तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा समेत विपक्ष के 8 से ज्यादा नेताओं ने 31 अक्टूबर को केंद्र सरकार पर फोन हैकिंग का आरोप लगाया है। मामले में आईटी मंत्रालय की पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी एपल को समन भेजकर पूछताछ के लिए बुला सकती है। 31 अक्टूबर को महुआ मोइत्रा के अलावा कांग्रेस सांसद शशि थरूर, पवन खेड़ा, आम आदमी पार्टी सांसद राघव चड्ढा ने सोशल मीडिया पर आईफोन का अलर्ट मैसेज पोस्ट कर लिखा- सरकार उनके फोन और ईमेल को हैक करवाने की कोशिश कर रही है। कुछ घंटे बाद राहुल गांधी भी कांग्रेस कार्यालय पहुंचे और कहा कि एपल की ओर से जो अलर्ट आया है, वो मेरे आॅफिस में सभी को मिला है। भाजपा की सरकार और उसका फाइनेंशियल सिस्टम इस मामले से सीधे जुड़ा हुआ है। इन नेताओं में केसी वेणुगोपाल, पवन खेड़ा, सीताराम येचुरी, प्रियंका चतुवेर्दी, टीएस सिंह देव, महुआ मोइत्रा, राघव चड्ढा के नाम शामिल हैं। मामला सामने आने के बाद सियासी भूचाल आ गया और विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया। साल 2021 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीजेपी पर स्पाईवेयर पेगासस के जरिए जासूसी करने का आरोप लगाया था। एमनेस्टी इंटरनेशनल और फॉरबिडेन स्टोरीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर से भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा हस्तियों के फोन हैक किए थे। इनमें राजनेताओं, पत्रकारों और कई पूर्व प्रोफेसरों के फोन शामिल थे। राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने 2006 में यूपीए सरकार और सोनिया गांधी पर फोन टैपिंग का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था इंटेलीजेंस ब्यूरो उनका फोन टैप कर रही है।
भाजपा ने मामले में जॉर्ज सोरोस फंडेड एक्सेस नाउ और आईफोन नोटिफिकेशन के बीच संबंध का संकेत दिया। बीजेपी आईटी विभाग प्रमुख अमित मालवीय मालवीय ने एक्स पर एक नेटिजन का पोस्ट किया गया थ्रेड भी शेयर किया। कहा कि यह एक दिलचस्प थ्रेड है जो जॉर्ज सोरोस फंडेड एक्सेस नाउ और ऐप्पल नोटिफिकेशन के बीच एक लिंक खींचता है। नोटिफिकेशन केवल विपक्षी नेताओं को मिला है। इसमें एक्सेस नाउ की भूमिका दिखाई देती है। मालवीय ने कहा कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि राहुल गांधी सब कुछ छोड़ कर प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने दौड़ पड़े। मालवीय ने कहा यहां भयावह साजिश देखें। थ्रेड में एक्सेस नाउ के भारत में बनाए गए नेटवर्क की डिटेल भी है। भाजपा नेता ने एक्स पर लिखा कि यदि आप परियों की कहानियों में भरोसा करते हैं, तो क्या आप सोचेंगे कि यह सब कुछ संयोग है।
असल में, बहुराष्ट्रीय कंपनी एप्पल ने विपक्ष के कुछ नेताओं को अलर्ट भेजा कि आपके आईफोन हैक किए जा सकते हैं। हमलावर आपके फोन के संवेदनशील डाटा, कैमरे और माइक्रोफोन आदि तक पहुंचने की कोशिश भी कर सकते हैं। एप्पल ने यह अलर्ट सिर्फ विपक्षी नेताओं को ही नहीं भेजा, बल्कि ऐसे लोगों तक भी भेजा है, जो सार्वजनिक जीवन में नहीं हैं। कुछ पत्रकारों और स्कॉलर्स तक भी यह अलर्ट पहुंचा है। यह अलर्ट 150 देशों में भी भेजा गया है, जहां एप्पल के आईफोन इस्तेमाल किए जाते हैं। साफ मायने हैं कि यह चेतावनी वैश्विक है, लिहाजा विपक्षी नेताओं की चीखा-चिल्ली महज सियासत है। विवाद बढ़ने के बाद एपल ने कहा कि स्टेट स्पॉन्सर्ड अटैकर्स को बढ़िया फंड मिलता है और वे बहुत सॉफिस्टिकेटेड तरीके से काम करते हैं। उनके अटैक भी समय के साथ बेहतर होते जाते हैं। ऐसे हमलों का पता लगा पाने के लिए हमें थ्रेट इंटेलिजेंस सिग्नल पर निर्भर रहना पड़ता है, जो कि कई बार परफेक्ट नहीं होते या अधूरे रहते हैं। ये संभव है कि एपल के कुछ थ्रेट नोटिफिकेशन फाल्स अलार्म हों या कुछ अटैक को डिटेक्ट न किया जा सके। हम ये जानकारी दे पाने में अक्षम हैं कि किन कारणों से हम थ्रेट नोटिफिकेशन जारी करते हैं, क्योंकि ऐसा करने से स्टेट स्पॉन्सर्ड अटैकर्स अलर्ट हो जाएंगे और फिर वे अटैक करने के अपने तरीके ऐसे बदल लेंगे कि भविष्य में पकड़ में नहीं आ पाएंगे।
एप्पल ने अपने बयान में यह स्पष्टीकरण भी दिया है कि खुफिया संकेतों के आधार पर ऐसे अलर्ट आते हैं, जो अधूरे और गलत भी साबित हो सकते हैं। कंपनी ने सरकार द्वारा प्रायोजित हमलावरों की बात तो की है, लेकिन किसी ‘विशेष सरकार’ का खुलासा नहीं किया है। एप्पल ने हैकिंग के ऐसे खतरों से निपटने वाले सिस्टम से इंकार किया है। कंपनी यह भी नहीं बता सकती कि अलर्ट किन हालात में देना पड़ा, क्योंकि यह जानकारी देने से हैकर्स उससे बचने के रास्ते खोज सकते हैं।
यानी स्पष्ट है कि फोन हैकर्स चीन, पाकिस्तान या किसी अन्य देश के भी हो सकते हैं! एप्पल ने एक ही समय, एक ही साथ, विपक्षी नेताओं और 150 देशों को यह चेतावनी-संदेश भेजा है, लिहाजा संदेहास्पद और सवालिया लगता है। यदि हैकिंग हुई है या की जा रही है, तो वह अलग-अलग स्थान पर, अलग-अलग समय में की जानी चाहिए। फिर भी मान सकते हैं कि मोदी सरकार ने विपक्ष के कुछ नेताओं और प्रवक्ताओं के फोन हैक कराए हैं, लेकिन 150 देशों और अराजनीतिक चेहरों के फोन हैक कराने में सरकार के सरोकार क्या हो सकते हैं? उनसे हासिल क्या होगा?
भारत में 2 करोड़ से अधिक लोग आईफोन का इस्तेमाल करते हैं और दुनिया भर में करीब 146 करोड़ उपयोगकर्ता हैं। क्या ये सभी मोदी सरकार के निशाने पर हैं अथवा सभी को अलर्ट भेजा गया था? केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव की घोषणानुसार जांच शुरू कर दी गई है। एप्पल भी जांच के दायरे में होगी। एप्पल से कथित ‘राज्य-प्रायोजित हमलों’ पर वास्तविक और सटीक जानकारी मांगी गई है। इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम इसकी जांच कर तह तक जाने की कोशिश करेगी। ‘फोन में सेंधमारी’ कोई नया मुद्दा नहीं है। किसी की निजता और गोपनीयता पर हमला भी नहीं है।
इस्राइल से खरीदे गए जासूसी सॉफ्टवेयर की चर्चा एक बार फिर मुखर हो रही है। हालांकि सर्वाेच्च अदालत की निगरानी में जो जांच कराई गई थी, उसमें कुछ भी ठोस सामने नहीं आया था। तब शीर्ष अदालत ने अपने-अपने फोन सरकार में जमा कराने का विकल्प भी दिया था, ताकि भीतरी जांच हो सके कि उसकी जासूसी कराई गई अथवा नहीं। तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी अपना फोन जमा नहीं कराया था। सवाल तो यह है कि फोन हैकिंग के संदर्भ में अडाणी की भूमिका क्या हो सकती है? राहुल गांधी ने किसे ‘तोता’ कहा है? क्या कांग्रेस सरकारों के कार्यकालों में अडाणी व्यापार नहीं करते थे? क्या उन्हें ठेके नहीं दिए गए? दरअसल जिनके फोन में सेंधमारी के आरोप उछले हैं, उनमें अधिकतर चेहरे राजनीतिक तौर पर अप्रासंगिक हैं अथवा आरोपित हैं। मोदी सरकार को उनके फोन हैक कर हासिल क्या होगा? वे भाजपा को राजनीतिक चुनौती देने की स्थिति में भी नहीं हैं। यदि एप्पल के चेतावनी-संदेश में कुछ ठोस था, तो विपक्ष को प्रेस ब्रीफिंग के बजाय प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए थी।