- शामली में तीन अक्टूबर को एक मंच पर दो दिग्गज आ रहे हैं साथ
- मेघालय के राज्यपाल के साथ आने से बदलेंगे लोस चुनाव समीकरण!
राजपाल पारवा |
शामली: एक समय किसान मसीहा चौधरी चरणसिंह के साथ राजनैतिक पगडंड़ियों पर साथ चलने वाले मेघालय के राज्यपाल सतपाल मलिक अब उनके पौते चौधरी जयंत सिंह के साथ सुर-ताल मिलाने जा रहे हैं। अगर सब कुछ रणनीति के हिसाब से सही चला तो फिर महात्मा गांधी की जयंती के अगले दिन यानी तीन अक्टूबर को राज्यपाल सतपाल मलिक और चौधरी जयंत सिंह शामली में एक मंच पर किसानों को साधते हुए नजर आएंगे।
किंवदंती है कि द्वापर युग में महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र जाते समय भगवान श्रीकृष्ण ने कुछ देर शामली में विश्राम किया था। इसलिए उस समय इस स्थान का श्यामली नाम पड़ा, जो कालांतर में शामली पुकारा जाने लगा। कान्हा की शामली की सरजमीं पर आगामी तीन अक्टूबर को एक नया राजनैतिक परिदृश्य नजर आएगा। दरअसल, बिहार, जम्मू-कश्मीर के बाद वर्तमान में मेघालय के राज्यपाल सतपाल मलिक महात्मा गांधी की जयंती के अगले दिन यानी तीन अक्टूबर को शामली आ रहे हैं।
हालांकि उनका मेघालय के राज्यपाल पद का कार्यकाल भी 4 अक्टूबर को पूरा हो रहा है। मलिक यहां राष्ट्रीय लोकदल के किसान सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि और वक्ता शिरकत करेंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह ने राज्यपाल सतपाल मलिक के किसान सम्मेलन में शिरकत करने की पुष्टि करते हुए जनपद के पदाधिकारियों को सम्मेलन सफल बनाने के लिए कमर कसने का इशारा कर दिया है। इसलिए सोमवार को रालोद किसान सम्मेलन को सफल बनाने के लिए रणनीति बनाने जा रहा है।
मेरठ कालेज, मेरठ के 1968 में छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के साथ ही राजनीति में पदार्पण करने वाले सतपाल मलिक एक समय किसान नेता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह के बेहद करीबी रहे हैं। चौ. चरणसिंह की पार्टी से 1974 में वे पहली बार सतपाल मलिक बागपत विधानसभा से विधायक बने। चौधरी साहब ने मलिक को बाद में राज्यसभा में भी भेजा, लेकिन 1977 के लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने से चौ. चरणसिंह और सतपाल मलिक के बीच तल्खी पैदा हो गई।
दरअसल, 1975 में आपातकालन के दौरान जब चौ. चरणसिंह जेल चले गए, तो उनको सतपाल मलिक से अपेक्षा थी कि वे जनता के बीच जाकर उनके पक्ष में माहौल तैयार करेंगे, लेकिन मलिक ऐसा नहीं कर पाए। 1984 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 1985 में सतपाल मलिक पाला बदलकर कांग्रेस के साथ हो लिए। सपा और जनता दल से होते हुए करीब एक दशक पहले उन्होंने भगवा झंडा थाम लिया। उनको उम्मीद थी कि 2009 में लोकसभा का टिकट मिलेगा, लेकिन निराश हाथ लगी, जो 2014 के लोकसभा तक जारी रही।
हालांकि भाजपा ने उनको पहले बिहार, फिर जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया। वर्तमान में वे मेघालय के राज्यपाल हैं। फिर भी, भाजपा और उसके नेताओं से लगता है, मलिक का छत्तीस का आंकड़ा है। पिछले कुछ समय से उनके भाजपा विरोधी बयान सुर्खियों में रहे हैं। इनमें चाहे जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल रहते हुए दो फाइलों को पास करने की एवज में 300 करोड़ के आॅफर से संबंधित बयान हो या फिर सामाजिक मंचों पर ‘देश को बिकने से रोकना होगा’ जैसे बयान हों। एक समय मलिक ने भाजपा सरकार पर किसान परस्त न होने का आरोप लगाते हुए न केवल गर्वनर पद छोड़ने का ऐलान किया बल्कि साफ कह दिया था कि वे चौ. चरणसिंह के साथ रहा हूं। इसलिए उनके लिए देश किसान का हित
सर्वोपरि है।
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा एक्टिव मोड में है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत अन्य नेता लगातार जनपद स्तर पर दौरे कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को बूथ स्तर पर जनता के बीच पहुंचकर उनका दु:ख-दर्द साझा करने के निर्देश दिए गए हैं।
दूसरी ओर, रालोद का फिलहाल सदस्यता अभियान चल रहा है, उसका भी कुछ खास हो हल्ला सुनाई नहीं पड़ रहा है। हालांकि रालोद प्रदेशाध्यक्ष रामाशीष राय पश्चिमी उप्र का दौरा कर कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार जरूर कर गए हैं। ऐसे में राज्यपाल सतपाल मलिक के साथ चौधरी जयंत सिंह का शामली में ही पहला कार्यक्रम क्यों? इसका सीधा सा जवाब है कि विधानसभा चुनाव में जनपद में सपा-रालोद गठबंधन ने क्लीन स्वीप किया था। इसलिए शामली की सरजमीं से मुजफ्फरनगर के साथ-साथ बागपत समेत पश्चिमी उप्र तक लोकसभा चुनाव के लिए संदेश पहुंचाना है।