Wednesday, April 2, 2025
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Surya Grahan Katha: सूर्य ग्रहण क्यों लगता है? जानें इससे जुड़ी रोचक और पौराणिक कथाएं

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। सूर्य ग्रहण हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना मानी जाती है, जो विज्ञान, ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं से गहराई से जुड़ी हुई है। जैसे ही चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आकर सूर्य की रोशनी को कुछ समय के लिए ढक लेता है, यह सूर्य ग्रहण कहलाता है। सूर्य ग्रहण की यह खगोलीय घटना न केवल आकाशीय घटनाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, बल्कि इसे धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व प्राप्त है।

साल 2025 का पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च को लगेगा, जो आंशिक रूप से होगा। इसका मतलब है कि चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढकेगा, बल्कि सूर्य का कुछ हिस्सा दिखाई देता रहेगा। यह घटना भारत में दिखाई नहीं देगी, लेकिन इसके प्रभाव से बचने के लिए कुछ खास सावधानियाँ बरतनी चाहिए। ज्योतिषियों के अनुसार, सूर्य ग्रहण का प्रभाव व्यक्तिगत जीवन, मानसिक स्थिति और शरीर पर पड़ सकता है।

सूर्य ग्रहण भारतीय धार्मिक मान्यताओं में केवल एक खगोलीय घटना नहीं माना जाता, बल्कि इसे एक गहरी आध्यात्मिक और पौराणिक दृष्टि से भी देखा जाता है। हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण से जुड़ी कई कथाएँ, रहस्य और धार्मिक महत्व हैं। पुराणों और शास्त्रों में सूर्य ग्रहण को लेकर विभिन्न कहानियाँ हैं, जो इसके प्रभाव और कारणों को समझाने का प्रयास करती हैं। आइए जानते हैं सूर्य ग्रहण से जुड़ी कुछ प्रमुख पौराणिक और रोचक कथाओं के बारे में…

राहु- केतु और अमृत मंथन की कथा

सूर्य ग्रहण से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा समुद्र मंथन की है। इसका उल्लेख विष्णु पुराण और भागवत पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। इसे प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों में संघर्ष शुरू हो गया। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत वितरण का कार्य किया, लेकिन उन्होंने एक चाल चली और असुरों को अमृत देने से मना कर दिया।

लेकिन असुरों में से एक असुर जिसे स्वरभानु कहा जाता था, वह देवताओं का वेश धरकर अमृत ग्रहण करने में सफल हो गया। सूर्य और चंद्रमा ने उसकी पहचान कर ली और भगवान विष्णु को इसकी जानकारी दे दी। भगवान विष्णु ने क्रोधित होकर अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

चूंकि उसने अमृत पान कर लिया था, इसलिए उसका शरीर अमर हो गया। उसका सिर राहु और धड़ केतु के रूप में अस्तित्व में आया। तभी से राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा से शत्रुता रखते हैं और समय-समय पर बदला लेने के लिए इन्हें ग्रास लेते हैं। मान्यताओं की माने तो इसी वजह से सूर्य और चंद्र ग्रहण होता है।

सूर्य ग्रहण का उल्लेख रामायण में

रामायण में भी सूर्य ग्रहण का उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार जब भगवान राम और रावण के बीच युद्ध हो रहा था, तब रावण की शक्तियां चरम पर थीं। मान्यता है कि युद्ध के दौरान एक भयानक सूर्य ग्रहण हुआ था, जिससे चारों ओर अंधेरा छा गया।
ऐसा कहा जाता है कि इसी ग्रहण के समय भगवान राम ने भगवान सूर्य से विशेष शक्ति प्राप्त की और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किया और इसी से उन्हें रावण को परास्त करने की शक्ति मिली। इस घटना को रामायण में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है।

सूर्य ग्रहण का प्रभाव महाभारत में

महाभारत में सूर्य ग्रहण को रणक्षेत्र में एक अस्त्र के रूप में प्रयोग किया गया था। जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हो रहा था, तब अर्जुन ने जयद्रथ का वध करने की प्रतिज्ञा की थी। लेकिन कौरवों ने जयद्रथ की सुरक्षा के लिए एक मजबूत रणनीति बनाई थी। भगवान कृष्ण को यह ज्ञात था कि अर्जुन केवल सूर्यास्त से पहले ही जयद्रथ का वध कर सकते हैं। ऐसे में, उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से एक कृत्रिम सूर्य ग्रहण उत्पन्न कर दिया, जिससे चारों ओर अंधेरा छा गया और कौरवों ने सोचा कि सूर्यास्त हो गया है। जैसे ही जयद्रथ ने अपनी सुरक्षा ढीली की, भगवान कृष्ण ने सूर्य को फिर से प्रकट कर दिया और अर्जुन ने अवसर का लाभ उठाकर जयद्रथ का वध कर दिया।

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