Friday, March 29, 2024
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क्यों फ्लॉप हो रहा है बॉलीवुड सिनेमा?

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CINEWANI

कोरोना के बाद से ही बॉलीवुड का बुरा दौर चल रहा है। लॉकडाउन के दौरान जिस तरह से दर्शकों ने एंटरटेनमेंट के लिए ओटीटी का सहारा लिया और साउथ की तमाम फिल्में देख डालीं, उसके बाद से ही वो बॉलीवुड फिल्मों के सब्जेक्ट से खुश नजर नहीं आ रहे। नतीजा यह कि पिछले दो सालों में एक के बाद एक कई बड़ी फिल्में दर्शकों के बिना थिएटर्स से खाली हाथ लौट चुकी हैं। बॉलीवुड मेकर्स के पास नए आइडियाज नहीं होने से कुछ साल पहले सीक्वल और बायोपिक फिल्मों का जो दौर आया था, वह अब दर्शकों की ऊब और खीज का कारण बनता जा रहा है। बड़े स्टार्स के कैमियो वाला फार्मूला भी अब काम नहीं आ रहा है। दर्शक अब कुछ नया चाहते हैं। कुछ सालों तक असर कारक रहने के बाद आमिर खान द्वारा ईजाद किया गया फिल्मों के प्रमोशन का तरीका अब कोई चमत्कार नहीं कर पा रहा है।

इसका सबसे बड़ा प्रमाण खुद आमिर खान की पिछली फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ के दौरान देखने को मिला। न केवल फिल्म पर बल्कि उसके प्रमोशन पर भी आमिर ने कड़ी मेहनत की थी लेकिन फिल्म बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई और तभी से आमिर खान गहरे सदमे में हैं। आमिर खान एक अच्छे एक्टर होने के साथ ही साथ करण जोहर की तरह एक अच्छे बिजनेसमैन भी हैं। उन्होंने ‘लाल सिंह चड्ढा’ को 160 करोड़ रुपए में नैटफ्लिक्स को बेचकर अपना घाटा पूरा भी कर लिया। इस तरह अकेले आमिर का घाटा भले ही पूरा हो गया हो, लेकिन फिल्म कारोबार पर जो तलवार लटकी नजर आ रही है, उसका डर कम नहीं होगा।

कल तक बॉलीवुड मेकर्स और यहां के बड़े स्टार्स साउथ की फिल्मों और उनमें काम करने वाले एक्टर्स का मजाक बनाते हुए खुद को सुप्रीम और वहां की इंडस्ट्री को बेहद मामूली साबित करने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन जिस तरह से साउथ के मेकर एस एस राजामौली द्वारा ‘बाहुबली’ फ्रेंचाइजी के साथ, साउथ फिल्मों को ऊंचा और सम्माननीय स्थान दिलाने की जो शुरुआत की, उसके बाद ‘पुष्पा’, ‘कांतारा’, ‘आर आर आर’, ‘यशोदा’ और ‘वरिसु’ जैसी फिल्मों ने लोगों की सोच और नजरिये को पूरी तरह बदल दिया है। आज हालात कुछ ऐसे हैं कि साउथ फिल्म इंडस्ट्री के सामने बॉलीवुड बेहद बौना नजर आने लगा है।

कामयाबी की कोख से अभिमान का जन्म होता है। शायद यही वजह है कि जब एसएस राजामौली की ‘आर आर आर’ को विश्व स्तर पर सम्मानित किया गया, उस वक्त अंतरमन में छिपी हुई टीस को उजागर करते हुए उन्हें कहना पड़ा कि उनकी यह फिल्म बॉलीवुड फिल्म न होकर उनकी अपनी भाषा की फिल्म है, जहां वो काम करते हैं।
बुरे हालात में संभलने की जरूरत होती है लेकिन बॉलीवुड मेकर संभलने के बजाए सच्चाई से मुंह चुरा रहे हैं। वह अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी फिल्में नयेपन के अभाव में मुंह की खा रही हैं लेकिन वो सिर्फ स्टार्स की फीस का रोना रोने में लगे हुए हैं। करण जोहर के बाद बॉलीवुड के एक और दिग्गज मेकर भूषण कुमार ने भी स्टार्स द्वारा ली जाने वाली फीस को सवालों के घेरे में खड़ा किया है।

फिल्में फ्लॉप क्यों हो रही हैं, यह बात सभी जानते हैं लेकिन बकवास फिल्में बनाने वाले कोई न कोई नया बहाना बनाते हुए नाकामी से खुद का पल्ला झाड़ने की कोशिश करते रहते हैं। कभी फिल्मों के बायकॉट का रोना रोया जाता है तो कभी नये बहाने के लिए कोई और चीज खोज कर लाई जाती है। सितारों की उल्टी सीधी बयानबाजी भी फिल्मों को कुछ कम नुक्सान नहीं पंहुचा रही है। खासकर कुछ बड़े स्टार्स का यह कहना कि ‘जिसे फिल्म देखना है वो देखे और जिसे नहीं देखना, वह न देखे’ ने भी ऑडियंस को थिएटर्स से दूर किया है। यह गलत नहीं है कि स्टार्स इतनी ज्यादा प्राइज लेने लगे हैं कि बॉक्स ऑफिस पर बेहद अच्छा प्रदर्शन करने वाली फिल्म भी मेकर्स को ज्यादा कुछ देकर नहीं जाती लेकिन फिल्मों के पीछे वाले इस परिदृश्य से ऑडियंस का कुछ भी लेना देना नहीं है।

उन्हें तो बस विषय में नवीनता, शानदार और दिलचस्प प्रस्तुतिकरण चाहिए जो उन्हें बॉलीवुड फिल्मों से नहीं मिल पा रहा है। स्टेक होल्डर यह जानने की कोशिशों में लगे हैं कि दर्शक थिऐटर्स में क्यों नहीं आ रहे हैं लेकिन वह किसी निश्चित नतीजे तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। या यूं भी कह सकते हैं कि वो किसी नतीजे तक न पहुंचकर सिर्फ अपनी दुनिया में ही जीने की कोशिशों में लगे हुए हैं क्योंकि बात बहुत आसान और हर किसी की सामने में आने वाली है कि बॉलीवुड सिनेमा सिर्फ इसलिए फ्लॉप हो रहा है कि बॉलीवुड दर्शकों को जो कुछ दिखाया जा रहा है, वह उन्हें पसंद नहीं आ रहा है।

इसलिए बॉलीवुड मेकर्स को चाहिए कि वह स्टार्स की आसमान छूती प्राइज घटाने की पहल के साथ ही साथ बेहतर कहानी और नये नये कंटेंट को तलाशने के लिए भी थोड़ा समय दें। उन्हें चाहिए कि वो बायोपिक व रीमेक्स से आगे जाकर कुछ नया सोचें। यह तो अभी सिर्फ शुरूआत है। यदि समय रहते आंखें खुल गई और इस मर्ज का ठीक से इलाज कर लिया तो बेहतर है वर्ना सब कुछ खत्म हो सकता है।

                                                                                                     सुभाष शिरढोनकर


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