-देरी से बुवाई के लिये एचडी 2932, पूसा 111, डीएल 788-2 विदिशा, पूसा अहिल्या, एचआई 1634, जेडब्ल्यू 1202, जेडब्ल्यू 1203, एमपी 3336, राज. 4238 इत्यादि प्रजातियों की बुवाई करें तथा बोवनी 31 दिसम्बर तक अवश्य कर दें।
-बुवाई के बाद खेत में दोनों ओर से आड़ी तथा खड़ी नालियां प्रत्येक 15-20 मीटर पर बनाएं तथा बुवाई के तुरंत बाद इन्हीं नालियों द्वारा बारी-बारी से क्यारियों में सिंचाई करें।
-गेहूं के लिए सामान्यत: नत्रजन, स्फुर व पोटाश-4:2:1 के अनुपात में दें। असिंचित खेती में 40:20:10, सीमित सिंचाई में 60:30:15 या 80:40:20, सिंचित खेती में 120:60:30 तथा देर से बुवाई में 100:50:25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के अनुपात में उर्वरक दें। सिंचित खेती की मालवी किस्मों को नत्रजन, स्फुर व पोटाश 140:70:35 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर दें।
-देरी से बुवाई में नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फुर व पोटाश की पूर्ण मात्रा बुवाई से पहले मिट्टी में 3-4 इंच ओरना चाहिए। शेष नत्रजन पहली सिंचाई के साथ दें।
-खेत के उतने ही हिस्से में यूरिया का भुरकाव करें, जितने में उसी दिन सिंचाई दे सकें। जहां तक संभव हो यूरिया बराबर से फैलाएं। यदि खेत पूर्ण समतल नहीं है तो यूरिया का भुरकाव सिंचाई के बाद, जब खेत में पैर धंसने बंद हो जाएं तब करें।
-सिंचाई समय पर, निर्धारित मात्रा में, तथा अनुशंसित अंतराल पर ही करें।
-गेहूं की अगेती खेती में मध्य क्षेत्र की काली मिट्टी तथा 3 सिंचाई की खेती में पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद, दूसरी 35-45 दिन तथा तीसरी सिंचाई 70-80 दिन की अवस्था में करना पर्याप्त है। पूर्ण सिंचित समय से बुवाई में 20-20 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करें। देरी से बुवाई में 17-18 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करें।
-बालियां निकलते समय फव्वारा विधि से सिंचाई न करें अन्यथा फूल खिर जाते हैं, झुलसा रोग हो सकता है। दानों का मुंह काला पड़ जाता है व करनाल बंट तथा कंडुवा व्याधि के प्रकोप का डर रहता है।
-पाले की संभावना हो तो इससे बचाव के लिए फसलों में स्प्रिंकलर के माध्यम से हल्की सिंचाई करें, थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें अथवा 8 से 10 किलोग्राम सल्फर पाउडर प्रति एकड़ का भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें अथवा 0.1 प्रतिशत व्यापारिक सल्फ्यूरिक अम्ल गंधक का अम्ल का छिड़काव करें।
-गेहूं की फसल को प्रथम 35-40 दिन तक आवश्यक रूप से खरपतवार विहीन रखें।
-गेहूं फसल में मुख्यत: दो तरह के खरपतवार होते हैं-चौड़ी पत्ती वाले-बथुआ, सेंजी, दूधी, कासनी, जगंली पालक, जगंली मटर, कृष्ण नील, हिरनखुरी तथा संकरी पत्ती वाले-जंगली जई, गेहुंसा या गेहूं का मामा आदि।
-अगर खरपतवार नाशक का उपयोग नहीं करना चाहते हैं तो डोरा, कुल्पा व हाथ से निंदाई-गुड़ाई 40 दिन से पहले दो बार करके खरपतवार खेत से निकाल सकते हैं।
-श्रमिक उपलब्ध ना होने पर, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के लिए 2,4-डी की 0.65 किलोग्राम या मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल की 4 ग्राम/हे. की दर से बुवाई के 30-35 दिन बाद छिडकाव करें।
-संकरी पत्ती वाले खरपतवार के लिए क्लौडिनेफॉप प्रौपरजिल 60 ग्राम/हेक्टेयर की दर से 25-35 दिन की फसल में जब खरपतवार 2-4 पत्ती वाले हो छिड़काव करें।
-दोनों तरह चौड़ी पत्तियां व संकरी पत्तियों के खरपतवार के लिए खरपतवार नाशक मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल की 4 ग्राम तथा क्लौडिनेफॉप प्रौपरजिल 60 ग्राम/हेक्टेयर की दर से मिलाकर टेंक मिक्स 25-35 दिन की फसल में छिडकाव करने से दोनों तरह के खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है।
-इन दिनों जड़ माहू कीटों रूट एफिड का प्रकोप देखा जा सकता है। यह कीट गेहूं के पौध को जड़ से रस चूसकर पौधों को सुखा देते हैं। जड़ माहू के नियंत्रण के लिए बीज उपचार गाऊचे रसायन से 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 250 मिली या थाइमौक्सेम की 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 300-400 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़केंं।
-माहू का प्रकोप गेहूं फसल में ऊपरी भाग तना व पत्तों पर होने की दशा में इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें।
-खेत में गेहूं के पौधें के सूखने अथवा पीले पड़ने पर जो कि किसी कीट, बीमारी अथवा पोषक तत्व की कमी से हो सकता है, तुरन्त विशेषज्ञ की सलाह लेकर शीघ्र उपचार करें।