Friday, April 19, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादसेहततेल या घी खाएं या न खाएं?

तेल या घी खाएं या न खाएं?

- Advertisement -

Sehat


झिलमिल गौतम |

वह जमाना और था जब अलग अलग इलाकों में सरसों, नारियल, तिल, अरंडी, मूंगफली इत्यादि का बगैर प्रसंस्कृत कच्चा तेल और गाय, भैंस के घी के अलावा कोई विकल्प नहीं था। तब न इतने तरह की बीमारियां थीं, (या कहें कि डॉक्टरों के अभाव में पता ही नहीं होती थी) न इतने तरह के तेल-घी। तब यह सवाल भी नहीं था, लोग हर दूसरे पखवारे किसी न किसी तीज-त्योहार, शादी-बारात, पर्व उत्सव, दावत पर कच्ची घानी का पेरा हुआ शुद्ध तेल या घी में तली पूरी-कचौरी, तर माल उड़ाते और इस सवाल से परे स्वस्थ बने रहते। पर जैसे-जैसे खाद्य तेल-घी के क्षेत्र में प्रोसेसिंग का विकास पनपा, यह प्रसंस्कृत हुआ, यह सवाल भी उपजा और इसने मोटापा, दिल के रोग से लेकर कैंसर तक के ढेरों भ्रम बो दिए।

खाएं पर पता करें उसका स्रोत और प्रकार

ताजातरीन शोध यह कहता है कि तेल, घी, वसा या फैट शरीर के लिए बुरा तो कौन कहे बहुत ही जरूरी है। सच यह है कि वसा या तेल घी स्वस्थ खाने का महत्वपूर्ण हिस्सा है, तो तेल-घी खाने से डरें नहीं। पर बस यह देखें कि यह कहां से आपके खाने में आ रहा और इसका प्रकार कैसा है। तेल हो या घी, वसा या फैट के अंतर्गत आते हैं। फैट तीन तरह के होते हैं। संतृप्त या सैचुरेटेड, असंतृप्त या अनसैचुरेटेड, और ट्रांस फैट। किसी खाने में कोई एक हो सकता है किसी में यह तीनों भी हो सकते हैं। संतृप्त वसा या सैचुरेटेड फैट के दो प्रकार होते हैं, मोनो और पॉली एक सरल और एक जटिल। इस तरह की वसा अधिकतर जमी हुई और ठोस रहती है और आंच से ही पिघलती है। पाम आयल, कोकोनट आयल, घी, मांस से मिली चर्बी या अंडे वगैरह से मिला फैट ऐसा ही होता है। असंतृप्त वसा भी इसी तरह दो रूप में होती है और ज्यादातर तरल रूप में मिलती है। सरसों, कनोला तेल जैसे अनेक उदाहरण आपके पास हैं। ट्रांस फैट वैसे तो यह सुअर की चर्बी और कुछ दूसरे पशु मांस में भी मिलती है लेकिन अधिकतर होटल रेस्तरां के खाने या डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में भी यह होती है। इनकी रासायनिक संरचना तकरीबन एक जैसी है पर शरीर में पहुंचने के बाद इनका असर अलग अलग तरह का होता है।

वसा हमेशा बुरी नहीं

वनस्पति तेल या मछली से मिला तेल घी यानी अनसैचुरेटेड वसा फायदेमंद है जबकि मांस और चर्बी या अंडे इत्यादि तथा कुछ खास वनस्पतियों से प्राप्त सैचुरेटेड वसा काफी हद तक नुकसानदेह है, लेकिन पूरी तरह नहीं। शोधार्थी, कहते हैं संतृप्त वसा को घातक मानकर यदि हमने इस पर सख्ती से अमल किया तो बहुत से लाभदायक खानों से हाथ धो बैठेंगे जो बढ़िया काबोर्हाइड्रेट से भरपूर है। हां, फैक्ट्री में बना ट्रांसफैट हर हाल में नुकसानदेह है। डाक्टरों की चिंता सैचुरेटेड फैट को लेकर थोड़ी कम और इस ट्रांसफैट को लेकर ज्यादा है जो डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों में मिलाई या रेस्टोरेंट इत्यादि में भूनने, बेक करने के काम में लाई जाती है।

ट्रांसफैट बुरे कोलेस्ट्राल को बढ़ाता तो है ही अच्छे कोलेस्ट्राल को घटाता है, यह दोहरा नुकसान देता है। यह ट्रांसफैट पशु चर्बी के मुकाबले सस्ता पड़ता है और खाद्य पदार्थ को टिकाऊ और स्वादिष्ट बना देता है इसके चलते यह व्यावसायिक इस्तेमाल में लाया जाता है। कुछ बाजारू खाद्य पदार्थों को लो-फैट प्रचारित किया जाता है, यह सरासर धोखा है। विभिन्न कंपनियां मुनाफा कमाने के लिए और माल बेचने के चक्कर में सैचुरेटेड या संतृप्त वसा को रिफाइंडेड काबोर्हाइड्रेट या शुगर में बदलकर इसे लो फैट कहते हैं, यह और भी घातक है।

यह गांठ बांध लीजिए कि अति सब चीजों की बुरी होती है। जहां तेल-घी का अतिशय प्रयोग बुरा है, वहीं जीरो आयल भी मूढ़ता है। दूसरी बात यह है कि खाना भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है, सो यह ठीक नहीं कि जो बात हिमाचल प्रदेश के अंदरूनी हिस्से में रहने वाले लोगों के लिए सही हो वही बात राजस्थान के गर्म इलाके के वासी के लिए भी
मुफीद पड़े।


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
2
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments