- भैंसाली मैदान स्थित पंडाल द्वार पर शंख ध्वनि और मंत्रोच्चार के साथ हुआ अभूतपूर्व स्वागत
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान पूज्य श्री रमेश भाई ओझा ने कहा कि अधर्मियों को दु:ख ही मिलता है, दंड भोगना पड़ता है। रावण ने नकली साधु बनकर सीताजी (शांति प्रतीक) को पाना चाहा। साधु त्याग करता है, पर रावण में तो त्याग था ही नहीं, इससे उसने दु:ख ही पाया। बुधवार को चिंतक विचारक राष्टÑ संघ पूज्य श्री रमेश भाई ओझा का भैंसाली मैदान स्थित पंडाल द्वार पर शंख ध्वनि व मंत्रोच्चार के साथ अभूतपूर्व स्वागत हुआ। उनके व्यास पीठ पर विराजमान होने के बाद नित्य क्रिया अनुसार मुख्य यजमान मीनाक्षी ज्वैलर्स परिवार की ओर से रामकिशोर (सर्राफ) ब्रजबाला इत्यादि ने भागवत जी की पूजा अर्चना की एवं भाई श्री का माल्यार्पण कर स्वागत किया।
तत्पश्चात पूज्य श्री बह्मस्वरूप जयराम आश्रम, हरिद्वार, सर्वश्री योगेश मोहन गुप्ता, डा. रामकुमार गुप्ता, अशोक गुप्ता, भारत भूषण सुनील गोयल, योगेश गोयल, रवि सिंघल व नीरज सिंघल, रवि शर्मा ने व्यासपीठ को प्रणाम कर भाईश्री जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। पूजन अर्चन के पश्चात हरिद्वार से पधारे जयराम आश्रम के पूज्य श्री ब्रह्म स्वरूप जी ने भाई जी की कथा के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत करके हुए कहा कि जहां माईश्री कथा कहते हैं वहां हम अपने आप को वृन्दावन में ही पाते हैं। उनके कथा का रस ऐसा है कि सब लोग कथा में रम जाते हैं। जीवन जीने की शैली बदल जाती है, राष्ट्र के प्रति लोगों का समर्पण बढ़ जाता है।
आज भाईश्री श्रीकृष्ण जन्मलीला का भावपूर्ण विस्तार से वर्णन करेंगे। जब वो कृष्ण लीला का वर्णन करते हैं तो समय पता नहीं चलता। माईश्री ने उनको धन्यवाद एवं आभार प्रकट करते हुए कल के कथा प्रसंग को गति प्रदान करते हुए सुख-दुख-शांति-अशांति के विषय में कहा कि यथार्थ में शांति सर्वत्र है। अशांति स्वयं की उपज है, जो स्वयं में स्थित है वो स्वस्थ्य है। जो दूर हुआ वो अस्वस्थ हो जाता है। वास्तव में दु:ख है ही नहीं है, व्यक्ति की चाह व भोग ही दु:ख का कारण है। संसार का भोग दु:ख है, भक्ति का भगवान के प्रति भोग सुख है।
रावण ने नकली साधु बनकर सीताजी (शांति प्रतीक) को पाना चाहा। साधु त्याग करता है, पर रावण में तो त्याग था ही नहीं, इससे उसने दु:ख ही पाया। संसार दु:खों की दुकान है, इससे मौज में रहा। उन्होंने गाया जो आनन्द संत फकीरों में, वो आनन्द नहीं अमीरों में। सारांश में हम सुख की कल्पना करते हैं, पर प्रवृत्ति दु:ख की ओर रहती है। वृत्ति भोग की है, त्याग की नहीं। याद रखें अधर्मियों को दु:ख ही मिलता है, दंड भोगना पड़ता है। भाईश्री ने गायत्री मंत्र की भी विस्तार से व्याख्या की है।
कुसंग से बचो, अच्छों को संग करो। याद रखो कि कैकेयी की वृद्धि मंथरा के संग ही दूषित हुई थी। कथा उपरान्त आरती हुई तथा कथा का समापन हुआ। कथा अध्यक्ष सतीश सिंघल, महामंत्री ज्ञानेन्द्र अग्रवाल, कोषाध्यक्ष अशोक गुप्ता (सर्राफ), ब्रजभूषण गुप्ता, सुरेश चंद (पुष्पदीप), मुकेश गुप्ता, सुरेश चन्द मिश्रा, आनन्द प्रकाश (अन्नी भाई) आदि अपने सहयोगियों कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ताओं के साथ उपस्थित रहे।
साधकों को व्यवहार कुशल संयमित होना चाहिए: कथा व्यास
साकेत स्थित शिवमन्दिर के सतसंग भवन में चिन्मय मिशन की ओर से भागवत कथा के पांचवें दिन स्वामी-उभुद्धानंद सरस्वती आचार्य चिन्मय मिशन इन्दौर ने गीता अध्याय 12 (भक्ति योग) पर प्रवचन किये। उन्होंने बताया कि साधकों को व्यवहार कुशल संयमित होना चाहिए, व्यवहार से खुशबू आनी चाहिए। जो साधक अपने व्यवहार को नही संभाल सका, वह परमात्मा को कैसे संभाल सकता है। चित्त में समत्व की स्थिति होनी चाहिए। समत्व को गहबड़ी करने वाली राग व द्वेष दो चीजें है। जो व्यक्ति बात निराकार की करता है पर मन देह में आसक्त रहता है वह अभिमानी है। सत्य को अपने चित्त में रखकर अपने कर्मों को सुधार लो, अपनी प्रवृत्ति ने प्रेम डालो।
भगवान के प्रेम से अपने प्रेम को मिला लो। कर्म करते समय तीन चीजो का ध्यान रखो पहला ईश्वर के लिए, दूसरा ईश्वर की शक्ति के लिए, तीसरा अपनी वासना के लिए न हो। भगवान कहते हैं कि मैं उसे ही प्राप्त होता हूं जिसने उपरोक्त तीन चीजें अपने जीवन में उतार ली है। भगवान कहते हैं कि में उसका अपहरण कर मृत्यु सागर से उसे पार करा देता हूं। संसार वह है जो दिन प्रतिदिन सरक रहा है या सरकाया जा रहा है इस आयोजन मेंआरएन सहाय, राम प्रकाश सिंह, जया सिंह, मंजु गोयल, जगदीश यादव, इत्यादि उपस्थित रहे।