Sunday, May 19, 2024
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कर्नाटक में भाजपा की राह कठिन

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ashok bhatiyaकर्नाटक का चुनाव दिलचस्प होता जा रहा है। चुनाव में केवल 8 दिन बचे हैं, पर अभी से लगता है कि यह चुनाव मोदी और अमित शाह के लिए आसान नहीं रह गया है? उनकी हालत वाकई खराब होने का अंदाजा इससे भी लग रहा है कि चुनाव नतीजों का अंदाजा लगाने वाले ज्यादातर सर्वेक्षणों में भाजपा को बहुमत से दूर दिखाया जा रहा है। चुनावी सर्वेक्षण तकनीकी रूप से बेहद कमजोर होते हैं और सत्ता के साथ खड़े मीडिया की बाकी खबरों की तरह ही सत्ता के पक्ष में किए जाते हैं। इनमें किए गए सवाल पक्षपातपूर्ण होते हैं और इनका उद्देश्य सता पक्ष की छवि को चमकाना होता है। पर इन सर्वेक्षणों में भी भाजपा को बहुमत से दूर दिखाया जाना पार्टी के लिए अशुभ संकेत हैं। इन सर्वेक्षणों में कुछ त्रिशंकु विधानसभा के आसार बता रहे हैं। निश्चित तौर पर यह भाजपा को सांत्वना देने और वोटरों को भ्रम में डालने के भी हो सकते हैं, ताकि लोगों को यही लगे कि कांग्रेस अकेले सरकार नहीं बना पाएगी।

इन सर्वेक्षकों को पता है कि त्रिशंकु विधानसभा का मतलब है भाजपा का सत्ता में लौटना, क्योंकि विधायकों की खरीद फरोख्त में भाजपा ने रिकार्ड बनाए हैं। लेकिन इसने कांग्रेस के प्रचार को और भी आक्रामक बना दिया है। राहुल गांधी कर्नाटक के वोटरों से प्रचंड बहुमत मांग रहे हैं, ताकि भाजपा दल बदल से या इस्तीफा दिला कर अपना बहुमत न बना ले।

एक सिटीजन जर्नलिज्म के जरिए पत्रकारिता करने वाले संस्थान ने अपने सर्वेक्षण में कांग्रेस को भारी जीत पाते हुए दिखाया है। राजनीति विज्ञानी योगेंद्र यादव ने इदिना नामक इस संस्थान के सर्वेक्षण के तरीके की खूब तारीफ की है। यादव ने कहा है कि गरीब लोगों का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के पक्ष में चला गया है।

उन्होंने कहा है कि गरीब तबकों के लिए की गई कांग्रेस की घोषणाओं (महिलाओं को मानधन, बेरोजगारी भत्ता, 200 यूनिट मुफ्त बिजली और दस किलो चावल) का असर होता दिखाई दे रहा है। इस समय कर्नाटक चुनाव ने भाजपा के गर्वनेंस की पोल खोल दी है। दक्षिण भारत के प्रदेश अपने बेहतर गर्वनेंस के लिए जाने जाते हैं।

लेकिन इस प्रदेश में सरकारी ठेकों में 40 प्रतिशत कमीशन के खुलासे ने यह साबित कर दिया कि भाजपा किसी प्रदेश के गवर्नेंस को कितना गिरा सकती है। ऐसा नहीं है कि ये कमीशन पहले नहीं थे। भाजपा ने रेट इतना बढ़ा दिया कि कमीशन देकर काम कराने में माहिर ठेकेदार भी परेशान हो गए।

इस एक ही सच्चाई ने भाजपा को बुरी स्थिति में ला दिया है। प्रधानमंत्री के नौ साल की वह कहानी को बेअसर हो रही है, जिसमें वह कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों के भ्रष्टाचार का मुकाबला करने का दावा करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह, दोनों कर्नाटक में एक भ्रष्टाचार से मुक्त प्रशासन की बात दोहरा रहे हैं और कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पाटियों को भ्रष्टाचारी बता रहे हैं।

लेकिन इसका असर होता नहीं दिखाई देता हैं। उनके एसे जुमलों पर लोग तालियां नहीं बजा रहे हैं। भ्रष्टाचार सत्ता विरोधी लहर का मुख्य मुद्दा बन गया है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को घर-घर पहुंचाने में सफलता पाई है। बेटे को मिली रिश्वत का पैसा विधायक पिता के यहां बरामद होने की कहानी भी सभी को मालूम है।

सच पूछिए तो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के पास कर्नाटक में कोई राष्ट्रीय मुद्दा है भी नहीं जिसे वे बेच सकते हैं। यहां भाजपा का शासन भी उतना पुराना नहीं है कि आईटी या अन्य उद्योगों में जो विकास हुआ है, उसका श्रेय ले लें। उनकी इस बात का भी कोई असर नहीं होने वाला है कि डबल इंजन की सरकार नहीं आई तो राज्य की तरक्की नहीं होगी।

वैसे डबल इंजन की सरकार की बात करना संविधान की भावनाओें के विपरीत है और यह एक धमकी है कि हमें जिताओ नहीं तो केंद्र से कोई मदद नहीं मिलेगी। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तो कह भी दिया कि प्रधानमंत्री का आशीर्वाद चाहिए तो भाजपा को वोट दीजिए।

अपने ही चेहरे को कैमरे के सामने रखने की प्रधानमंत्री की प्रवृत्ति ने प्रदेशों के नेतृत्व को नेपथ्य में धकेल दिया है। राज्य भाजपा में येदिरूप्पा समेत कई जनाधार वाले नेता हैं, लेकिन उन्हें किनारे कर दिया गया है। यह शायद 2024 के चुनावों को ध्यान में रख कर किया गया है ताकि फोकस में सिर्फ मोदी रहें। यही वजह है कि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी को पार्टी छोड़नी पड़ी।

पहले शेट्टार को टिकट देने से मना किया गया और अब उन्हें हराने में भाजपा का सारा नेतृत्व जुट गया है। अमित शाह समेत हर केंद्रीय मंत्री उन्हें गद्दार बता रहा है। भाजपा में मची यह भगदड़ दूसरे राज्यों में भी दिखाई दे सकती है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस में बिखराव पूरी तरह थम चुका है।

प्रदेश के नेतृत्व को कमजोर करने की कांग्रेस की इंदिरा गांधी के जमाने की की नीति अब पूरी तरह बदल चुकी है। पार्टी ने गुजरात के चुनावों को भी राज्य के नेताओं के भरोसे छोड़ दिया था। वहां सफलता नहीं मिली, लेकिन कर्नाटक में यह नीति सफल होती दिख रही है। प्रदेश नेतृत्व ने भी लचीलापन भी दिखाया है, नहीं तो भाजपा के इतने नेताओं को वे अपनी पार्टी में शामिल नहीं करा पाते।

राज्य के सामाजिक समीकरण भी काफी बदले हुए से लग रहे हैं। मसलन, अभी तक लिंगायतों का एकमुश्त वोट भाजपा को मिलता था। लेकिन इस बार शेट्टार जैसे नेताओं के कांग्रेस में आने के बाद स्थिति बदली हुई है। कांग्रेस वोकालिगा के वोट भी मिलेंगे, ऐसा अनुमान है क्योंकि उनके नेता एचडी देवेगौड़ा और उनके बेटे कुमार स्वामी भाजपा से लड़ते हुएं दिखाई नहीं दे रहे हैं।

इसलिए इस जाति के भाजपा विरोधी वोटों का कुछ हिस्सा कांग्रेस को जा सकता है। जनता दल एस को मुसलमानों का वोट भी कम ही मिलेगा, क्योंकि यह समूह इस बार पूरी तरह कांग्रेस की ओर जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारम्मैया की लोकप्रियता से अति पिछड़ों का वोट भी कांग्रेस को मिलने की संभावना है। मल्लिकार्जुन खड़गे की वजह से दलितो के वोट कांग्रेस की झोली में जाने की पूरी संभावना है।

कांग्रेस के पक्ष में माहौल के बावजूद किसी तरह की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। इसकी वजह यह है कि भाजपा बहुत खर्च कर रही है और उसके पास कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज है। यही नहीं सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने तथा गोदी मीडिया पर प्रचार अभियान चलाने की उसकी क्षमता भी असीमित है।

चुनाव आयोग भी उसके पक्ष में इस तरह खड़ा है कि चकाचौंध और फूलों की वर्षा वाले महंगे रोड शो का हिसाब रखाना भी वह छोड़ चुका है। धर्म और जाति के आधार पर सीधे वोट मांगा जा रहा है लेकिन आयोग की इस पर नजर ही नहीं जाती। प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग, धन बल और कार्यकर्ताओं, जिनमें कई वेतन पर रखे गए हैं, से लड़े गए चुनाव का मुकाबला कांग्रेस कितना कर पाएगी?


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