- होटल करीम के अवैध निर्माण का मामला
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: होटल करीम के अवैध निर्माण को लेकर मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) के इंजीनियर और क्लर्क घिर गए हैं। इसकी फाइल क्लर्क स्तर पर पांच माह से दबाई गयी थी। सरकारी दस्तावेजों में फाइल क्लर्क के पास जमा थी, जिसको आगे बढ़ाया नहीं गयी। इसी वजह से ध्वस्तीकरण की कार्रवाई इसमें नहीं हो सकी। हालांकि सील की कार्रवाई पहले भी हुई थी, लेकिन तब सील तोड़कर निर्माण पूरा कर दिया था। इसमें कोई एफआईआर तब दर्ज नहीं करायी थी। इस तरह से निर्माण पूरा कर दिया गया। जिम्मेदारों के खिलाफ अब प्राधिकरण उपाध्यक्ष अभिषेक पांडेय के निर्देश पर सचिव सीपी तिवारी ने जांच बैठा दी हैं। सचिव इसकी खुद जांच करेंगे तथा संबंधित जेई और क्लर्क से लिखित जवाब मांग लिया हैं।
ये अवैध बिल्डिंग मोहम्मद अफजाल बसर, अंकुर शर्मा और प्रदीप त्यागी की बतायी गयी हैं। दिल्ली रोड स्थित ईदगाह चौराहे पर रेलवे स्टेशन को जाने वाले रास्ते के किनारे ये बिल्डिंग बनाई गयी थी। इस बिल्डिंग में सोमवार को दिल्ली के प्रसिद्ध करीम होटल की फ्रेंचाइजी का उद्घाटन होना था। बिल्डिंग बनकर तैयार हो गई हैं, जिसका कोई मानचित्र एमडीए से स्वीकृत नहीं हैं। ये बिल्डिंग रोड बाइडिंग में बना दी गई हैं। ये पूरा प्रकरण सुर्खियों में बना हुआ हैं। इसकी कंपाउडिंग के लिए भी आठ माह पहले मानचित्र दिया गया था, लेकिन वो प्राधिकरण टीपी ने रिजेक्ट कर दिया था क्योंकि ये रोड वाइडिंग में निर्माण करके बिल्डिंग बनाई गयी हैं।
इसका मानचित्र स्वीकृत नहीं हो सकता। इसके बावजूद निर्माणकर्ताओं ने अवैध तरीके से बिल्डिंग का निर्माण पूरा कर लिया और होटल का उद्घाटन करने के लिए खूब प्रचार भी कर दिया। होटल को फूल मालाओं से लाद दिया गया था। क्योंकि जिस दिन सील लगी, उसी दिन उसका उद्घाटन भी होना था। दरअसल, इस प्रकरण को लेकर प्राधिकरण इंजीनियरों की भी खासी किरकिरी हुई हैं, जहां जीरो टोलेरेंस के दावे के साथ प्राधिकरण में काम करने की बात कही जा रही हैं, फिर ये बिल्डिंग कैसे बनने दी गई? इसको लेकर इंजीनियरों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। प्राधिकरण सचिव सीपी तिवारी ने एक पत्र लिखकर जांच बैठा दी हैं।
पत्र में कहा गया कि पिछले पांच माह से इस अवैध निर्माण की फाइल क्लर्क पीपी सिंह ने कैसे दबा रखी थी? इस फाइल को आगे कैसे नहीं बढ़ाया गया। इसमें ध्वस्तीकरण की कार्रवाई होनी थी, वो फाइल दबाने के कारण कार्रवाई नहीं हो सकी। इसमें संबंधित इंजीनियर पवन शर्मा और उनसे पहले रह चुके इंजीनियर की भूमिका भी जांच के दायरे में आ गई हैं। उनसे भी लिखित जवाब इस मामले में मांगा गया हैं। अब देखना ये है कि इंजीनियरों पर प्राधिकरण उपाध्यक्ष की तरफ से गाज गिरायी जाएगी या फिर अभयदान दे दिया जाएगा?