रामबोल तोमर |
मेरठ: आरटीओ में सब कुछ आॅनलाइन है, फिर भी दलाल राज प्रभावी है। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के मामले में सबसे बड़ा खेल चलता है। यदि आप दलाल के माध्यम से जा रहे हैं तो आपका ड्राइविंग लाइसेंस से पहले लिए जाने वाला टेस्ट पास कर दिया जाएगा, अन्यथा आपको टेस्ट में फेल कर दिया जाएगा।
इस तरह से पास ओर फैल का खेल आरटीओ में चलता है। क्योंकि बहुत सारे ऐसे आवेदक पहुंचते हैं, जो पढ़े लिखे नहीं है उनको टेस्ट में फेल बता कर फाइल रोक दी जाती है, लेकिन यह फाइल दलाल के माध्यम से आती है तो फिर सब कुछ ओके कर दिया जाता हैं। इस तरह से आरटीओ आफिस है आनलाइन, लेकिन दलाल राज हावी हैं।
इस सबके पीछे है भ्रष्टाचार का खेल आरटीओ में पूरा दिन चलता है। आरटीओ आॅफिस में एंट्री करने से पहले ही दलालों के बस्ते सजे हुए हैं, जो भी दलालों के शिकंजे में फंसा फिर उसकी ठगाई शुरू हो जाती है। इस बात को आवेदक भी जानता है, लेकिन ड्राइविंग लाइसेंस को लेकर इतनी शक्ति पुलिस प्रशासन ने कर दी है कि हर जगह चेकिंग हो रही है, जिसमें ड्राइविंग लाइसेंस दिखाना अनिवार्य कर दिया हैं। यही वजह है कि ड्राइविंग लाइसेंस को लेकर आरटीओ में सर्वाधिक मारामारी है।
दरअसल, आरटीओ आफिस के क्लर्क लंबे समय तक ड्राइविंग लाइसेंस हो या फिर अन्य फाइलों के मामले को लटकाए रखते हैं। क्योंकि आवेदक हार थक कर दलाल को पकड़ता है। इसके बाद ही काम हो पाता है। ऐसा नहीं है कि दलाल के माध्यम से ही काम होंगे शासन स्तर से दलाली खत्म करने के लिए सब कुछ सिस्टम आनलाइन कर दिया है, मगर फिर भी आॅफलाइन सब चल रहा है।
कहा तो यह जाता है कि ड्राइविंग लाइसेंस के लिए जो टेस्ट लिया जाता है, वह भी आॅनलाइन है, लेकिन उसमें भी बड़ा खेल चलता है। यह सब जगजाहिर है। जनवाणी के पास इसके पुख्ता सबूत भी उपलब्ध कराये गए हैं। एक साथ टेस्ट में दस से बीस अभ्यर्थियों को बैठाया जाता है, इसमें जो दलाल के माध्यम से आता है तो उसकी फाइल फाइनल कर दी जाती है। अन्यथा बाकी की फाइल रोक दी जाती है।
दो-दो माह तक आवेदक को आरटीओ आॅफिस के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसी को लेकर कई बार कर्मचारियों व आवेदकों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है। हालांकि आॅन लाइन आवेदन और आॅन लाइन ही टेस्ट के लिए समय निर्धारित कर दिया जाता है। निर्धारित समय से यदि आवेदनकर्ता आता है तो उसका टेस्ट भी कराया जाता है। उसे तमाम प्रक्रिया से गुजरना होता है।
भाजपा सरकार जब सत्ता में आयी तो एक बारगी आरटीओ आॅफिस के बाहर सजी दलालों की दुकानें बंद कर दी गई थी। एफआईआर तक दर्ज करायी गयी थी। यह दौर कुछ समय के लिए चला था, लेकिन फिर से आरटीओ पुराने ढर्रे पर है। दलाल भी बैठते हैं, आरटीओ आॅफिस में पूरा हस्तक्षेप भी रखते हैं। जैसे कभी पहले हुआ करता था, वहीं सबकुछ आरटीओ में चल रहा है।