- युद्ध में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र-शस्त्र को म्यूजियम में देख सकेंगे छात्र
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: देश-दुनिया में युद्धों में प्रयुक्त होने वाली मिसाइलों से लेकर विमान तक समस्त अस्त्र-शस्त्र अब मेरठ कॉलेज के वार वेपन म्यूजियम में देखने को मिलेंगे। देश के विभिन्न हिस्सों में तैनात लेफ्टिनेंट जनरल, मेजर जनरल और ब्रिगेडियर रैंक के 25 सैन्य अधिकारियों ने कॉलेज में वार वेपन म्यूजियम तैयार कराने को सहमति दे दी है। इस म्यूजियम में मिसाइल, विमान, टैंक एवं युद्धपोत सहित समस्त हथियारों के वर्किंग मॉडल रखे जाएंगे।
कॉलेज में यह म्यूजियम डिफेंस एक्सपो जैसा दिखेगा। सैन्य अध्ययन विभाग में अगले कुछ महीने में यह म्यूजियम बनकर तैयार हो जाएगा। विभागाध्यक्ष डॉ. हेमंत पांडेय एवं डॉ. संजय कुमार के अनुसार सहमति देने वाले सभी सैन्य अधिकारी कॉलेज के विद्यार्थी भी रहे हैं। ये म्यूजियम कॉलेज के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
बता दें कि मेरठ कॉलेज के रक्षा अध्ययन विभाग के पास भारत निर्मित टैंक विजयंत और सोवियत संघ रूस निर्मित टैंक टी 55 है। इस टैंक को दिलाने में मुख्य भूमिका लेफ्टिनेंट जनरल शांतनू दयाल, डिप्टी वाईस चीफ अमित एवं हाइवेज नई दिल्ली की रही। इन्ही के वजह से ये उपलब्धि रक्षा अध्ययन विभाग मेरठ कॉलेज को मिली है। यह देश का एकमात्र डिग्री कॉलेज जिसे दो टैंक मिले है।
1971 में भारत-पाक युद्ध का गवाह बख्तरबंद टी-55 टैंक बड़े पत्थरों पर आसानी से चढ़ने में सक्षम और बालू में दौड़ने वाला है। यह टैंक अब शताब्दी द्वार की शान बढ़ाएगा। रूस निर्मित यह टैंक 1968 में भारतीय सेना में शामिल हुआ था। 580 हॉर्स पॉवर इंजन के इस बख्तरबंद टैंक का वजन 37 टन है। इंजन निकालने के बाद यह टैंक 22.5 टन का है। टी-55 टैंक की लंबाई नौ मीटर, चौड़ाई 3.27 मीटर और ऊंचाई 2.35 मीटर है।
इसकी गति 6.85 किमी प्रति घंटा है। इस टैंक की खूबी यह है कि इसमें मोटी चेन होती है। इससे यह चलता है। टी-55 टैंक बड़े पत्थरों पर चढ़ने में सक्षम है। ज्यादा वजन होने से इसकी अधिकतम गति 6.85 किमी प्रति घंटा होती है। अमेरिका ने भारत को टी-55 टैंक देने से इंकार कर दिया था तब रूस ने भारत को ये टैंक दिए।
मेरठ कॉलेज की शोभा बढ़ा रहा विजयंत
भारतीय सेना में शामिल पहला मेड इन इंडिया टैंक मेरठ कालेज की शोभा बढ़ा रहा है। 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने अहम भूमिका निभाई थीं। आॅपरेशन ब्लू स्टार में भी सक्रिय भूमिका में रहा था। अब भारतीय सेना की सेवा में नहीं है, लेकिन देश के युवाओं को प्रेरित कर रहा है।
50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले इस टैंक की आॅपरेशनल रेंज 530 किलोमीटर थी। इतनी दूर से भी इसके गोले दुश्मन के ठिकानों को ध्वस्त करने में कामयाब थे। इस टैंक से अलग-अलग तरह व साइज के गोले 44 टाउंड से दो हजार राउंड तक फायर किए जा सकते हैं। इसमें चाट क्रू मेंबर बैठते थे। इसका वजन 39 हजार टन, लंबाई 9.788 मीटर, चौड़ाई 3.168 मीटर और ऊंचाई 2.711 मीटर है।
टैंक की उत्पत्ति यूनाइटेड किंगडम है। सैन्य उपकरण बनाने वाली कंपनी विकर्स आर्मस्ट्रांग ने 1963 में इसे बनाया था। 1965 से 1986 तक इसका उत्पादन भारतीय कंपनी प्रोडक्शन ने किया। इस दौरान 2200 टैंक बनाए गए, जिन्होंने देश के सरहदों की सुरक्षा की।