हाल में एक शोध में बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि माइक्रोप्लास्टिक यानी सूक्ष्म प्लास्टिक की मौजूदगी धरा के साथ-साथ बादलों में भी देखने को मिल रही है। यकीनन बादलों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी हमारी परेशानियों में इजाफा करने वाली है। लिहाजा, हमें यह समझने की आवश्यकता है कि माइक्रोप्लास्टिक हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिहाज से बेहद हानिकारक साबित हो सकते हैं। इससे जलवायु और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। बताते चलें कि जर्नल एनवायरनमेंट केमिस्ट्री लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने माउंट फूजी के शिखर के साथ-साथ इसकी दक्षिणपूर्वी तलहटी और माउंट ओयामा के शिखर से 1,300 से 3,776 मीटर की ऊंचाई पर बादल से लिए पानी के नमूनों का विश्लेषण किया है। इसके भौतिक और रासायनिक गुणों की जांच करने के लिए वैज्ञानिकों ने इमेजिंग तकनीक की मदद ली है। अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता लगाने के साथ-साथ यह भी जानने का प्रयास किया है कि प्लास्टिक के यह महीन कण बादलों के निर्माण और जलवायु को कैसे प्रभावित करते हैं। शोधकर्ताओंं ने इन नमूनों में प्लास्टिक के नौ अलग-अलग तरह के पॉलिमर की पहचान की है। उल्लेखनीय है कि माइक्रोप्लास्टिक के इन कणों का व्यास 7.1 से 94.6 माइक्रोमीटर के बीच दर्ज किया गया है।
शोधकतार्ओं के मुताबिक, बादलों में मिले यह ‘माइक्रोप्लास्टिक’ मुख्य रूप से समुद्रों में उत्पन्न हुए थे। उल्लेखनीय है कि प्लास्टिक के अत्यंत महीन कण जिनका आकार पांच मिलीमीटर या उससे कम होता है, उसे माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। शोध के मुताबिक, हर साल प्लास्टिक के करीब एक करोड़ टन टुकड़े जमीन से समुद्र में पहुंच रहे हैं, जहां से वो वायुमंडल में अपना रास्ता खोज लेते हैं। देखा जाए तो बादलों में इनकी मौजूदगी एक बड़े खतरे की ओर इशारा करती है। एक बार बादलों में पहुंचने के बाद यह कण वापस ह्यप्लास्टिक वर्षा ह्ण के रूप धरती पर गिर सकते हैं। इस तरह जो कुछ भी हम खाते, पीते हैं, यह उसे दूषित कर सकते हैं। गौरतलब है कि प्लास्टिक के यह महीन कण न केवल पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। साथ ही यह इंसानों में हृदय और फेफड़ों संबंधी बीमारियों के साथ-साथ कैंसर का भी कारण बन सकते हैं। रिसर्च से पता चलता है कि बहुत ज्यादा ऊंचाई पर मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स न केवल बादलों के निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं, बल्कि साथ ही यह जलवायु पर भी असर डाल सकते हैं।
दरअसल, आज हकीकत यही है कि प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा नासूर बन चुका है। प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण समूचे पारिस्थितिकी तंत्र को बड़े स्तर पर प्रभावित कर रहा है। आज यह कहना पड़ रहा है कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक बैगों, बर्तनों और अन्य प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं ने हमारे स्वच्छ पर्यावरण को बिगाड़ने का काम किया है। प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से इसके कचरे में भारी मात्रा में वृद्धि हुई है। जिसके चलते प्लास्टिक प्रदूषण जैसी भीषण वैश्विक समस्या उत्पन्न हो गई है।
दिनों-दिन प्लास्टिक से उत्पन्न होने वाला कचरा कई प्रकार की परेशानियों का सबब बन रहा हैं। उल्लेखनीय है कि प्लास्टिक एक ऐसा नॉन-बायोडिग्रेडबल पदार्थ है जो जल और भूमि में विघटित नही होता है। यह वातावरण में कचरे के ढेर के रूप में निरंतर बढ़ता चला जाता है। इस कारण से यह भूमि, जल और वायु प्रदूषण का कारण बनता है। प्लास्टिक ने हमारी जीवन शैली को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। निस्संदेह, प्लास्टिक ने हमारे जीवन पर जोखिम को बढ़ाने का कार्य किया है। इसे समझने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि प्लास्टिक एक नॉन-बायोडिग्रेडबल अपशिष्ट पदार्थ है जो लम्बे समय तक वायु, मृदा व जल के संपर्क में रहने पर हानिकारक विषैले पदार्थ उत्सर्जित करने लगता है। आज प्लास्टिक कचरा मानव से लेकर पशु-पक्षियों के लिए बेहद घातक सिद्ध हो रहा है। असल में प्लास्टिक पेट्रोलियम आधारित उत्पाद माना जाता है, इससे हानिकारक विषैले पदार्थ घुलकर जल के स्रोतों तक पहुंच जाते हैं। ऐसे में यह लोगों में विभिन्न प्रकार की बीमारियों को फैलाने का काम करता है। प्लास्टिक कचरा न केवल जल को दूषित करता है बल्कि यह जमीन की उर्वरा शक्ति को भी क्षीण करता है।
ऐसे में बड़ा सवाल कि आखिर प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम कैसे संभव है? दरअसल प्लास्टिक प्रदूषण से पर्यावरण को बचाया जाना समय की मांग है। आज आवश्यकता प्लास्टिक के खतरों के प्रति आम आदमी में जागरूकता और चेतना पैदा करने की है। इसके साथ ही साथ सरकारी प्रयासों को गति देने की आवश्यकता है। इसमें आम-आदमी की सहभागिता को सुनिश्चित किया जाना भी जरूरी है। इसके बिना प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण संभव नहीं हो सकेगा। हमें जन-जागरूकता की दिशा में अभियानों को पुरजोर तरीके से चलाने की जरूरत है। सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तरह से खत्म करने और प्लास्टिक का इस्तेमाल जहां तक संभव हो कम से कम करने की कोशिशें बढ़ानी होंगी। जिससे कि माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पर शिकंजा कसा जा सके।