Friday, June 20, 2025
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चौंका रहे हैं हीरोइनों के किरदार और भाषा

CINEWANI


फिल्म ‘फुकरे’ की खलनायिका भोली पंजाबन अपने पहले ही सीन में ऐसा संवाद बोलती है जिससे हिंदी सिनेमा का दर्शक एकबार तो चौंक-सा जाता है। सवालिया नजरें भी उठने लगती हैं कि भारतीय महिला का यह कौन-सा चेहरा है लेकिन बहुत जल्दी इस किरदार का मिजाज सबकी समझ में आ जाता है और उठती निगाहें भी सीधी होने लगती हैं।

इसके बाद जब भोली पंजाबन कहती है, ‘अगर मेरा पैसा डूबा तो मैं तुम्हारे पिछवाड़े में हाथ डाल कर निकाल लूंगी’ तो दर्शकों को ज्यादा हैरानी नहीं होती क्योंकि इस तरह के किरदार पर इस तरह की भाषा ही फिट होती है। वैसे फिल्मों का यह नया चेहरा है जहां महिलाएं वह सब कर और कह रही हैं जो कभी पुरूषों के लिए भी टैबू समझस जाता था। सच तो यह है कि पर्दे पर वर्जनाएं तोड़ने के लिए महिला किरदार जिस कदर उतावली नजर आ रही हैं, उतने पुरूष किरदार नहीं हैं।

फिल्म ‘घनचक्कर’ के प्रोमोज में हीरोइन विद्या बालन कहती हैं, ‘एनां दी अज मैं (बीप) मार देणी ऐ….’ तो यकीन जानिए, थिएटरों में बैठी हुई आॅडियंस की पहली जिज्ञासा यही होती है कि यार, कब आ रही है यह फिल्म? जाहिर है कि हिंदी फिल्म की हीरोइन को इस किस्म का ‘खतरनाक’ डायलॉग बोलते हुए सुनने के बाद कोई भी इसे मिस नहीं करना चाहेगा।

देखा जाए तो महिलाओं के हदें लांघने वाले ये संवाद पर्दे पर कोई पहली बार नहीं नजर आ रहे हैं। इससे पहले भी ऐसा कई बार हुआ है लेकिन शुरू से ही पर्दे पर महिलाओं के लिए एक दायरा तय कर दिया गया और जब-जब किसी किरदार ने अपनी किसी हरकत, संवाद, लिबास के जरिए इस हद को लांघने की कोशिश की तो वह काफी लोगों को रास नहीं आई लेकिन अब चीजें बदल रही हैं।

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ज्यादा पुरानी बात नहीं है। पिछले साल आई अली जफर और अदिति राव हैदरी की फिल्म ‘लंदन पेरिस न्यूयार्क’ में जब हीरोइन के ज्यादा सटकर बैठने से हीरो के शरीर में हरकत होने लगती है और वह उसे दूर हटने को कहता है तो हीरोइन का जवाब होता है, ‘मेरी गलती है कि तुम एक नंबर के ठरकी हो।’ साफ है कि पर्दे पर आज की लड़कियां आज में जीती हैं और इस तरह के संवाद बोलने में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं होती बल्कि आज के समय में तो ऐसे संवाद उनके लिए आम हो गए हैं।

आमिर खान के बैनर की ‘दिल्ली बैली’ का वो सीन ही देख लीजिए, जिसमें इमरान खान और पूर्णा जगन्नाथन एक होटल में किसी और के कमरे में घुस जाते हैं और जब उस कमरे के असली मालिक वहां पहुंचते हैं तो पूर्णा फौरन इमरान के ऊपर बैठ कर ऐसा दिखाती है जैसे वे दोनों ‘कुछ’ कर रहे हैं। इसके बाद का सीन भी पर्दे पर दिखाए जाने वाले अभद्र सींस की सारी हदें पार कर देता है।

इस फिल्म ने जितनी ज्यादा सीमाएं लांघी थी, उतनी अभी तक शायद ही किसी फिल्म ने पार की हों। ‘देव डी’ के किरदार भी इसी तरह से सीमाएं लांघते नजर आए थे जिसकी काफी आलोचना भी की गई थी। इस फिल्म में भी जब हीरोइन अपने प्रेमी से ‘मिलने’ के लिए खेतों में जाती है तो सुविधा के लिए एक गद्दा साइकिल के पीछे बांध कर ले जाती है।

साथ ही इस फिल्म में दिल्ली के एक नामी स्कूल में हुए चर्चित एमएमएस स्कैंडल की छाया भी थी कि किस तरह से वह लडकी अपनों का प्यार न मिलने पर एक गलत संगत में पड़ जाती है। इस फिल्म के डायरेक्टर अनुराग कश्यप का कहना है, ‘असल में यह फिल्म हमारे अंदर के दोगलेपन को सामने लाती है कि किस तरह से हम समाज में स?य बने रहते हैं और अकेले में कुछ और हो जाते हैं। मैं इंसान के इसी चेहरे को सामने लाना चाहता था, जो वह वास्तव में होता है।’

अनुराग कश्यप की ही ‘दैट गर्ल इन यैलो बूट्स’ में मुंबई में रह रही फिरंगी नायिका जब आटो रिक्शा वाले से कहती है, ‘मैं फिरंगी हूं तो मुझे बीप मत बना’, तो लगता नहीं कि हम कुछ अनहोनी बात सुन रहे हैं। ऐसे ही ‘नो वन किल्ड जेसिका’ को देख चुके दर्शक इसमें एक न्यूज चैनल की रिपोर्टर बनीं रानी मुखर्जी का यह संवाद कभी नहीं भूलेंगे, ‘अगर वहां (मोर्चे पर) होते तो….फट के हाथ में आ जाती…।’

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एकता कपूर के प्रोडक्शन में बनी फिल्म ‘द डर्टी पिक्चर’ तो एक ऐसी फिल्म है जो न सिर्फ बेहद बोल्ड है बल्कि सभ्य समाज के कई छुपे हुए सच सामने लाती है। जहां एक स्ट्रगलर हीरोइन खुद जा कर स्टार हीरो से कहती है कि उन्होंने भले ही पांच सौ लड़कियों के साथ ‘ट्यूनिंग’ की होगी लेकिन क्या उन्होंने एक ही लड़की के साथ पांच सौ बार ‘ट्यूनिंग’ की है? इंसीडेंटली ‘द डर्टी पिक्चर’ में भी हीरोइन विद्या बालन थीं और ‘घनचक्कर’ में भी।

विद्या कहती हैं, ‘जिस तरह का फिल्म ‘फुकरे’ में लाउड पंजाबन का किरदार है, भाषा भी वैसी होनी ही थी और मुझे नहीं लगता कि पूरी फिल्म देखने के बाद किसी को इस पर ऐतराज होना चाहिए।’ ऐतराज हो या न हो, सच तो यह है कि अब पर्दे पर नजर आने वाली हीरोइनें घिसे-पिटे संवाद और सोच से बाहर निकल रही हैं। वे ऐसी सारी सीमाएं लांघ रही हैं, जो उन्हें किसी भी तरह की बंदिशों में जकड़ती हैं। किसी को बुरा लगे तो लगता रहे, इनकी बला से।

नरेंद्र देवांगन


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