वर्षा आधारित धान की खेती में नींदा यानी खरपतवार नियंत्रण एक बड़ी समस्या है। यदि इसका समय से नियंत्रण न किया जाए तो फसल पूरी तरह नष्ट हो जाती है। जहां पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, वहां पर रोपाई या बुआई से पहले मचाई करने से नींदा पर काफी नियंत्रण पाया जा सकता है।
खरपतवार से चौतरफा नुकसान
खरपतवार प्राय: फसल से नमी ,पोषक तत्व, सूरज के प्रकाश तथा फैलने के लिए स्थान के लिए बोई गई फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं जिससे मुख्य फसल के उत्पादन में कमी आ जाती है। धान की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान को 15-85 प्रतिशत तक आंका गया है। कभी -कभी यह नुकसान 100 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। सीधे बोए गए धान में रोपाई किए गए धान की तुलना में खरपतवारों के कारण अधिक नुकसान होता है।
उर्वरक पोषण का भारी नुकसान
कुछ खरपतवार के बीज धान के बीज के साथ मिलकर उसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं। इसके अतिरिक्त खरपतवार सीधे बोए गए धान में 20-40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 5-15 किलोग्राम स्फुर,15-50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से अवशोषित कर लेना अनुमानित पाया गया है जो भारी नुकसान है। वहीं रोपाई वाले धान में 4-12 किलोग्राम नाइट्रोजन, 1-13 किलोग्राम स्फुर, 7-14 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के पोषण का अवशोषण कर डालते हैं। इससे धान की फसल सही बढ़वार और अच्छी उत्पादकता से वंचित हो जाती है।
कब करें खरपतवारों की रोकथाम
धान की फसल में खरपतवारों से होने वाला नुकसान खरपतवारों की संख्या, किस्म और फसल से प्रतिस्पर्धा के समय पर निर्भर करता है। घास कुल के खरपतवार जैसे सावां और कोदों फसल को शुरूआती दौर में जबकि चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बाद की अवस्था में फसल को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। सीधे बोए गए धान में बुआई के 15-45 दिन तथा रोपाई वाले धान में रोपाई के 35-45 दिन बाद का समय खरपतवार प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से नाजुक दौर होता है। इस अवधि में फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक है जिससे फसल का उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता है ।
कैसे करें खरपतवारों की रोकथाम
खरपतवारों की रोकथाम में ध्यान देने वाली बात यह है कि खरपतवारों का सही समय पर नियंत्रण किया जाए और इसमें यह महत्वपूर्ण कम ही है कि उसे किस विधि से किया जा रहा है। यानी मूल चिंता खरपतवारों का खात्मा है, विधि नहीं। लेकिन धान की फसल में खरपतवारों को नष्ट करने की विधियों की जानकारी होनी जरूरी है जो निम्न है।
निवारक विधि
इस विधि में वे क्रियायें शामिल है जिनके द्वारा धान के खेत में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है। इसके अंतर्गत बचाव के तरीके जैसे कि प्रामाणिक बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई , खेत की तैयारी एवं बुआई में प्रयोग किए जाने वाले यंत्रों की बुवाई से पूर्व साफ-सफाई एवं अच्छी तरह से तैयार की गई नर्सरी से पौध को रोपाई के लिए लगाना आदि शामिल हैं।
यांत्रिक विधि
खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है। किसान धान के खेतों से खरपतवारों को हाथ या खुरपी की सहायता से निकालते हैं। कतारों में सीधी बोनी की गई फसल में ‘हो’ चला कर भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसी प्रकार पैडीवीडर चला कर भी खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। सामान्यत: धान की फसल में दो निराई -गुड़ाई करनी चाहिए। पहली बुआई और रोपाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी 40-45 दिन बाद करने से खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। शस्य क्रियाओं में परिवर्तन द्वारा बुआई से पूर्व खरपतवारों को नष्ट करना भी आजमाया विकल्प है। खरीफ की पहली बारिश के बाद जब खरपतवार दो-तीन पत्ती के हो जाएं तो इनको शाकनाशी (ग्लाइफोसेट या पैराक्वेट) द्वारा या यांत्रिक विधि (जुताई करके) से नष्ट किया जा सकता है जिससे मुख्य फसल में खरपतवारों के प्रकोप में काफी कमी आ जाती है।
रबी की कटाई के बाद गहरी जुताई
गहरी जुताई द्वारा रबी की फसल की कटाई के तुरंत बाद या गर्मी के मौसम में एक बार गहरी जुताई कर देने से खरपतवारों के बीज व कंद ऊपर आ जाते हैं तथा तेज धूप में जलकर अपनी अंकुरण क्षमता खो देते हैं। इस विधि से कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप भी कम हो जाता है। रोपाई वाले खेतों में मचाई करके खरपतवारों की समस्या को कम किया जा सकता है। मचाई एवं हैरो करने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल करके एवं खेत में पानी भरकर लंबे समय तक रोककर खरपतवारों की रोकथाम आसानी से की जा सकती है।
किस्मों का चुनाव और कतारों में बुवाई
जहां पर खरपतवारों की रोकथाम के साधनों की उपलब्धता में कमी हो वहां पर ऐसी धान की किस्मों का चुनाव करना चाहिए जिनकी प्रारंभिक बढ़वार खरपतवारों की तुलना में अधिक हो, ताकि धान की फसल खरपतवारों से आसानी से प्रतिस्पर्धा कर उनपर हावी हो सकें और नीचे दबा दें। प्राय: यह देखा गया है कि किसान भाई असिंचित उपजाऊ भूमि में धान को छिटकवां विधि से बोते है। छिटकवां विधि से कतारों में बोई गई धान की तुलना में अधिक खरपतवार उगते है तथा उनके नियंत्रण में भी कठिनाई आती है। अत: धान को हमेशा कतारों में बोना लाभदायक रहता है।
दूरी एवं बीज की मात्रा
धान की कतारों के बीच की दूरी कम रखने से खरपतवारों को उगने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाता है। इसी तरह बीज की मात्र में वृद्धि करने से भी खरपतवारों की संख्या एवं वृद्धि में कमी की जा सकती है। धान की कतारों को संकरा करने (15 सेमी) एवं अधिक बीज की मात्र (80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) का प्रयोग करने से खरपतवारों की वृद्धि को दबाया जा सकता है।
उचित फसल चक्र अपनाएं
एक ही फसल को बार-बार एक ही खेत में उगाने से खरपतवारों की समस्या जटिल हो जाती है। अत: यह आवश्यक है कि पूरे वर्ष भर एक ही खत में धान-धान-धान की फसल दुहराते रहने की जगह धान की एक फसल के बाद उसमें दूसरी फसलें जैसे चना, मटर, गेहूं आदि लेने से खरपतवारों को कम किया जा सकता हैं।
सिंचाई एवं जल प्रबंधन
रोपाई किये गये धान में पानी का उचित प्रबंधन करके खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया कि धान की रोपाई के दो-तीन दिन बाद से एक सप्ताह तक पानी एक-दो सेंटीमीटर खेत में समान रूप से रहना चाहिए। उसके बाद पानी के स्तर को पांच-दस सेंटीमीटर तक समान रूप से रखने से खरपतवारों की वृद्धि को आसानी से रोका जा सकता है। मचाई किए गए सीधे बुआई के धान के खेत में जब फसल 30-40 दिन की हो जाए तो उसमें पानी भरकर खेत की विपरीत दिशा में जुताई (क्रॉस जुताई) करके पाटा लगा देने से खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। इस विधि को उड़ीसा में बुशेनिंग एवं मध्यप्रदेश में बियासी कहते हैं। (साभार किसानहेल्प)