नंदलाल बोस को आधुनिक भारतीय कला के आरंभिक कलाकारों में से एक माना जाता है। कलागुरु अवनींद्रनाथ ठाकुर, प्रेरक रवींद्रनाथ ठाकुर और प्रख्यात चित्रकार गगनेंद्रनाथ ठाकुर के सानिध्य में अपनी कलाचर्या में निरंतर गतिशील एवं सक्रिय नंदलाल ने अपनी परंपरा और धरोहर की श्रेष्ठता को आनिवार्य रूप से ध्यान में रखा। नंदलाल बोस की कला साधना को केवल बिहार, बंगाल या भारत के मंच पर ही नहीं, विश्व कला मंच पर बड़े सम्मान के साथ रखा गया। बिहार के मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर में 3 दिसम्बर 1882 को जन्मे, पले-बढ़े नंदलाल कला अध्ययन के लिए कोलकता आए और फिर सारे कला जगत के होकर रह गए।‘शान्तिनिकेतन’ के कलाभवन के प्रधानाध्यापक रहे नंदलाल बोस को वह गौरव हासिल है कि उन्होंने भारतीय संविधान की मूल प्रति को चित्रों से सजाया था। जवाहरलाल नेहरू जब 1946 में ‘शांतिनिकेतन’ गए तो वहां नंदलाल बोस को संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाने का निमंत्रण दिया। 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान बनकर तैयार हुआ था। आज 73 वर्ष बाद अगर हम मूल संविधान के पन्नों को पलटते हैं तो हमें नन्दलाल बोस की कूची से बनाए हुए कुल 22 चित्र नजर आते हैं। इन चित्रों से हम समझ सकते हैं कि हमारे संविधान निर्माताओं के मन और मस्तिष्क में कैसे आदर्श भारतीय समाज की परिकल्पना रही होगी।
इन 22 चित्रों के जरिये भारत की महान परम्परा की कहानी बयां की गई है। मंशा यह थी कि संविधान में भारतीय संस्कृति और सभ्यता के दर्शन हों। उस दौर में इस काम के लिए नंदलाल बोस उपयुक्त व्यक्ति थे। भारतीय संविधान में 22 खंड हैं, जिसे विख्यात चित्रकार नंदलाल बोस ने अपनी उत्कृष्ट चित्रकारी से चित्रित किया है। संविधान की मूल प्रति को सजाने में चार साल लगे। इस काम के लिए उन्हें 21,000 रुपये मेहनताना दिया गया।
बड़ी-बड़ी तस्वीरों को नंदलाल बोस ने खुद पेंट किया। सुनहरे बार्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ से की गई है। इसे नंदलाल बोस के शिष्य दीनानाथ भार्गव ने बनाया था। जब प्रथम पृष्ठ की इस चित्रकारी को तैयार किया जाना था, उससे पहले भार्गव ने शेर की बनावट को समझने के लिए कई बार कोलकाता जू जाकर शेर को देखा था, ताकि पेंटिंग के दौरान किसी भी तरह की कोई कसर ना रहे।
अगले भाग में भारतीय संविधान की प्रस्तावना है। इसे आचार्य नंदलाल बोस के शिष्य राममनोहर सिन्हा ने अपनी कला से सजाया जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। इस बार्डर में शतदल कमल को भी स्थान दिया गया है। भारतीय संस्कृति में कमल का महत्व है। इन फूलों को समकालीन लिपी में लिखे अक्षरों में घेरा गया है। ये वही चित्र हैं, जो सामान्यत: मोहनजोदड़ो की सभ्यता के अध्ययन में दिखाई देते हैं।
अगले हिस्से में मोहनजोदड़ो की सील दिखाई गयी है। अगले हिस्से की शुरूआत वैदिक काल से की गयी है। इसमें किसी आश्रम का चिन्ह् है और मघ्य में बैठे उनके गुरु और शिष्यों तथा बगल में यज्ञशाला को दर्शाया गया है। मूल अधिकार वाले भाग की शुरुआत त्रेतायुग से की गई है। इस चित्र में भगवान राम की लंका विजय और सीता के साथ वापसी को दिखाया गया है।
हालांकि इस चित्र को लेकर संविधान-सभा में विवाद भी हुआ था। वोटिंग के बाद तय हुआ कि संविधान में लिखे शब्द भारतीय संविधान के अंग हैं, न कि छपे चित्र। नीति-निर्देशक तत्व वाले हिस्से में भगवान कृष्ण का गीता-उपदेश वाला चित्र है। भारतीय संविधान के संघ वाले हिस्से में गौतम बुद्ध की यात्रा से जुड़ा एक दृश्य है। संघ-राज्य वाले हिस्से में समाधिमुद्रा में मगवान महावीर हैं।
आठवें हिस्से में गुप्तकाल की कलाकृति, दसवें हिस्से में नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर, ग्यारहवें हिस्से में उड़ीसा की मूर्तिकला, बारहवें हिस्से में नटराज की मूर्ति, तेरहवें हिस्से में महाबलीपुरम मंदिर में उकेरी गई कलाकृति, चौदहवें हिस्से में मुगल स्थापत्य कला, पंद्रहवें हिस्से में गुरू गोविंद सिंह और शिवाजी, सोलहवें हिस्से में संघर्षरत टीपू सुल्तान और झांसी की रानी, सत्रहवें हिस्से में महात्मागांधी की दांडीयात्रा और अगले भाग में नोआखली यात्रा से जुड़ा चित्र भी है। इस चित्र में बापू के साथ दीनबंघु एंर्ड्यूज हैं। एक हिन्दू महिला गांधीजी को तिलक लगा रही है और कुछ मुस्लिम हाथ जोड़े खड़े हैं। यह चित्र साम्प्रदायिक सद्भावना का परिचायक है।
19 वें हिस्से में नेताजी सुभाषचंद्र बोस, 20वें हिस्से में हिमालय के उत्तुंग शिखर हैं। यह भारतीय सभ्यता की उंचाई को प्रतिबिंबित करती है। अगले हिस्से में दूर तक फैले रेगिस्तान और ऊंटों का काफिला है, जो प्राकृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है। अंतिम भाग में समुद्र और बडोदरा में गायकवाड राजाओं का पारंपरिक कीर्ति मंदिर है।
नन्दलाल बोस के स्वतन्त्रता आंदोलन से सम्बन्धित चित्र भी भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं। उनके 1882-1966 का काल स्वतंत्रता संग्राम के लिहाज से भारत के चित्र इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इनमें गांधी जी की ‘दाण्डी यात्रा’ तो बहुत प्रसिद्ध है।
आज भी उनकी 7000 कृतियां संग्रहित हैं। उनके जीवन काल में उन्हें अनेक सम्मानों से सम्मानित किया गया। वर्ष 1954 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया। 16 अप्रैल, 1966 को इस महान, विश्वविख्यात चित्रकार का देहांत हो गया। उनकी जन्मभूमि हवेली खड़गपुर में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ‘संभवा’ द्वारा उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई।