्षा देने में गुजार दिया। अब अपने अंतिम समय में मैं तुम्हें कुछ जरूरी बातें बताना चाहता हूं। मैं तुम्हें कुछ सीख देना चाहता हूं, जिसका तुम अपने जीवन में पालन करो।
यह कहकर उन्होंने बेटे से कहा, तुम एक कोयला और चंदन का एक टुकड़ा उठा लाओ। बेटे को पहले तो यह अटपटा लगा, लेकिन उसने सोचा कि जब पिता का हुक्म है तो यह सब लाना ही होगा। उसने रसोई घर से कोयले का एक टुकड़ा उठाया। संयोग से घर में चंदन की एक छोटी लकड़ी भी मिल गई। वह दोनों लेकर अपने पिता के पास गया। लुकमान बोले- अब इन दोनों चीजों को नीचे फेंक दो। बेटे ने दोनों चीजें नीचे फेंक दी और हाथ धोने जाने लगा तो लुकमान बोले- ठहरो बेटा, जरा अपने हाथ तो दिखाओ।
फिर वह उसका कोयले वाला हाथ पकड़कर बोले-बेटा, देखा तुमने। कोयला पकड़ते ही हाथ काला हो गया। लेकिन उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारे हाथ में कालिख लगी रह गई। गलत लोगों की संगति इसी तरह होती है। उनके साथ रहने पर भी दुख होता है और उनके न रहने पर भी जीवन भर के लिए बदनामी साथ लग जाती है। दूसरी ओर सज्जनों का संग इस चंदन की लड़की की तरह है, जो साथ रहते हैं तो दुनिया भर का ज्ञान मिलता है और उनका साथ छूटने पर भी उनके विचारों की महक जीवन भर साथ रहती है। इसलिए हमेशा अच्छे लोगों की संगति में ही रहना। तुम्हारा जीवन सुखद रहेगा। उनके बेटे उस सीख को जीवन पर्यंत निभाया।