Wednesday, June 7, 2023
- Advertisement -
- Advertisement -
Homeसंवादकथनी-करनी

कथनी-करनी

- Advertisement -


एक पंडितजी महाराज क्रोध न करने पर उपदेश दे रहे थे। कह रहे थे, क्रोध आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है, उससे आदमी की बुद्धि नष्ट हो जाती है। जिस आदमी में बुद्धि नहीं रहती, वह पशु बन जाता है। लोग बड़ी श्रद्धा से पंडितजी का उपदेश सुन रहे थे। पंडितजी ने कहा, क्रोध चांडाल होता है।

उससे हमेशा बचकर रहो। भीड़ में एक ओर एक जमादार बैठा था, जिसे पंडितजी प्राय: सड़क पर झाड़ू लगाते हुए देखा करते थे। जमादार उनकी बात से बहुत प्रभावित हुआ।

वह सोचने लगा कि अब रोज पंडितजी का प्रवचन सुनने आया करेगा। अपना उपदेश समाप्त करके जब पंडितजी जाने लगे तो जमादार भी हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। लोगों की भक्ति-भावना से फूले हुए पंडित भीड़ के बीच में से आगे आ रहे थे। इतने में पीछे से भीड़ का रेला आया और पंडितजी गिरते-गिरते बचे! धक्के में वे जमादार से छू गए। फिर क्या था। उनका पारा चढ़ गया।

बोले, दुष्ट! तू यहां कहां से आ मरा? मैं भोजन करने जा रहा था। तूने छूकर मुझे गंदा कर दिया। अब मुझे स्नान करना पड़ेगा। उन्होंने जमादार को जी भरकर गालियां दीं। असल में उनको बड़े जोर की भूख लगी थी और वे जल्दी-से-जल्दी यजमान के घर पहुंच जाना चाहते थे।

पास ही में गंगा नदी थी लाचार होकर पंडितजी उस ओर तेजी से लपके। तभी देखते हैं कि जमादार उनसे आगे-आगे चला जा रहा है। पंडितजी ने कड़ककर पूछा, क्यों रे जमादार के बच्चे! तू कहां जा रहा है?

जमादार ने जवाब दिया, नदी में नहाने। अभी आपने कहा था न कि क्रोध चांडाल होता है। मैं उसे चांडाल को छू गया इसलिए मुझे नहाना पड़ेगा। पंडितजी को जैसे काठ मार गया। वे आगे एक भी शब्द न कह सके और जमादार का मुंह ताकते रह गए।


What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
- Advertisment -
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -

Recent Comments