पाकिस्तान के बार्डर से लगे जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में हाल की लक्षित हत्याएं चिंता का बड़ा कारण हैं। बीते रविवार को डांगरी गांव में फायरिंग में चार लोगों की हत्या व कई लोगों के घायल होने से देश सहमा हुआ था कि अगले दिन इसी गांव में बम धमाके से हुई एक बच्चे की मौत ने आतंकवादियों के दुस्साहस की बानगी दिखा दी। आतंकवादियों ने गांव में आधार कार्ड देखकर लोगों को निशाने पर लिया और जमकर फायरिंग की। फिर अगले दिन आईईडी ब्लास्ट किया। यह भी गंभीर चिंता का विषय है कि ये घटनाएं उस राजौरी क्षेत्र में हुई हैं, जिसमें आतंकवादी घटनाएं कम ही देखने में आती थीं। हाल के महीनों में सार्वजनिक स्थानों पर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के ट्रेंड के बजाय जिस तरह से संप्रदाय विशेष के लोगों को गोलियों का शिकार बनाया जा रहा है, वह एक गंभीर मसला है। यह जहां कानून-व्यवस्था की विफलता का मामला है वहीं केंद्र की उन नीतियों की सार्थकता पर सवाल उठाता है, जिसमें बड़े व्यवस्थागत बदलावों के बाद शांति स्थापना का दावा किया गया था।
सरकार का दावा है धारा 370 हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर समेत पूरे राज्य में आतंक घटनाओं में कमी आई है। 5 अगस्त 2016 से 4 अगस्त 2019 के बीच कानून व्यवस्था से जुड़ी 3686 वारदातें हुईं। 930 आतंकी घटनाएं शामिल हैं जिनमें 290 जवान शहीद हुए और 191 नागरिकों की मौत हुई। जबकि 5 अगस्त 2019 से 4 अगस्त 2022 के बीच कानून व्यवस्था से जुड़ी 438 वारदातें दर्ज हुईं। 617 आतंकी घटनाएं हुर्इं जिनमें 174 जवान शहीद हुए और 110 नागरिकों की मौत हुई।
हालांकि विपक्ष का आरोप है कि राज्य में आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। खासकर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 की समाप्ति के बाद। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि ऐसे माहौल में राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापना के लक्ष्य हासिल हो पाएंगे? जाहिर बात है कि कभी कश्मीरी पंडितों तो कभी बाहरी कामगारों को निशाना बनाकर आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक विभाजन की साजिश रच रहे हैं। जिसमें उन्हें सीमापार से हथियार व अन्य संसाधन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। दरअसल, जम्मू-कश्मीर में अलगाव के प्रतीक बताये जा रहे विशेष दर्जे के समाप्त होने के बाद उम्मीद लगायी जा रही थी केंद्रीय शासन में अलगाववादी ताकतों का शमन होगा।
आतंक से मुक्ति के बाद आने वाली विकास की बयार से केंद्र शासित प्रदेश राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ सकेगा। निस्संदेह, केंद्र व केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के प्रयासों पर आतंकवादी घटनाएं पानी फेरती हैं। खासकर यूटी में चुनावी प्रक्रिया को मूर्त रूप देने के प्रयासों को भी इन घटनाओं से झटका लगेगा। उल्लेखनीय है कि हाल के दिनों में विदेश मंत्री ने तमाम वैश्विक मंचों पर पाक के आतंकवादियों को संरक्षण देने के कुत्सित प्रयासों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी।
साथ ही यह भी कि आतंकवाद को प्रश्रय देना पाक के सत्ता प्रतिष्ठानों की रणनीति का हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र में भी उन्होंने पाक को आतंकवाद का केंद्र बताया था। इसके बावजूद पाक पिछले सात दशक से भारत को लहूलुहान करने की साजिशों से बाज नहीं आ रहा है। अपने कूटनीतिक स्वार्थों के पोषण के लिये अमेरिका जिस तरह का गेम खेल रहा है, उससे पाकिस्तानियों के हौसले बढ़े हैं।
साल 2022 में कश्मीर में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच कुल 93 मुठभेड़ की घटनाएं सामने आई हैं। इन मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने 42 विदेशी आतंकी समेत कुल 172 दहशतगर्दों को ढेर किया है। एडीजीपी कश्मीर विजय कुमार ने बताया कि वर्ष 2022 के दौरान कश्मीर में कुल 93 सफल मुठभेड़ हुए, जिसमें 42 विदेशी आतंकवादियों सहित 172 आतंकवादी मारे गए।
एलईटी और टीआरएफ आतंकी संगठन के सबसे ज्यादा 108 आतंकियों को मार गिराया गया। इसके बाद आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के 35 आतंकियों को मार गिराया गया, हिजबुल मुज्जाहिद्दीन के 22, अल-बद्र के 4 और एजीयूएच आतंकी संगठन के 3 आतंकियों का सफाया किया गया। इस वर्ष आतंकवादी रैंकों में 100 नई भर्तियों में पिछले वर्ष की तुलना में 37 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। अधिकतम 74 लश्कर में शामिल हुए। कुल भर्ती में से 65 आतंकवादी मुठभेड़ में मार गिराए गए जबकि 17 आतंकवादी गिरफ्तार किए गए।
हालही में राजौरी में आतंकी हमले के बाद केंद्र ने जो फैसला लिया है, वो आतंकियों की नींद उड़ा देगा। दरअसल अब खबर सामने आई है कि केंद्र जम्मू कश्मीर में सीआरपीएफ की 18 अतिरिक्त कंपनियों की तैनाती करेगा। इसका मतलब ये है कि जम्मू कश्मीर में करीब 1800 जवान अतिरिक्त तैनात होंगे जो चुन-चुनकर आतंकियों को सबक सिखाएंगे और आतंकवाद को जड़ से खत्म करेंगे। ये जानकारी सूत्रों के हवाले से सामने आई है।
इन 1800 जवानों की मुख्य रूप से तैनाती राजौरी और पुंछ जैसे जिलों में होगी। यहां आतंकी घटनाएं ज्यादा सामने आती हैं। मिले इनपुट्स के मुताबिक, सीआरपीएफ की 8 कंपनियां जल्द ही जम्मू-कश्मीर में नजदीकी स्थानों से तैनात की जाएंगी, जबकि सीआरपीएफ की 10 कंपनियां दिल्ली से भेजी जा रही हैं।
इस मामले में राजनीति भी शुरू हो गयी है। जो जम्मू कश्मीर के हालातों के मद्देनजर किसी भी तरह ठीक नहीं है। ये वक्त एकजुट होकर आतंक के खिलाफ खड़े होने का है। क्योंकि यहां सवाल नागरिकों की जान का है। सरकार को इस दिशा में सख्त और ठोस कदम उठाने से गुरेज नहीं करना चाहिए। शांति बहाली के लिए सरकार जो भी कदम उठाएगी नागरिक उसके साथ खड़े होंगे।