- शहर की तमाम गलियों में दिख रहे उठावनी के आयोजन
ज्ञान प्रकाश |
मेरठ: किसी ने भी नहीं सोचा था कि कोरोना की दूसरी लहर लोगों की जिंदगी गमों से भर देगी। सिर्फ अप्रैल महीने ने यह साबित करके दिखा दिया कि सरकार की नाकामी की सजा किस हद तक आम लोगों को भुगतनी पड़ रही है। हंसमुख मिजाज वाले शहर में जहां की गलियां देर रात तक गुलजार रहती थी। अब उन्ही गलियों में आये दिन उठावनी और तेहरवीं के आयोजन देखकर लोगों का कलेजा भर जाता है।
कोरोना के वायरस ने एक अप्रैल से लेकर आठ मई तक 29750 लोगों को अपनी चपेट में लिया और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 116 और गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक हजार से ज्यादा लोगों की मौते इस दरम्यान हुई है। यह आंकड़े गंगा मोटर कमेटी और तमाम कब्रिस्तानों में रोज आ रही लाशों पर आधारित है।
शहर के सबसे बड़े कब्रिस्तानों में एक बाले मियां के कब्रिस्तान में अप्रैल महीने में रोज 15 से 20 शव सुपुर्दे खाक के लिए आये। एक दिन ये आंकड़ा 38 तक पहुंच गया था। हालात यह हो गए थे कि कब्र खोदने वालों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे और खुद परिजनों को कब्र खोदनी पड़ी थी।
शहर के अन्य कब्रिस्तानों के यही हालात है। वही सूरजकुंड श्मशान घाट में रोज 50 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है। इसमें दूसरे जनपदों के शव भी शामिल है इसके बाद भी 38 दिनों में 1600 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार हो चुका है। इनमें कोविड शवों की संख्या हजार के करीब पहुंचने वाली है।
सरकारी आंकड़ों में निजी अस्पतालों और घरों में मरने वालों की संख्या शामिल नहीं है और स्वास्थ्य विभाग इनको कोरोना से मौत मानता भी नहीं है। आज पूरे शहर में एक अजीब-सा दहशत भरा माहौल बन गया है और हर कोई आने वाले कल को लेकर डरा हुआ है।
इस वक़्त शहर के अस्पतालों में 1575 से अधिक लोग भर्ती है और छह हजार से अधिक लोग घरों में इलाज करा रहे हैं। सवाल यह उठ रहा है कि अगर यह मौते कोरोना से नहीं हुई तो फिर अचानक ऐसी कौन-सी बीमारी आ गई, जिसने लोगों की जिंदगी से खुशियों को छीन कर मौत के रास्ते खोल दिये।
आज हालात यह है कि गलियों में चाहे वो शहर की हो या गांव की मातम दिख रहा है। ऐसे में साहिर लुधियानवी का शेर कल जहां बसती थी खुशियां आज है मातम वहां सटीक बैठती है।